Health

How A Vaccine Is Made In Labs, Know Complete Process In Hindi – जिंदा वायरस और बैक्टीरिया का प्रयोग कर बनाई जाती है वैक्सीन, इस तरह करती है काम

आपको यह जानकर ताज्जुब होगा परन्तु वैक्सीन बनाने के लिए वायरस मोलिक्यूल का ही प्रयोग किया जाता है।

आज से लगभग डेढ़ वर्ष कोरोना (Covid 19) वायरस संक्रमण का फैलना शुरू हुआ था। चीन के वुहान शहर में इसका सबसे पहला संदिग्ध मरीज पाया गया और देखते ही देखते बहुत कम समय में इस वायरस ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। कोरोना की प्रथम लहर ने चीन, अमरीका और यूरोप के कई देशों में भारी तबाही मचाई थी। भारत, न्यूजीलैंड सहित कुछ देश जिन्होंने समय रहते कम्पलीट लॉक डाउन लगा दिया था, वहां इसका असर न्यूनतम रहा हालांकि कोरोना की दूसरी लहर ने सभी सुरक्षा इंतजामों को धता बताते हुए अनगिनत लोगों से उनका जीवन छीन लिया।

वर्ष 2020 में कोरोना के बढ़ते प्रकोप की संभावनाओं के चलते उसी वक्त पूरी दुनिया के कई देशों में शोधकर्ताओं ने वैक्सीन बनाने की शुरूआत कर दी थी और आज लगभग दस से अधिक वैक्सीन दुनिया में मौजूद हैं, जिन्हें अलग-अलग देशों में वायरस की रोकथाम करने के लिए प्रयोग किया जा रहा है। परन्तु क्या आप जानते हैं कि वैक्सीन किस तरह तैयार होती है?

यह भी पढ़ें : ब्राजील ने भारत बायोटेक की कोवैक्सिन और रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-वी की खरीद को दी मंजूरी

यह भी पढ़ें : भारतीय वैज्ञानिक दंपती ने खोली चीन की पोल : वुहान लैब से लीक हुआ कोरोना वायरस, दी ये अहम जानकारी

आपको यह जानकर ताज्जुब होगा परन्तु वैक्सीन बनाने के लिए वायरस मोलिक्यूल का ही प्रयोग किया जाता है। इस वक्त वैक्सीन बनाने के लिए कई टेक्नीक्स मौजूद हैं परन्तु उनमें सबसे अधिक कॉमन टेक्नीक यही है कि वैक्सीन में वायरस के एक अंश को केमिकल्स के जरिए डिएक्टीवेट कर दिया जाता है। इसके बाद उन्हें संतुलित मात्रा में शरीर के अंदर प्रवेश करवाया जाता है और धीरे-धीरे शरीर में उन वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। इस टेक्नीक को हम इन बिन्दुओं में समझ सकते हैं-

  1. सबसे पहले वायरस को सेल्स में अनुकूल वातावरण बना कर बढ़ाया जाता है। यदि बैक्टीरिया के लिए वैक्सीन बनानी है तो पेटी डिश या बॉयोरिएक्टर में बैक्टीरिया को पनपाया जाता है।
  2. इन सेल्स और बॉयोरिएक्टर के जरिए पनपाए गए वायरस या बैक्टीरिया के अंदर ही एंटीजन्स बनने लगते हैं जिन्हें एक खास टेक्नीक के जरिए अलग कर लिया जाता है। आमतौर पर ये प्रोटीन या DNA मोलिक्यूल्स होते हैं, जिनकी पहचान कर उनका उपयोग किया जाता है।
  3. कई बार अनुकूल वातावरण मिलने के कारण ये वायरस और बैक्टीरिया म्यूटेशन के जरिए अपनी ही नई प्रजातियां भी विकसित करने का प्रयास करते हैं, जिसके कारण एंटीजन में उन नई प्रजातियों के खिलाफ भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।
  4. आखिर में इन एंटीजन्स की पहचान कर वैक्सीन बनाने के लिए आवश्यक दूसरी चीजों के साथ एक साथ मिलाकर वैक्सीन बनाई जाती है। इसके बाद इन वैक्सीन्स को जानवरों पर टेस्ट किया जाता है। जानवरों पर परीक्षण सफल रहने के बाद उन्हें इंसानों पर टेस्ट किया जाता है। सभी प्रयोगों में सफल रहने के बाद इन वैक्सीन्स का औद्योगिक उत्पादन शुरू कर आम जनता तक पहुंचाया जाता है।
  5. एक बार शरीर में पहुंचने के बाद शरीर में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स वायरस और बैक्टीरिया की डेड सेल्स के विरुद्ध अपनी जंग छेड़ देते हैं और बहुत जल्दी शरीर में उन वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।





Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj