Rajasthan

Poem by Ritu | कविता- प्रदूषण की धुंध?

कविता

जयपुर

Published: February 19, 2022 03:23:54 pm

ऋतु शर्मा ना जाने क्यों?
अक्सर ही
इन तुहिन कणों की छांव में,
अजब सी धुंध की चादर लिए
सिमट- सिमट क्यों जाता है।
मेरा ये मासूम सा शहर! इस अजब सी धुंध से
अलसायी सी धूप है .
मुरझाई सी सांझा है,
बावरी सी हो चली है निशा।

कविता- प्रदूषण की धुंध?

कविता- प्रदूषण की धुंध?

डूब गई हर गली,
डूब गई हर डगर .
डूब रहा क्यों मेरा
मासूम सा शहर
इस अजब सी धुंध में .
न जाने क्यों ? घड़ी-घड़ी बढ़ रहे अंधियारे को,
घूंट घूंट हम पी रहे या जी रहे
चित्र सारे धुंधले धुधले
से हो गए
ज्यों किसी अजब नशे में
जी रहे

इस अजब सी धुंध से
पांव उठ ना पा रहे
ज्यूं हो थकन सी
बेबस आंखें झर रहीं
ज्यूं हो जलन सी
जिस सभ्यता की दे रहे
हैं हम दुहाइ
उसी पर छा रहे विपत्ति के
क्यो धुंधलके ?
न जाने क्यों ?

मेरा तुम्हारा यह शहर
चीख-चीख पुकारता।
गुजारिशें हैं कर रहे
खग पात और लता
सुरसा सा मुख फैला कर
धुंध बढ़ा आ रहा।
हौले हौले प्राणी हो विवश
क्यों इधर-उधर भागता?
न जाने क्यों ? इस अजब सी धुंध को
अब और नहीं बढने दो
रोक लो,
इस काली धुंध को,
लेकर एक प्रण।

रोक लो!
इस प्रदूषण को
लेकर के एक प्रण।
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