poem by Ritu singh | कविता-अपने अबोध जायों को
कविता
जयपुर
Published: April 10, 2022 11:25:17 am
ऋतु सिंह कैसे ठेल कर ले जाती होगी वह..
अपने अबोध जायों को
यह कहकर तो हरगिज नहीं….
कि धकेल दूंगी पानी में…!!!
कितने मनहूस हैं वे पानी के सोते
जिनके नाम चढ़ जाती है
औरतों द्वारा की गई आत्महत्याएं
और भी अधिक भयावह…
जब कूद जाती हैं…
दुधमुंहों को छाती से चिपकाए!!

कविता-अपने अबोध जायों को
माना टूट चुकी होती हैं
उनकी सारी उम्मीदें…
मर चुकी होती है
उनकी जीने तक की आशा..
लेकिन क्या चुक चुके होते हैं
उनके सारे हथकंडे भी
क्यों कर आखरी रास्ता उन्हें…
वह पानी का सोता ही जान पड़ता है..!!
क्यों नहीं दीख पड़ता उन्हें
देहरी के पीछे पड़ा डंडा,
भैंस की खोर के पास रखी दरांती,
आंगन के कोने में पड़ी कुल्हाड़ी,
रसोई में पड़ा चाकू या
चूल्हे में जल रही लकड़ी…
या ऐसा कोई भी हथियार
जिसे हाथ में लेकर दिखा सके…!
कर सके प्रतिकार
और सामने वाले को जतला सके
कि उसका चैन छीनना
और मरने के लिए मजबूर करना…
इतना आसान नहीं…
बिल्कुल आसान नहीं!!! पढि़ए एक और कविता
निबाहना इतना आसां नहीं
कल्पना गोयल हां!
निबाहना इतना आसां नहीं
पर इतना मुश्किल भी कहां है निबाहने का अर्थ
किसी को
मजबूरन सहना नहीं है
अपितु संबंधों को
मजबूती प्रदान करना है हकीकत को समझाना है
गिरते-उठते पड़ावों को
आधार प्रदान करना है
निबाहना स्वयं से ली
गई एक शपथ है
वायदा है,कसम नहीं
प्रचलित रीति को
विश्वास देने जैसा है निबाहना प्रेम की परिपाटी है
परिपक्वता की थाती है
यानी स्नेह/प्रेम से
जीने का संबल मिलना और
मानो गढऩा अपनी माटी है
निबाहना तोडऩे का विलोम नहीं
अपितु,हमारी संस्कृति की
सनातन पहचान है
हमारी शान है और
बरसों से कायम आन है निबाहना क्रिया का समभाव है
गहन अर्थ का परिचायक है
सीख देता हुआ नवजीवन-सा
प्रेम का संचारक है,प्रचारक है निबाहना अनेक अर्थों का
सूत्रधार-सा,मगर
रिश्तों का बना आधार है
सकारात्मक भाव में
जीने का भी आधार है
निबाहने से मिटता एकाकीपन
सदैव होता समस्या का निवारण,
स्वस्थ जीवन-शैली का हो मूलाधार
मिलता दीर्घायु का वरदान है!!
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