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Poetry Therapy एक बड़ा सुकून है — रति सक्सेना | Poetry therapy is a great solace Rati Saxena

हाल ही में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से उनकी 6 किताबें और आई हैं। उनकी कैंसर डायरी ‘आईसीयू में ताओ’ उनके खुद के इस बीमारी से दो—चार होने के बारे में बहुत कुछ कहती है। इससे पहले मलयालम के महत्वपूर्ण लेखक अयप्पा पणिक्कर की पुस्तक के अनुवाद के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का अनुवाद पुरस्कार मिल चुका है। वहीं ‘ए सीड ऑफ माइंड: ए फ्रेश अप्रोच टू अथर्ववैदिक स्टडी’ के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र फैलोशिप मिली। और कविता संग्रह ‘हंसी एक प्रार्थना है’ के लिए राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसी शख्सियत से कुछ सवाल किए, तो उनके जवाब कुछ यूं मिले….

सवाल— हाल ही में आपकी जो कैंसर डायरी आई है, आई सी यू में ताओ, इसे देखकर पूछने का दिल हुआ कि क्या लेखक को डायरी लिखने से सुकून मिलता है?

जवाब— इसे poetry therapy से जोड़ कर देखना चाहिए। यदि आपने मेरी किताब पढ़ी हो तो पोएट्री therapy एक महत्वपूर्ण सह चिकित्सा विधा है, जिसका अनेक यूरोपीय अस्पतालों में उपयोग किया जा रहा है। साधरण रूप में यह चिकित्सा के साथ चलने वाली पद्धति है, जो मानसिक शक्ति को बढ़ाते हुए रोग से विलग करती है, लेकिन यदि अनुभव को रोग के उपरांत समाहित किया जाए तो विरेचन क्रिया के समान मानसिक शक्ति के ह्रास को रोकती है। चिकित्सा में मात्र औषधि ही नहीं, मानसिक शक्ति जरूरी है। मेरी इस Cancer डायरी का कुछ अंश रोग और चिकित्सा के वक्त लिखा गया था। कुछ बाद में।

दरअसल मेरी आदत है कि मैं आसपास को बहुत ध्यान से देखती हूं और note से बनते जाते हैं। जैसे Icu में थी, तो पूरी घटनाओं को अनायास दिमाग में दर्ज कर रही थी। यहां तक कविता भी रच रही थी। कमरे में आने के बाद इन्हें लिख लिया। कीमोथेरेपी के वक्त भी मैं आसपास के हर अहसास को दर्ज कर रही थी। हालांकि नोट नहीं कर सकती थी। क्योंकि मेरी तबियत घर आकर बेहद बिगड जाती थी। वह सब मैंने बाद मे लिखीं। जब मैं दूसरे के कष्ट पर लिखती तो अपने कष्ट से कुछ दूर चली जाती हूं, इससे राहत तो मिलती है।

सवाल— आप लगातार यात्राएं करती हैं। इराक, यूरोप के ज्यादातर देश, एशिया, अमरीका के देशों को आपने करीब से देखा। 5 यात्रा वृतांत अलग ही कहानी कहते हैं। ये यात्राएं हमारे बने रहने में कितनी जरूरी हैं?

जवाब— मेरी अधिकतम यात्राएं कविता से जुड़ी हैं। मुझे भीड़ में जाना पसन्द नहीं है। क्योंकि यात्रा में अधिकांश मित्र कवि मिल जाते हैं, तो वे मेरी खुशी का सबब होती है। एक दो बार कुछ technical problem हुईं, उन्हें दुख कह सकते हैं। जब मैं यात्रा करती हूं, तो लगातर एक चमकदार अक्षरों वाली किताब मेरे सामने खुलती जाती हैं। जब मैं एक ही जगह को दूसरी बार देखती हूं, तो या तो चमक फीकी लगती है या और चमकदार। यात्रा के दुख भी होते हैं, जैसे वीजा आदि का अरेंजमेंट, Immigration आदि। जबसे मैं शारीरिक रूप मे समस्या ग्रस्त हुई हूं तब से यात्रा तकलीफ तो देती है, लेकिन मुझे हर यात्रा कुछ सिखाती है। सीखना या जानना मुझे मानव बने रहने में जरूरी लगती है।

सवाल— अनुवाद में विदेशी कवियों को आपने अपनी भाषा में अनुदित किया है। अनुवाद और कविताओं से क्या लगाव है?

जवाब— मैंने अलग—अलग मूड और अलग विषयों पर अनुवाद किया है। मलयालम लेखकों की 15 किताबों के अनुवाद किए हैं। वे सब क्लासिक लेखक हैं। क्लासिक लेखकों को हर भाषा में दर्ज किया जाना चाहिए। वहीं विदेशी भाषा से 4 कवियों के अनुवाद किए हैं, वे प्रकृति और दर्शन के करीब थे। एक प्रोजेक्ट के तहत चीनी कवि की कविताओं का अनुवाद भी किया। हाल ही में अताओल बेहरमोग्लो की कविताओं के अनुवाद की किताब आई है। यह अनुवाद उनके क्रांतिकारी वक्त की स्मृति है, जिसे दर्ज होना जरूरी है। वे इस वक्त तुर्की के सर्वश्रेष्ठ कवि है। आप सोचिए कि उनके जीवन काल में उनकी मूर्तियां वहां के म्यूजियम में लगी हैं। इसलिये मैंने सोचा कि हमारी भाषा में इस महान कवि का काम दर्ज होना चाहिए।

सवाल— ‘हंसी एक प्रार्थना है’ संग्रह के लिए आपको मीरां पुरस्कार मिला है। स्त्रियों के हंसने पर इसमें मानीखेज कविताएं हैं, इन पर कुछ बताइए?

जवाब— सच यह है कि समाज को स्त्रियों का हंसना रास नहीं आता। मैंने यह कविता बहुत बाद में लिखी थी। दरअसल मेरे खुद के चालीस-पचास की उम्र पार करने के बाद भी यही सुनने को मिलता कि औरतें इतनी जोर से नहीं हंसतीं। यह विरोध की कविता है। मेरी कविताओं में स्त्री विमर्श दबे पांव आता है, शोर नहीं करता। औरतों के हाल पर बात करूं तो करीब पंद्रह देशों की यात्राएं कीं, अधिकतर जगह एक से ही हाल। यूरोप इस लिहाज से कुछ बेहतर है।

जर्मन महिलाएं जेहनी तौर पर मजबूत होती हैं। ब्रिटिश भी। इटली में भी हालात बेहतर हैं। चीन में पॉलिटिकल दबाव काम करता है। वियतनाम में आदमियों से ज्यादा मेहनत करती हैं स्त्रियां। अमेरिका में स्वतंत्र दिखाई देती हैं, लेकिन एक अलग तरह की घुटन है। सेक्सुअली हैरेसमेंट बहुत दिखता। वहीं ईरान और भारत जैसे देशों में स्त्रियों की आवाज को दबाया जाता है।

सवाल— कविताएं कब से लिख रही हैं? पहले कविता संग्रह माया महाठगिनी के बारे में कुछ बताएं।

जवाब— पोएट्री बहुत सामान्य तरीके से जीवन में आई। स्कूल में थी तब, मैं आउट ऑफ कोर्स बहुत पढ़ती थी, लाइब्रेरी जाती थी। मेरे पास हमेशा एक डायरी हुआ करती थी, जिसमें कोटेशन भी हुआ करते थे, फिल्मी गीत होते थे और कविता जैसा कुछ…। मेरे मन में जो विचार घुटते, वो लिख देती थी बस…। संस्कृत में कविताएं छंद में हुआ करती हैं, तो मुझे यही लगता था कि जो मैंने लिखा, वो कविता नहीं कुछ और है। वेदों का अध्ययन करते हुए मैंने यह भी जाना कि सहज लिखना है। वेदों की भाषा सरल है।

दरअसल भाषा में उलझ गए पाठक, तो फिर वे अर्थ खो देते हैं। यह भी समझ आने लगा था कि कविता सीधी नहीं लिखी जाती, पर यह समझना बाकी था कि कविता सिर्फ अपनी घुटन नहीं होती, समाज की घुटन होती है। आत्म अभिव्यक्ति नहीं होती, समाज की अभिव्यक्ति होती है।

कविता को लेकर अपनी समझ बढ़ाने का मौका केरल में मिला। मैं लिखती रही, छपती रही। फिर पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ ‘माया महाठगिनी’। राहें फिर भी मेरे लिए आसान नहीं रही, उत्तर भारत में हिंदी में किताब छपवाना मेरे लिए कभी भी आसान नहीं रहा, अंग्रेजी में जरूर किताबें आसानी से छपती रहीं।

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