शेख हसीना की मौत की सजा पर सवाल! क्या बांग्लादेश में मुकदमा निष्पक्ष था? समझिए हर एक पहलू

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पिछले एक साल से भारत में रह रही हैं. उधर ढाका में इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने उन्हें गैरहाजिरी में मौत की सजा सुना दी. आरोप है कि 2024 में छात्र आंदोलन पर हुई कार्रवाई में उनकी सरकार ने गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन किए.
लेकिन इस फैसले के बाद एक और बहस शुरू हो गई है, क्या यह मुकदमा वैध था? क्या यह संवैधानिक प्रक्रियाओं के मुताबिक चला? और क्या इस फैसले को निष्पक्ष माना जा सकता है?
किस कानून के तहत चला मुकदमा? इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल बांग्लादेश दरअसल 1971 के युद्ध अपराधों को सुनने के लिए बना था. इसके लिए 1973 का एक कानून बनाया गया था, जिसमें बाद में कुछ बदलाव किए गए. लेकिन कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि हसीना के खिलाफ इस ट्रिब्यूनल का इस्तेमाल ही शुरुआत से गलत था.
क्योंकि जिन संशोधनों के आधार पर हसीना का ट्रायल हुआ, वे उस समय किए गए जब न तो संसद काम कर रही थी और न ही राष्ट्रपति को ऐसे बदलाव करने का अधिकार था. इस वजह से वकील और संविधान विशेषज्ञ इसे “शुरू से ही अमान्य” बताते हैं. यानी जिस कानून को आधार बनाकर उन्हें सजा दी गई, उसी की वैधता पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा है.
जजों की नियुक्ति पर भी उठे सवालअगला बड़ा मुद्दा है—जिन जजों ने यह फैसला सुनाया, उनकी नियुक्ति कैसे हुई? अगस्त 2024 में बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के बाहर छात्र प्रदर्शनकारियों ने भारी घेराव किया और कई जजों को दबाव में इस्तीफा देना पड़ा. इसके कुछ दिन बाद ही ट्रिब्यूनल में नए जजों की नियुक्ति की गई.
लेकिन ये नियुक्तियां भी संविधान के मुताबिक नहीं थीं. कई जज ऐसे थे जिन्हें कुछ ही दिन पहले हाई कोर्ट जज बनाया गया था, जबकि संविधान के अनुसार उन्हें दो साल तक “अतिरिक्त जज” के रूप में काम करना चाहिए था.उधर कुछ जजों के राजनीतिक झुकाव की भी चर्चा की गई, जिससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे. कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे गंभीर मामलों में अंतरराष्ट्रीय कानून का अनुभव अनिवार्य होता है—लेकिन यहां तीन में से किसी भी जज के पास वह अनुभव नहीं था.
प्रॉसिक्यूशन और डिफेंस में गड़बड़ी, वकील तक नहीं मिल पाएशेख हसीना ने बार-बार कहा कि उन्हें अपनी पसंद का वकील रखने का मौका ही नहीं मिला. इसके बजाय सरकार ने अपने ही वकील नियुक्त कर दिए. सरकारी वकील ने मीडिया को बताया कि उनका हसीना से कोई संपर्क नहीं हुआ, न ही वे उनसे बात कर पाए, और न ही उन्हें पूरा कानूनी रिकॉर्ड समय पर मिला. वह खुद मानते हैं कि उनके पास अंतरराष्ट्रीय अपराध कानून (International Criminal Law) का अनुभव भी नहीं है.
ट्रायल शुरू होने से सिर्फ पांच हफ्ते पहले उन्हें केस की फाइल दी गई, जिसमें सैकड़ों गवाह, बयान और सबूत थे. स्पष्ट है कि इतने बड़े मामले की तैयारी पांच हफ्तों में करना संभव ही नहीं था. और सबसे अहम बात—क्रॉस एक्ज़ामिनेशन (यानि गवाहों से सवाल-जवाब) तक की अनुमति कई जगहों पर नहीं दी गई.
मुकदमा बेहद तेजी से निपटाया गयाइतना बड़ा केस,जिसमें दर्जनों आरोप, सैकड़ों गवाह और भारी मात्रा में सबूत हों, आमतौर पर महीनों या सालों तक चलता है. लेकिन शेख हसीना का ट्रायल 3 अगस्त 2025 को शुरू हुआ और 23 अक्टूबर 2025 को खत्म हो गया. यानि केवल ढाई महीने में पूरा मुकदमा निपटा दिया गया.
गवाहियों पर भी जल्दी-जल्दी निपटाने का आरोप है. कई विशेषज्ञों का कहना है कि इतना तेज मुकदमा केवल तभी संभव है जब फैसला पहले से तय किया जा चुका हो.
Awami League नेताओं पर सैकड़ों मुकदमेहसीना के साथ-साथ उनके दर्जनों मंत्रियों, सांसदों और पार्टी कार्यकर्ताओं पर भी बड़े पैमाने पर मुकदमे दर्ज हुए. कुछ नेताओं पर तो एक ही दिन में अलग-अलग जगहों पर कई FIR तक दर्ज कर दी गई. कुल मिलाकर 1100 से ज्यादा केस दर्ज हुए.
इसके विपरीत, जमात-ए-इस्लामी और कुछ कट्टरपंथी संगठनों के नेताओं के मामलों में नरमी दिखाई गई—कुछ को बेल मिली, कुछ के केस वापस लिए गए. इससे विपक्षी दलों ने पूछा कि क्या यह राजनीतिक बदले की कार्रवाई है?
गिरफ्तारी और हिंसा के आरोपट्रायल के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे कोर्ट की सुरक्षा और निष्पक्षता दोनों पर सवाल उठे. कोर्ट परिसर में गिरफ्तार नेताओं पर हमला तक हुआ. उनके वकीलों को धमकाया गया, बाहर निकलते समय उन पर हमले हुए. प्रदर्शनकारियों की मौतों में जो गोलियों के इस्तेमाल की जांच होनी थी, उस पर भी ध्यान नहीं दिया गया.
कुछ रिपोर्टों में आरोप है कि आवामी लीग नेताओं की हिरासत में मौत हुई, जिसकी कोई निष्पक्ष जांच अब तक नहीं हुई.
मुख्य अभियोजक का विवादित बयानसबसे आखिर में एक घटना और थी जिसने विवाद को हवा दी—मुख्य अभियोजक ने ट्रायल शुरू होने से पहले ही कहा था कि “शेख हसीना ने नरसंहार कराया, यह हमारे लिए ऐतिहासिक दिन है.”
कानूनी विशेषज्ञ कहते हैं कि जब मामले का अभियोजक ही पहले से नतीजा घोषित कर दे, तो फिर निष्पक्ष ट्रायल कैसे होगा?



