राज खोसला: भारतीय सिनेमा के महान निर्देशक की 100वीं जयंती पर विशेष.

नई दिल्ली. 1969 की सर्दियों में, राजेश खन्ना नाम का ‘तूफान’ ने भारतीय सिनेमा में दस्तक दी. एक ही साल में दो फिल्मों ने हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार को जन्म दिया. शक्ति सामंता की ‘आराधना’ और राज खोसला की ‘दो रास्ते’. लेकिन ‘दो रास्ते’ के पहले कुछ दिन बॉक्स-ऑफिस पर अनिश्चित थे. महेश भट्ट, जो उस समय फिल्म में एक युवा ‘प्रोडक्शन हैंड’ थे. फिल्म की खराब स्थिति पर वह बुरी तरह रोए, यह बात राज खोसला की आने वाली बायोग्राफी में कही गई है, जिनकी 31 मई को 100वीं जयंती है.
राज खोसला ने कई जॉनर में सुपरहिट फिल्में दी. थ्रिलर ‘सीआईडी’ (1956), सस्पेंसफुल ‘वो कौन थी?’ (1964) और रोमांटिक ड्रामा ‘दो बदन’ (1966) जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है. लेकिन उनकी पिछली दो फिल्में, ‘अनीता’ (1967) और ‘चिराग’ (1969), अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थीं. कर्जदार दरवाजे पर थे.
‘आराधना’ के साथ रिलीज हुई फिल्म ‘दो रास्ते’
‘दो रास्ते’, जिसे उन्होंने प्रोड्यूस और डायरेक्ट किया था, मराठी लेखक चंद्रकांत काकोडकर के उपन्यास ‘नीलांबरी’ पर आधारित थी. जब फिल्म 5 दिसंबर, 1969 को बॉम्बे के रॉयल ओपेरा हाउस में रिलीज हुई, तो एडिटर वामन भोंसले और महेश भट्ट थिएटर में थे.
‘आराधना’, हाउसफुल है, यहां लोग नहीं आते, पिक्चर डूबेगी…’
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बायोग्राफी के राइटर अंबोरिश रॉय चौधरी किताब में लिखते हैं, ‘एक मैनेजर जिसका नाम देसाई था. वो भट्ट और भोंसले के पास आया और कहा, ‘सामने वो शक्ति की पिक्चर चल रही है ‘आराधना’, वो एडवांस में हाउसफुल है. यहां पर लोग नहीं आते. पिक्चर डूबेगी.’ जब महेश भट्ट ने यह सुना तो वह टूट गए. वामन भोंसले ने पहले भी यह सब देखा था, लेकिन भट्ट साहब उस वक्त सिर्फ 20 साल के थे और फिल्म से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे.’
राज खोसला ने साधना से भी लिए सजेशन
‘राज खोसला: द ऑथराइज्ड बायोग्राफी’ में बताया कि फिल्म मूल रूप से कुछ ‘मां-बेटे के रिश्ते के बारे में भावनात्मक लाइनों’ के साथ खत्म होती थी, जो दर्शकों के साथ अच्छी तरह से काम नहीं कर रही थी. इसके बाद राज खोसला ने हीरोइन साधना से संपर्क किया, उन्होंने एक्ट्रेस को फिल्म दिखाई और उन्हें अपनी राय देने के लिए कहा. साधना ने फिल्म को ‘बिंदिया चमकेगी’ ट्रैक के क्लिप के साथ खत्म करने का सुझाव दिया.
50 हफ्तों से ज्यादा चली फिल्म, ₹300 मिला बोनस
हालांकि, इसके बाद ‘दो रास्ते’ उसी ओपेरा हाउस में 50 हफ्तों से ज्यादा चली. कर्जदारों का भुगतान किया गया. राज खोसला ने कुछ स्टाफ सदस्यों के लिए बोनस की घोषणा की. महेश भट्ट को भी 300 रुपये का बोनस मिला, जो तब उनकी एक महीने के सैलेरी के बराबर थी. ‘उन्होंने मुझे आंसू बहाने के लिए ₹300 अतिरिक्त दिए!’ किताब की प्रस्तावना में महेश भट्ट राज खोसला को अपना गुरु और मास्टर के रूप में वर्णित किया है.