Rajasthan News: आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश, मंत्री अविनाश गेहलोत बोले- केंद्र की गाइड लाइन करेंगे फॉलो

महिमा जैनजयपुर. राजस्थान सरकार में मंत्री अविनाश गेहलोत का आरक्षण के संबंध में बड़ा बयान सामने आया है. से खास इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि 1 अगस्त, 2024 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सात सदस्य वाली पीठ ने 6-1 के बहुमत से अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के आरक्षण से सम्बंधित फैसला दिया है. इसके चलते उच्चतम न्यायालय ने सरकार को यह निर्देश भी दिए हैं कि उपवर्गीकरण का अधिकार राज्य सरकार को है. न्यायालय ने कहा है कि बिना वस्तुनिष्ठ आंकडे़ जमा किए और बिना विश्लेषण और विवेचना के उपवर्गीकरण नहीं किया जाना चाहिए.
दरअसल, यह पंजाब सरकार के 2006 के उस आदेश के संबंध में है जिससे सरकारी भर्तियों में अनुसूचित जातियों में से कुछ जातियों के लिए एक कोटा निर्धारित कर दिया था. इस निर्णय पर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसे संविधान के विरुद्ध मानते हुए इस पर 2010 में रोक लगा दी थी. पंजाब सरकार द्वारा इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील प्रस्तुत की गई जिस पर फरवरी, 2024 में विस्तृत सुनवाई के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि पंजाब सरकार के अनुसूचित जातियों में से कुछ के लिए विशेष कोटा निर्धारित करने के आदेश को सही करार दिया गया है.
अब उच्च्चतम न्यायालय ने अपने पुराने निर्णय को बदल दियामंत्री अविनाश गहलोत ने बताया कि वर्ष 2004 में आंध्र सरकार बनाम चिन्नैया के निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था कि एससी/एसटी में वर्गीकरण संविधान सम्मत नहीं है. तब से अब तक इसी दृष्टिकोण को सही माना जाता रहा है. इस निर्णय के द्वारा अब उच्च्चतम न्यायालय ने अपने पुराने निर्णय को बदल दिया है एवं राज्य सरकारों द्वारा अनुसूचित जातियों/जनजातियों के उप वर्गीकरण को संविधान सम्मत माना है. उच्चतम न्यायालय ने अपने बहुमत 6:1 अनुपात के निर्णय से स्पष्ट कर दिया है कि सभी अनुसूचित जाति और जनजाति को एकसमान नहीं रखा जा सकता एवं इनका वर्गीकरण करना संविधान के भावना के विपरीत नहीं है.
सभी एसटी- एसटी जाति एक समान नहींमंत्री अविनाश गहलोत ने बताया कि पूर्व में 2004 में उच्चतम न्यायालय ने चिनाझ्या बनाम आंध्रप्रदेश सरकार के प्रकरण में यह निर्णय दिया था कि संविधान में जो अनुसूचित जातियां और जनजातियां दर्ज है, उनको विभाजित नहीं किया जा सकता. यदि ऐसा किया जाता है तो यह संविधान के विरुद्ध होगा. अब सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ ने इस निर्णय को बदल दिया है एवं यह स्पष्ट कर दिया है कि सभी एसटी- एसटी जाति एक समान नहीं है. इनमें से कुछ जातियां गत वर्षों में मिले आरक्षण के लाभ के कारण सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से अन्य के मुकाबले में अधिक बेहतर स्थिति में आ गई है. इसके फलस्वरुप, आरक्षण का अधिकांश लाभ इन्हीं जातियों ने लेना प्रारंभ कर दिया है और अन्य कई जातियों को लगभग नगण्य लाभ मिला है.
गैर क्रीमीलेयर को आरक्षण का विशेष लाभ दिया जानामंत्री अविनाश गहलोत ने बताया कि उच्तम न्यायालय के न्यायाधीशों ने उदाहरण देते हुए बताया कि यदि आरक्षण के कारण अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग का कोई व्यक्ति आईएएस, आईपीएस या किसी अखिल भारतीय सेवा में आ जाता है एवं उसके बच्चे यदि अच्छे अंग्रेजी माध्यम के प्रतिष्ठित स्कूल में अध्ययन करते हैं तो उनकी तुलना में एससी, एसटी वर्ग के उन व्यक्तियों का चयन संभव ही नहीं है जो ग्रामीण इलाकों के सरकारी विद्यालयों में बिना सुविधा के पढ़कर निकलते हैं. ऐसे में उल्लिखित जातियों को उप विभाजित करके गैर क्रीमीलेयर को आरक्षण का विशेष लाभ दिया जाना उपयुक्त होगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की भी चेतावनी दी है कि उप वर्गीकरण राजनीतिक आधार पर नहीं किया जाए ,विभिन्न जातियों की शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को पूरी जानकारी प्राप्त करके, विश्लेषण के पश्चात सोच समझकर निर्णय लिया जाए.
जो केंद्र सरकार का निर्णय होगा, उसी के आधार पर राज्य सरकार करेगी फैसला साथ ही कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सरकार को यह निर्देश भी दिए है कि उपवर्गीकरण का अधिकार राज्य सरकार को है. इधर, मंत्री अविनाश गेहलोत ने कहा अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों के अन्तर्गत प्रदत्त हैं. केंद्र सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए अनुच्छेद 341 एवं 342 के अंन्तर्गत केंद्रीकृत सूची का समूह बनाया गया है. इसमें उपवर्गीकरण का प्रावधान नहीं है एवं ना ही क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू है. इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार जो भी अंतिम निर्णय लेगी. राज्य सरकार उसी अनुसार अपना निर्णय लेगी.
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FIRST PUBLISHED : August 19, 2024, 20:07 IST