Ramasiya Village Muslim Potters | Pali Pottery Export Story

Pali News: पाली जिले का छोटा सा गांव रामासिया अपनी मिट्टी की खुशबू और कारीगरी के लिए जाना जाता है. यह गांव अपनी शांत और पारंपरिक जीवनशैली के बीच अनोखी कला को सदियों से पोषित कर रहा है. यहां करीब 10 मुस्लिम मोयला परिवार पीढ़ियों से चाक पर हाथों से मिट्टी के बर्तन, दीपक, कलश और अन्य उत्पाद बनाते आए हैं. उनकी कारीगरी में मेहनत, लगन और परंपरा का संगम झलकता है. उनके बनाए उत्पाद न सिर्फ राजस्थान बल्कि देश के कोने-कोने और विदेशों तक अपनी खुशबू और खूबसूरती फैलाते हैं, जो भारत की हस्तकला के गौरव को बढ़ा रहे हैं. देश-विदेश में लोग इन बर्तनों के दीवाने हैं. रामासिया गांव के लोग अपने हुनर से न केवल आजीविका कमाते हैं बल्कि त्योहारों और तीज के अवसर पर पूरी लगन से मिट्टी के बर्तन बनाकर परिवार और समुदाय की एकता का संदेश भी देते हैं.
दीपावली पर बंटती खुशियाँ
दीपावली का मौसम रामासिया के इन परिवारों के लिए सबसे खास होता है. इस समय वे बड़े पैमाने पर दीपक, धूपड़, चरी और कलश बनाते हैं. यूसुफ मोयला, जो कई दशकों से यह काम कर रहे हैं, बताते हैं, “हमारे बनाए दीपक और बर्तन न केवल घरों को रोशन करते हैं, बल्कि भाईचारे की मिसाल भी पेश करते हैं.” उनका कहना है कि हिंदू समुदाय के लोग हर साल विशेष रूप से उन्हीं से दीये और मिट्टी के अन्य सजावटी सामान खरीदते हैं, जो सामाजिक सौहार्द की एक अद्वितीय तस्वीर पेश करता है. इस सीजन में बढ़ी हुई मांग से उन्हें अच्छी आमदनी होती है, जिससे वे पूरे साल की आर्थिक व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं.
पीढ़ियों से चलता आ रहा हुनररामासिया गांव पाली जिला मुख्यालय से केवल 6 किलोमीटर दूर स्थित है. गांव में इन छोटे मुस्लिम परिवारों के साथ यह कला और परंपरा पीढ़ियों से चल रही है. यूसुफ मोयला (52) अपनी पत्नी मदीना और बेटी के साथ इस कला में व्यस्त रहते हैं. उनका परिवार चौथी पीढ़ी तक इस हुनर को लेकर चला आ रहा है. यूसुफ कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता और दादा को देखकर ही यह काम सीखा है. उनका यह हुनर उन्हें न केवल आर्थिक स्वतंत्रता देता है, बल्कि उन्हें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से भी जोड़े रखता है.
विदेशों तक पहुंच रही रामासिया की मिट्टीरामासिया के इस हुनर की गूंज अब देश की सीमाओं को पार कर गई है. यूसुफ बताते हैं कि उनके परिचित सऊदी अरब में काम करते हैं और जब भी वे भारत आते हैं, वे खास तौर पर मिट्टी के कप, गिलास और अन्य बर्तन बनवाकर ले जाते हैं. उनके अनुसार, इन बर्तनों की प्राकृतिकता और मजबूती विदेशों में बहुत पसंद की जाती है. उनके परिवार द्वारा बनाए गए उत्पाद, मटकी, गल्ला, करबा, सिकोरे, थाली, जग और दीपक — अब माला पाली, उदयपुर, गुजरात के पालनपुर, अहमदाबाद और बड़ौदा तक पहुंच रहे हैं. अलग-अलग सीजन में गर्मियों के लिए सिकोरे और जग, तो त्योहारों के लिए दीपक और कलश जैसे अलग-अलग आइटम तैयार होते हैं, और इनकी अच्छी बिक्री से परिवार की आमदनी भी अच्छी होती है.



