Rajasthan

Rao ji’s Ger Yatra still has a unique identity, this is the first event in the country and the world, in which entry of women is prohibited

Last Updated:March 15, 2025, 17:19 IST

जोधपुर में माली समाज में 633 साल से रावजी का राज कायम है. यानी हर साल धुलंडी पर निकलने वाली रावजी की गेर का निर्वाह आज भी किया जा रहा है. वक्त बदला मगर रिवाज नहीं बदला.X
जोधपुर
जोधपुर राव जी की गैर मडोर

परंपराओं की होली की बात करें तो,इस बार भी होली के त्यौहार के चलते सूर्यनगरी जोधपुर में धुलंडी का पर्व मनाने के साथ होलिका दहन होगा और एक दूसरे को रंग लगाकर होली खेलने के साथ-साथ दोपहर बाद राव जी की ऐतिहासिक गैर 633 निकलेगी जिसमें महिलाओं का प्रवेश वर्जित होगा. दादा पोता, पिता पुत्र से लेकर परिवार के बड़े बुजुर्ग से लेकर हर उम्र के लोग शामिल होंगे. राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी सूर्य नगरी जोधपुर में हर वर्ष की तरह इस बार भी होली के त्यौहार पर जोधपुर के मंडोर क्षेत्र में निकलने वाली पारम्परिक रावजी की गेर यात्रा आज भी अपनी अनूठी पहचान रखती है.

देश और दुनिया का यह पहला आयोजन है. जिसमें महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता है। यहां गेर में शामिल लोग की मस्ती में चूर होकर श्लील गायन करते है. इसमें खास बात यह होती है कि दादा और पोता, चाचा और भतीजा तथा बाप और बेटा एक साथ मिलकर होली मनाते है. आपसी मनमुटाव भुलाकर रंगो की मस्ती में सराबोर होकर होली का जश्न मनाते है. जोधपुर में माली समाज में 633 साल से रावजी का राज कायम है. यानी हर साल धुलंडी पर निकलने वाली रावजी की गेर का निर्वाह आज भी किया जा रहा है. वक्त बदला मगर रिवाज नहीं बदला.

यह है पुरानी परपंराजोधपुर मंडोर के डां अशोक गहलोत ने गहलोत ने बताया कि इस परम्परा का नजारा देखने मंडोर इलाके के अलग-अलग मोहल्लों की गेर एक साथ निकलती है. पुरानी परम्परा के अनुसार एक युवक राव बना हुआ नाचता चलता है. उसे घेरे हुए बड़ी संख्या में बुजुर्ग, युवक और बच्चे होली के गीत गाते और श्लील गायन गाते हुए चलते है।कई लोग पारम्परिक वेशभूषा में सज-धज कर आते है.

महिलाओं का प्रवेश रहता है वर्जितडॉ अशोक गहलोत ने बताया कि, ज्यादातर लोगों के हाथों में गैर वाले डंडे होते है. हजारों लोगों की इस गेर को देखने के लिए भी हजारों लोग उमड़ते है. रावजी की गेर मंडोर के अलग-अलग मोहल्ले से होती हुई मंडोर उद्यान में प्राचीन नाग गंगा तालाब पहुंचती है. वहां सबसे पहले राव बना युवक तालाब में कूदता है फिर दूसरे युवक भी धड़ाधड़ पानी में कूद पड़ते है. इस तालाब में नहाने के बाद गेर सम्पन्न होती है. इस गैर में श्लील गायन के कारण महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है.

फूल-पत्ते पहन कर निकलता है राव तुर्कों पर आक्रमण करने के लिए राव और उनके साथी फूल-पत्ते बांधकर शिविर में घुसे थे. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए 14 मार्च को 633 साल से जो भी व्यक्ति राव बनता है, वह अपने सिर पर फूल-पत्ते बांधता है. यह माली समाज की पहचान भी है. पहले राव बनने का अधिकार गोपी का बेरा को था, फिर फूलबाग बेरा को प्राप्त हुआ. अब खोखरिया बेरा के नव विवाहित गहलाेत वंशीय युवक को मंडावता बेरा के बुजुर्ग गुलाबी रंग का छापा लगाकर एक दिन का राव बनाते, जिसे पूरा समाज राजा के रूप मानता है. राव के नागकुंड में स्नान करने के बाद गैर समाप्त होती है.


Location :

Jodhpur,Rajasthan

First Published :

March 15, 2025, 17:19 IST

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जोधपुर में रावजी की गेर की अनूठी परंपरा, धुलंडी पर होली की मस्ती

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