Entertainment

रेखा भारद्वाज: आध्यात्मिक यात्रा और ओशो की शिक्षाओं का प्रभाव

मुंबई. फिल्ममेकर विशाल भारद्वाज की पत्नी रेखा भारद्वाज पॉपुलर बैकग्राउंड सिंगर हैं. उनकी अनोखी आवाज दिलों को गहराई से छूती है. उनके म्यूजिक में गहराई और आत्मीयता है, जो भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ती है. लेकिन अब वह बताती हैं कि यह गहराई केवल ट्रेनिंग या टैलेंट से नहीं आई, बल्कि एक इंटरनल जर्नी से आई है, जिसमें सवाल, उथल-पुथल और शांत ट्रांसफॉर्मेशन शामिल हैं. उन्होंने बताया कि उनकी लाइफ में काफी उदासी थी. करियर सक्सेसफुल था, लेकिन लोग उन्हें विशाल की पत्नी के तौर पर ही जानते थे. वह हताश थीं. उन्होंने आध्यात्म की राह चुनी. ओशो की शरण में गईं.

रेखा भारद्वाज ने शुभांकर मिश्रा को दिए इंटरव्यू में कहा कि लाइफ और करियर में सक्सेस के बावजूद वह आध्यात्मिक मार्गचल पड़ीं. इस यात्रा को शुरू करने का कारण कोई अचानक त्रासदी नहीं थी, बल्कि एक अशांत, अधिक अस्थिर भावना थी. उन्होंने कहा, “हां, मैं प्रेम, जीवन और करियर में सफल थी. लेकिन फिर भी, मुझे कुछ और की ओर खिंचाव महसूस हुआ.”

विनोद खन्ना क्यों बने संन्यासी? सुपरस्टार की मैरिज लाइफ पर ओशो की सहायक मां आनंद शीला का चौंकाने वाला खुलासा

रेखा भारद्वाज ने कहा कि वह आखिरी में ओशो की शरण में चली गईं. ओशो के उपदेशों को पढ़ा-जाना. उन्होंने कहा कि कई लोग स्प्रिचुएलिटी को किसी चोट या दर्द के बाद के ट्रीटमेंट से जोड़ते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. प्रोफेशनली सफल लोग भी आध्यात्मिकता की तलाश करते हैं, जैसे विनोद खन्ना.

रेखा भारद्वाज ने दिया विनोद खन्ना का उदाहरण

रेखा भारद्वाज ने कहा, “क्या विनोद खन्ना ने अपने करियर की ऊंचाई पर सब कुछ छोड़कर ओशो के पास नहीं गए? कुछ बेहतरी की तलाश में जीवन के बिखरने का इंतजार नहीं करते. कभी-कभी, भीतर की शांति इतनी अशांत हो जाती है कि उसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो जाता है.” रेखा ने एक खास तरह की बेचैनी का जिक्र किया, जो तब भी आती है जब बाहरी रूप से सब कुछ ठीक लगता है.

रेखा भारद्वाज को होने लगा था पहचान का संकट

रेखा भारद्वाज ने कहा, “मुझे हमेशा विशाल भारद्वाज की पत्नी के रूप में प्रेजेंट किया जाता था. मैंने संगीत में बहुत कुछ हासिल किया था. लेकिन मैंने सोचना शुरू किया कि इन भूमिकाओं के परे मैं कौन हूं? मुझे पहचान का संकट था. एक अजीब उदासी होती है जो आपको सबसे खुशहाल क्षणों में भी मार सकती है. अंदर कुछ खालीपन महसूस कर सकते हैं. तब आपको एहसास होता है कि जर्नी को भीतर की ओर मोड़ना होगा.”

ओशो का मेडिटेशन स्कूल ज्वाइन किया

इस आत्म-चिंतन की अवधि के दौरान उन्होंने ओशो की शिक्षाओं की ओर रुख किया. इसके बाद न केवल एक दार्शनिक जागरण हुआ बल्कि उनके अपने भावनात्मक स्वरूप की गहरी समझ भी हुई. उन्होंने कहा, “ओशो के मेडिटेशन स्कूल का हिस्सा बनने से मुझे चीजें स्पष्ट रूप से देखने में मदद मिली. मैंने अहंकार को एक शब्द के रूप में नहीं, बल्कि एक अनुभव के रूप में समझा. मैंने देखा कि कैसे आसानी से ईर्ष्या या नाराजगी अंदर आ जाती है, कैसे हम दोष को बाहर की ओर प्रोजेक्ट करते हैं बजाय इसके कि भीतर देखें.”

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj