retire Brig. beniwal defuse many live bombs during 1971 war | महज 72 घंटे में टैंकों के लिए बना दिया पुल, जिंदा बमों को नाकाम कर बचाई कई जान
इंजीनियरिंग कोर के गौरव सेनानी ब्रिगेडियर बेनीवाल ने बताई शौर्य गाथा
जयपुर
Updated: January 18, 2022 08:11:46 pm
जयपुर. युद्ध के दौरान इन्फेन्ट्री बटालियंस की आमने-सामने की जंग तो हर कोई जानता है, लेकिन रास्ते की हर बाधा को दूर कर दुश्मन तक पैदल सेना की पहुंच बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है इंजीनियरिंग कोर की टुकड़ियां। 1971 की लड़ाई में पश्चिमी सीमा पर बंगाल सैपर्स ने भी कठिनाई भरे युद्ध क्षेत्र को अपने कौशल से ऐसे ही हमारे जवानों के लिए सुगम रास्ता बनाया था।
इसी बंगाल सैपर्स रेजीमेंट के ब्रिगेडियर (सेनि.) महेन्द्र सिंह बेनीवाल फिलहाल जयपुर में रहते हैं, जिन्होंने युद्ध के दौरान अगस्त से दिसंबर 1971 तक दुश्मन के हर संभावित कदम को रोकने के लिए बारूदी सुरंग बिछाने और अपने जवानों को लगातार आगे बढ़ाने के लिए पुल निर्माण जैसे काम किए। लड़ाई के बाद भी उन्होंने युद्ध क्षेत्र में जिन्दा मिले कई बमों और रॉकेटों को नाकाम कर बड़े हादसों को टाल दिया। बेनीवाल ने बताया कि नवम्बर 1971 में वह प्लाटून कमांडर के तौर पर पश्चिमी सीमा पर तैनात थे। गंगानगर क्षेत्र में दो अन्य पलटनों की मदद से महज 72 घंटे में टैंकों के आवागमन के लिए मजबूत पुल बना दिया, जबकि दो पुलों को बारूद लगाकर इस तरह भी तैयार कर दिया कि यदि दुश्मन इन पुलों तक पहुंचने में सफल हो जाए तो उन्हें पल भर में नष्ट भी किया जा सके।
युद्ध समाप्ति के बाद जनवरी, 1972 में जब वह पंजाब के फाजिल्का में बारूदी सुरंगों को निकाल रहे थे तो उनकी नजर उन गड्ढ़ों पर पड़ी, जहां दुश्मन के गिराए जिंदा बम धंसे हुए थे। फाजिल्का-फिरोजपुर हाइवे पर यह बम 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की ओर से भारत पर किए गए हवाई हमलों के दौरान गिराए गए थे, जो बिना फटे ही रह गए। जान की परवाह नहीं करते हुए उन्होंने दोनों बमों को निष्क्रिय किया। जून, 1972 में भी ऐसे ही 500-1000 पाउंड के दो और बम उन्होंने नाकाम किए। ब्रिगेडियर बेनीवाल को अपने अदम्य शौर्य और साहसिक कार्यों के लिए सेना मैडल पुरस्कार से नवाजा गया। नवंबर-दिसंबर 2021 में जयपुर और फाजिल्का में स्वर्णिम विजय वर्ष महोत्सव के दौरान आयोजित कार्यक्रमों में भी ब्रिगेडियर बेनीवाल को सम्मानित किया गया।
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