Later, a temple of Jhantala Mataji was built in Bhilwara, its history is unique. – News18 हिंदी

रवि पायक/भीलवाड़ाः- आमतौर पर लकवा रोगी चिकित्सकों का सहारा लेकर अपनी बीमारी को दूर करने का प्रयास करते हैं. लेकिन मेवाड़ के शक्तिपीठों में चित्तौड़गढ़ की झांतला माता का एक ऐसा स्थान है, जहां न केवल प्रदेश से, बल्कि दूर-दराज के अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में लकवा रोगी पहुंचकर रोग मुक्त हो जाते हैं. यहां की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से लकवा रोगी ठीक हो जाते हैं. वर्षों पुराने माता के मंदिर में इस तरह के चमत्कार की गाथा दूर-दूर तक फैली हुई है. जिसके चलते यहां वर्ष भर लकवा रोगियों की भीड़ देखने को मिलती है. कई बार तो अपनी मनोकामना पूरी होने और रोग मुक्त होने के बाद श्रद्धालु यहां मुर्गें का उतारा कर मन्दिर परिसर में छोड़ देते हैं.
मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठ
श्री झांतला माताजी ट्रस्ट के अध्यक्ष लालचन्द गुर्जर ने कहा कि चित्तौड़गढ़ जिले के गांव झांतला माता जी की पांडोली में स्थित है, जो जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर है. यह मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है. पांडोली गांव के तालाब की पाल पर बना यह मंदिर लोक आस्था का केंद्र है. यहां सैकड़ों वर्ष पूर्व एक विशाल वट वृक्ष था, जिसके नीचे देवी की प्रतिमा थी. झांतला माता मंदिर में गुजरात, मुंबई, मध्य प्रदेश सहित राजस्थान के भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, अजमेर, राजसमंद सहित अन्य जिलों से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. इसलिए इसे वटयक्षीणी देवी का मंदिर भी कहते हैं.
नवरात्रि में पांच प्रकार की होती है आरती
कालांतर में इस स्थान पर विक्रम संवत 1215 के लगभग एक विशाल मंदिर का निर्माण किया गया, जो आज भी स्थित है. अपने वर्तमान स्वरूप में इस मंदिर के गर्भ गृह में पांच देवियों की प्रतिमा स्थित है. इस मंदिर में चैत्र नवरात्रि व अश्विन मास की नवरात्रि के समय यहां विशेष प्रकार के मेले का आयोजन किया जाता है. नवरात्रि के वक्त यहां विशेष रूप से पांच प्रकार की आरती होती है. यहां माताजी की सेवा गुर्जर समाज के एक ही परिवार के द्वारा लगभग 125 वर्ष से की जा रही है.
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लकवा ( पैरालाइज ) का रोग यहां होता है ठीक
आमतौर पर झातला माता को लकवा ग्रस्त रोगियों की देवी भी कहा जाता है. मान्यता है कि जो लकवा ग्रस्त रोगी चिकित्सकों के द्वारा भी सही नहीं होते हैं, तो वह माता के दरबार में सही होकर अपने घर जाते हैं. लकवा ग्रस्त रोगियों को मंदिर में रात्रि विश्राम करने के साथ ही वहां स्थित वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर बीमारी से राहत मिलती है.
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FIRST PUBLISHED : April 16, 2024, 17:26 IST
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