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सद्दाम हुसैन- मां कैलादेवी के भरोसे चलता है घर! राजस्थान के लघुकुंभ में गूंजती है इनके सौहार्द की ढोलक

Last Updated:April 18, 2025, 16:02 IST

करौली के कैलादेवी मेले में बाराबंकी के मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से ढोलक बनाते हैं. ये ढोलकें हाथ से बनाई जाती हैं और भजन-कीर्तन में उपयोग होती हैं. मेले से इनकी आजीविका चलती है.X
कैलादेवी
कैलादेवी मेला का वार्षिक मेला 2025 

हाइलाइट्स

कैलादेवी मेले में मुस्लिम कारीगर ढोलक बनाते हैं.तीन पीढ़ियों से बाराबंकी के परिवार मेले में आते हैं.ढोलक बनाने से इन परिवारों की आजीविका चलती है.

करौली. राजस्थान के करौली जिले में हर साल आयोजित होने वाला कैलादेवी का लक्खी मेला न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द की भी एक अनोखी मिसाल पेश करता है. इस मेले में लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं, और इसी मेले में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी शहर से दर्जनों मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से मां के भक्तों के लिए हाथों से ढोलक तैयार कर रहे हैं.

इन मुस्लिम परिवारों द्वारा बनाई गई ढोलकों की कैलादेवी मेले में खूब मांग रहती है. दिलचस्प बात यह है कि इन मुस्लिम परिवारों को भी इस मेले का पूरे साल इंतजार रहता है. जैसे किसी भक्त को मां के दर्शन का इंतजार रहता है.

तीन पीढ़ियों से जुड़ी है परंपराबाराबंकी से आए करामत अली बताते हैं, हमारे दादा और परदादा भी इस मेले में ढोलक बनाने के लिए आया करते थे. उनके निधन के बाद बीते 25 वर्षों से हम यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं. करामत अली कहते हैं कि हम माता के दरबार में जाएं या नहीं, लेकिन हमें यकीन है कि माता हमेशा हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं. करामत अली के अनुसार, हर साल लगभग 20 मुस्लिम परिवार बाराबंकी से कैलादेवी मेले में ढोलक बनाने आते हैं.

मां के भरोसे चलता है घर का चूल्हाएक अन्य कारीगर सद्दाम हुसैन कहते हैं कि हम इस मेले में माता के भरोसे आते हैं. यहीं से हमें कुछ महीनों का राशन-पानी मिल जाता है. हमारा व्यवसाय और हमारी मेहनत मां के आशीर्वाद से ही हर साल इस मेले में फलती-फूलती है. कैलादेवी मेले में इन परिवारों द्वारा बनाई गई ढोलकों की खास बात यह है कि ये पूरी तरह हाथ से तैयार की जाती है. इनका निर्माण शुद्ध चमड़े, आम और शीशम की लकड़ी से होता है. एक ढोलक की उम्र लगभग 20 से 25 वर्ष तक होती है.

ये परिवार मेले में 6 से 7 प्रकार की ढोलक बनाते हैं, जिनमें सबसे अधिक मांग नट-बोल्ट वाली और रस्सी वाली ढोलक की होती है. ये सभी परिवार अमरोहा से कच्चा माल लेकर आते हैं और फिर कच्चे माल से इस मेले में बैठकर हाथों से ढोलक तैयार करते हैं. ये परिवार इस मेले में ₹100 से लेकर ₹3000 तक की ढोलक तैयार करते हैं. इन ढोलकों का उपयोग भजन, कीर्तन, सत्संग और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में किया जाता है. बाराबंकी से आने वाले इन मुस्लिम परिवारों का मानना है कि मां कैलादेवी के आशीर्वाद से इस मेले से ही साल भर की आजीविका का खर्च यहां मिलने वाले अच्छे रोजगार से निकल जाता है.

Location :

Karauli,Karauli,Rajasthan

First Published :

April 18, 2025, 16:02 IST

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सद्दाम हुसैन- मां कैला देवी के भरोसे चलता है घर! गूंजती है इनके हुनर की आवाज

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