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Sadhguru Quotes : स्मूथ चलेगी जीवन की गाड़ी, फॉलो करें सद्गुरु के ‘चाहो और पा लो’ रूल्स

‘पेंगुइन रैंडम हाउस इम्प्रिंट’ से प्रकाशित किताब ‘आनंद लहर : चाहो और पा लो’ सद्गुरु के ऐसे विचारों को लोगों तक पहुंचाती है, जिनसे मनुष्य काफी हद तक खुशी को पा सकता है, क्योंकि ‘यदि आप खुश रहेंगे तो आपके चारों ओर की ज़िंदगी भी खुश रहेगी’. ऐसा सद्गुरु कहते हैं. जीवन बहुत खूबसूरत है, लेकिन समय-समय पर मनुष्य को ऐसे भंवर का सामना करना पड़ता है, जिससे बाहर निकल पाना कभी-कभी नामुमकिन-सा जान पड़ता है. हर किसी को कभी न कभी, कहीं न कहीं इससे गुज़रना और इसमें फंसना ही होता है. सबकी परेशानियां अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन निवारण के रास्ते काफी हद तक एक जैसे ही होते हैं. ऐसे में सद्गुरु द्वारा लिखित ‘चाहो और पा लो’ किताब आनंद, सुकून, और सहजता की लहरों को आप तक पहुंचाने की कोशिश मात्र है.

किताब में सदगुरु लिखते हैं, “आप ज़िंदगी में किस तरह के लोगों के साथ जीना और काम करना चाहते हैं? आंनंदपूर्ण लोगों के साथ या चिंतित या दुखी लोगों के साथ? आनंदपूर्ण लोगों के साथ, हैं न? आपके चारों ओर के लोग भी आपकी तरह ही चाहतें हैं, इसे याद रखिए.” सद्गुरु उन्हीं बातों को दोहराते हैं जो हम सदियों से विभिन्न धर्मों, ग्रंथों या संतों से सुनते आ रहे हैं, फर्क सिर्फ इतना है, कि वे जिस भी विषय पर बोलते हैं, उसमें उनके ज्ञान और अनुभव की गहराई के साथ-साथ आधुनिकता और विज्ञान का पुट भी होता है. हर विषय की जड़ तक जाकर अपने अनुभव में उतारने के बाद ही, उसे वे दूसरों के साथ बांटते हैं.

मनुष्य की ज़िंदगी के कई पहलू हैं- परिवार, रिश्ते, शिक्षा, करियर, रोजगार, स्वास्थ्य और न जाने कितनी ऐसी चीजें, जिन पर उसकी खुशी और कामयाबी पूरी तरह से निर्भर होती है. लेकिन जीवन चुनौतियों और मायाजाल का नाम है, जिसके चलते वह इन्हीं ज़रूरी हिस्सों में सुकून की तलाश करता है और समय उसमें अटकलें लगाता है, मनुष्य लड़खड़ाता है, लड़ता है… दुनिया से भी, अपने आप से भी. वह अटका रह जाता है इसी चक्र में और चाह कर भी उस सुकून और संपूर्णता को कभी छू नहीं पाता जिसकी तलाश में बरसों से भटक रहा होता है. ऐसे में कोई ऐसा मिल जाए जो न सिर्फ रास्ता दिखाए, बल्कि निराशा को ही प्रेरणा बना दे और पीड़ा को आनंद में बदल दे, मुश्किलों से भरी जीवन धारा में आनंद की लहर पैदा कर दे, तो आप क्या कहेंगे?

सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक आधुनिक गुरु, दिव्यदर्शी और योगी हैं. विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोड़ों लोगों को एक नई दिशा मिली है. 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को ‘पद्म विभूषण पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया. गौरतलब है कि सद्गुरु ने योग के गूढ़ आयामों को आम आदमी के लिए इतना सहज बना दिया है कि हर व्यक्ति उस पर अमल कर के अपने भाग्य का स्वामी खुद बन सकता है.

सद्गुरु जितनी गहराई से आंतरिक अनुभव एवं ज्ञान से जुड़े हैं, उतनी ही गहराई से सांसारिक मुद्दों से भी अध्यात्म के ऊपर सद्गुरु की दक्षता उनके गहन आंतरिक अनुभव का ही परिणाम है, जिससे वे अध्यात्म की खोज करने वालों का मार्गदर्शन करते हैं. उन्हें दुनिया भीर के प्रतिष्ठित मंचों पर मानवाधिकार, कारोबार मूल्यों और सामाजिक, पर्यावरण और अध्यात्म संबंधी विविध मुद्दों पर बोलने के लिए बुलाया जाता है. एक प्रमुख वक्ता के रूप में, सद्गुरु ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में मानव कल्याण जैसे मुद्दों को संबोधित किया है. इसके अतिरिक्त वे मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, लंदन बिज़नेस स्कूल, वर्ल्ड प्रेसिडेंट आर्गेनाइजेशन, हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स (यूके) संयुक्त राष्ट्र संघ मिलेनियम शांति सम्मेलन और विश्व शांति कांग्रेस का भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. सद्गुरु ईशा फाउंडेशन के संस्थापक भी हैं, जो पिछले तीन दशकों से व्यक्तिगत और विश्व कल्याण को समर्पित एक गैर लाभकारी संगठन है.

सद्गुरु जीवन के हर पहलू को एक उत्सव की तरह जीते हैं. उनकी रुचि जीवन के लगभग हर क्षेत्र में है- शिल्प और डिज़ाइन, काव्य और चित्रकला, खेल और संगीत, पर्यावरण और कृषि. ईशा योग केंद्र में स्थापित कई भवनों के वे डिज़ाइनर हैं, जो अपनी अनूठी कलात्मकता के लिए विख्यात हैं. एक योगी व दिव्यदर्शी के रूप में उन्होंने इस पूरे योग केंद्र की प्राण प्रतिष्ठा की है, जो आत्म-रूपांतरण के लिए एक बेहतरीन जगह है. प्राचीनता से आधुनिकता में सहज विचरते हुए, ज्ञात और अज्ञात के बीच एक सेतु बनकर, सद्गुरु अपने सान्निध्य में आने वाले हरेक व्यक्ति को जीवन के गहरे आयामों को खोज और उनका अनुभव करने के लिए सामर्थ्य बनाते हैं.

सद्गुरु की किताब ‘चाहो और पा लो’ अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद एच. बालसुब्रह्मण्यम ने किया है. यह एक नॉन फिक्शनल किताब है, जिससे पढ़ते हुए पाठक हर अध्याय में अपनी ज़िंदगी की चुनौतियों को तलाश सकता है, लेकिन ख़ास बात यह है कि सद्गुरु के निवारण बोझिल जीवन में साहस भरने का काम करते हैं. नि:संदेह सद्गुरु अपने अनोखे व निराले लेखन और जीवन के उदाहरणों के साथ सीधे सरल शब्दों में कहकर पाठकों के मन में अमिट रूप से अंकित करने की कला में बेजोड़ हैं. प्रस्तुत है ‘चाहो और पा लो’ किताब से एक अंश-

पुस्तक अंश: क्या आपका वक्त ठीक नहीं है?
एक दिन शंकरन पिल्लै दवाइयों की दुकान पर गए. कहने लगे, ‘ऐसा साइनाइड चाहिए जिसे खाने के अगले क्षण जान चली जाए.’ उनका हुलिया देखने पर लगता था कि घर में आज ज़बर्दस्त झगड़ा करके आए हैं.

‘यहां पर साइनाइड यों नहीं मिलेगा’ दुकानदार ने कहा.

शंकरन पिल्लै छोड़ने वाले नहीं थे. ज्यों-ज्यों दुकानदार मना करते रहे, पिल्लै गिड़गिड़ाते रहे.

एक मुकाम पर आकर दुकानदार ने पूछा, ‘आपको साइनाइड किसलिए

चाहिए?’

‘मेरी पत्नी को खिलाने के लिए उसकी ज़रूरत है. ‘ दुकानदार चौंक गए, ‘तब तो निश्चित रूप से नहीं दे सकते.’ शंकरन पिल्लै ने जेब से अपनी पत्नी का फोटो निकालकर दिखाया. दुकानदार ने उसे देखकर झट कहा, ‘ओह, यह महिला ! अरे रे, आप पहले ही कह सकते थे न कि आपके पास डॉक्टर की पर्ची है.’

शंकरन पिल्लै की स्थिति पर हंसने में हमें मजा आता है. अगर कोई हमसे कहता है, ‘कोई दो जने थे, खुशी से जिए, तो हमें लगता है इसमें क्या खास बात है ? जब वे एकसाथ मिलकर रहते हैं, मामला फीका हो जाता है. यदि वे असहनीय पीड़ा से गुज़रें और उनकी हालत काफी बुरी हो, जान निकलने की नौबत आ जाए तो आप उसे चटखारे लेकर देखने और मज़ा लेने के लिए तैयार हो जाते हैं.

अनंत आकाश सभी दिशाओं में अखंड रूप से व्याप्त है, जिसके विस्तार की आप कल्पना तक नहीं कर सकते. उसमें बहुत सारे ब्रह्मांड सक्रिय हैं जिनकी आप गणना नहीं कर सकते. परंतु बिना शोर शराबे के साथ चल रही किसी भी घटना को देखकर चौंकने के लिए आपके पास समय नहीं है

बगीचे में एक हरी-हरी घास उगी है, जो कल नहीं थी. लेकिन उस पर गौर करने के लिए कोई नहीं है. घास के बीच एक निहायत खूबसूरत नन्हा-सा फूल खिला है. वह आपके ध्यान में दर्ज नहीं होता. मान लें कि उसी बगीचे में एक छोटा-सा सांप टेढ़े-मेढ़े चलता है. ओह उस पर कितना हो-हल्ला, कितना शोर-शराबा ! यह ज़रूरी नहीं है कि उस सांप को सभी लोग देखें. बस एक आदमी की नज़र पड़नी काफी है. उससे सुनकर जानने के लिए लोग कितने चाव से वहां इकट्ठे हो जाते हैं! भले ही सांप छोटा हो, उसके बारे में बोलते-बोलते उसे कितना महत्वपूर्ण बना देते हैं? जीवन की भी यही हालत है. आपको सनसनी की ज़रूरत पड़ती है.

लेकिन आप यही चाहते हैं कि आपने जो योजना बनाई, वह बिना अड़चन के पूरी हो जाए. जीवन में चुनौतियों का सामना करने का साहस आपके अंदर नहीं है. आप चाहते हैं कि किसी भी चुनौती के बिना जिंदगी एक सीधी रेखा में सपाट चले, भले ही उसमें कोई जान न हो. आप अपने नाटक में ऐसा किरदार नहीं बनना चाहते जिसमें मार-मारकर आपका कचूमर निकाला जाए. किसी और की ज़िंदगी में इस तरह की कठिन परीक्षाएं आएं, तो दूर से उसका तमाशा देखने में आपको कोई हिचक नहीं है. यहीं है न आपका नज़रिया ?

आम तौर पर थके-हारे लोगों द्वारा पेश किए जाने वाले तर्क क्या होते हैं? ‘मेरा तो वक्त ही ठीक नहीं है. जब मैं आटा बेचने जाता हूं, जोर की हवा चलती है. मैं जब नमक बेचने जाता हूं तो तगड़ी बारिश होती है.’

आप मानें या न मानें, दुनिया आपके ऊपर समस्याएं फेंककर तमाशा देखने का मन बना चुकी है, फिर उनका सामना करने से क्यों हिचकते हैं?

पुस्तक : चाहो और पा लो (नॉन फिक्शन)
लेखक : सद्गुरू
अनुवाद : एच. बालसुब्रह्मण्यम
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स
मूल्य : 250 रुपए

Tags: Book, Hindi, Hindi Literature, Hindi Writer, Motivational Story

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