Sanskrit School: जुनून की अनोखी दास्तां, बच्चों की लाने के लिए 11 सालों से टीचर आरती का प्रयास, बंद पड़े स्कूल में 100 नामांकन का लक्ष्य

Last Updated:March 09, 2025, 20:25 IST
Sanskrit School: शिक्षिका आरती की स्कूल बचाने व वंचितों को शिक्षा दिलाने की यह जिद पिछले 11 साल से जारी है. वे इन बच्चों को उनके घर से स्कूल तक ले जाने व वहां से वापस लाकर छोड़ने के लिए रोज अपनी गाड़ी का उपयोग …और पढ़ेंX
महिला शिक्षका अपने खर्चे पर शहर से गांव में पढ़ने के लिए लेकर जाती है झुग्गी झोप
हाइलाइट्स
शिक्षिका आरती 11 साल से बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने का उठा रही हैं खर्चझुग्गी बस्ती के बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए आरती ने किया अपनी गाड़ी का उपयोगस्कूल का नामांकन 100 तक पहुंचाना है आरती का लक्ष्य
झुंझुनू. वर्ष 2011 में बाकरा गांव में सरकार राप्रा संस्कृत विद्यालय प्रथम और राप्रा संस्कृत विद्यालय द्वितीयदो संस्कृत स्कूल खोले थे. कम नामांकन के कारण एक स्कूल (राप्रावि द्वितीय) को बंद कर दिया गया. 2013-14 में महिला शिक्षिका आरती के स्कूल में भी केवल 7 बच्चे थे और स्कूल बंद होने का खतरा था.
स्कूल बंद नहीं होने देने का लिया था प्राणआरती ने बताया कि उन्होंने प्रण लिया था कि कम नामांकन के कारण स्कूल बंद नहीं होने देंगे. इसलिए उन्होंने झुंझुनूं की कच्ची बस्ती और झुग्गी बस्तियों के बच्चों को स्कूल लाना शुरू किया. शुरुआत में वह अपनी कार में बच्चों को लाती थीं. जब बच्चों की संख्या बढ़ी तो एक टेम्पो का इंतजाम किया. अब रोज 25 से 30 बच्चे झुंझुनूं से बाकरा जाते हैं. 2014 से इन बच्चों को लाने और ले जाने का सारा खर्च आरती खुद वहन कर रही हैं. वह बच्चों की स्टेशनरी सहित सभी खर्च उठाती हैं ताकि कच्ची बस्ती और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चे शिक्षा से वंचित न रहें. उन्होंने तय किया था कि साल भर में अपना एक वेतन उन बच्चों पर खर्च करेंगी जो आर्थिक कारणों से स्कूल नहीं जा पाते.
स्कूल का नामांकन बढ़कर हुआ 56अब स्कूल का नामांकन बढ़कर 56 हो गया है. पांचवीं पास करने के बाद इन बच्चों को बाकरा के ही सीनियर सैकंडरी स्कूल में प्रवेश दिला देती हैं ताकि वे 12वीं तक पढ़ाई कर सकें. शिक्षिका आरती की स्कूल बचाने और वंचितों को शिक्षा दिलाने की यह जिद पिछले 11 साल से जारी है. वह इन बच्चों को उनके घर से स्कूल तक ले जाने और वापस लाने के लिए रोज अपनी गाड़ी का उपयोग करती हैं.
100 नामांकन तक पहुंचाने का है लक्ष्यआरती ने बताया कि 2014 में स्कूल का नामांकन कम होता देख उन्होंने हवाई पट्टी के पास स्थित झुग्गी झोपड़ी के बच्चों का स्कूल में प्रवेश करवाया. पहले साल अपनी गाड़ी में 11 बच्चों को ले जाना शुरू किया. उस समय स्कूल का नामांकन बढ़कर 25 हो गया. इसके बाद 2016 में बच्चों की संख्या 25 हो गई. तब उन्होंने अपने खर्च पर एक ऑटो भी लगवाया. वर्तमान में झुंझुनूं से 30 बच्चे जा रहे हैं और उनका लक्ष्य नामांकन 100 तक पहुंचाने का है.
वाहन के अभाव में बच्चे स्कूल से थे दूरझुग्गी बस्ती के बच्चे स्कूल जाने को तैयार थे, लेकिन समस्या थी कि वे स्कूल तक कैसे जाएं. आरती ने बताया कि 2011 में जब उन्होंने स्कूल जॉइन किया था, तब स्कूल किराए के भवन में चलता था और केवल 7 बच्चे ही पढ़ने आते थे। जब स्कूल का नया भवन तैयार हो गया तो उन्होंने झुंझुनूं की झुग्गी बस्ती में जाकर वहां रहने वाले लोगों को समझाया और कहा कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें, उनका एक रुपया भी नहीं लगेगा. तब वे तैयार हो गए, पर समस्या बच्चों के झुंझुनूं से बाकरा तक जाने और आने की थी. तब आरती ने यह जिम्मेदारी उठाई और अपनी गाड़ी से बच्चों को स्कूल ले जाने और वापस लाने की शुरुआत की. बच्चों की संख्या बढ़ी तो एक टैम्पो का इंतजाम किया.
Location :
Jhunjhunu,Jhunjhunu,Rajasthan
First Published :
March 09, 2025, 20:25 IST
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वाहन की कमी से बंद पड़ा था स्कूल, 11 सालों से टीचर आरती खर्च कर रही अपना पैसा