सऊदी का दौरा, अरबी का कलमा… डोनाल्ड ट्रंप ने एक लाइन से बढ़ा दी इजरायल की टेंशन, टकटकी लगाए देख रहे होंगे नेतन्याहू

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों सऊदी अरब के दौरे पर हैं. राजधानी रियाद में उन्होंने सऊदी के वली अहद (क्राउन प्रिंस) से जिस तरह से मुलाकात की और फिर जो मैसेज दिया वह जरूर इजरायल की टेंशन बढ़ाने वाला होगा. इस दौरान उनकी एक तस्वीर ने सभी लोगों का ध्यान खींचा और इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को उसे टकटकी लगाए देख रहे होंगे. दरअसल डोनाल्ड ट्रंप जिस मंच से अरबी लोगों को संबोधित कर रहे थे, उसके पीछे अरबी का एक कलमा लिखा था. इस दौरान ट्रंप ने कहा कि सऊदी अरब और इजरायल के बीच औपचारिक रिश्ते बनाना उनका ‘सपना’ है, लेकिन उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि यह फैसला सऊदी को अपनी ‘मर्जी और समय’ पर करना चाहिए.
उधर व्हाइट हाउस ने भी सऊदी अरब के साथ रक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में सैकड़ों अरब डॉलर के डील की घोषणा की है, लेकिन कहीं भी इजरायल का नाम नहीं लिया गया. ट्रंप प्रशासन के इस बदले हुए रुख को लेकर जानकारों का कहना है कि अब अमेरिका की प्राथमिकता इजरायल-सऊदी संबंध नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता है.
अरबी में क्या लिखा था?
डोनाल्ड ट्रंप जिस मंच से इजरायल और सऊदी के रिश्तों पर अपना रुख साफ कर रहे थे, उसके पीछे अरबी में इस्लाम का एक बुनयादी कलमा लिखा था. इसमें लिखा था, ‘ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह’… इसका मतलब है, ‘अल्लाह के अलावा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है, और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं.’ यह इस्लामी अकीदे यानी विश्वास का आधार है, जिस पर यकीन इस्लाम का पालन करने वाले हर मुसलमान के लिए जरूरी है.
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उधर ट्रंप ने साफ कर दिया कि फिलहाल गाजा युद्ध और इजरायल की फिलिस्तीनी राज्य के गठन पर बातचीत से इनकार को देखते हुए सऊदी-इजरायल समझौते का समय सही नहीं है. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में यूएई समेत कई अरब देशों के साथ अब्राहम समझौतों (Abraham Accords) के जरिये इजरायल के संबंध सामान्य किए थे. लेकिन फिलिस्तीन के सवाल को दरकिनार करने वाली इन डील्स का जमीनी असर नहीं दिखा.
अब्राहम एकॉर्ड पर सऊदी से सवाल
अक्टूबर 2023 में गाजा युद्ध के बाद यह साफ हो गया कि अब्राहम एकॉर्ड क्षेत्रीय संकटों को सुलझाने में फेल रहे हैं. इसी वजह से बाइडन प्रशासन का सऊदी को अब्राहम एकॉर्ड में शामिल करने का प्रयास भी विफल रहा. बाइडन ने दावा किया था कि हमास का 7 अक्टूबर हमला इसी संभावित सऊदी-इजरायल समझौते को रोकने के लिए हुआ था. मगर अमेरिकी अधिकारियों की तमाम कोशिशों के बावजूद यह डील आखिरी समय तक नहीं हो सकी.
अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, 2002 के अरब शांति प्रस्ताव पर सऊदी अरब अब भी कायम है, जिसके तहत इजरायल को फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देनी होगी तभी उससे संबंध सामान्य हो सकते हैं. मगर नेतन्याहू सरकार इस ‘लैंड फॉर पीस’ फॉर्मूले को पूरी तरह खारिज कर चुकी है. दरअसल इजरायली सरकार दो-राष्ट्र सिद्धांत पर कतई तैयार नहीं. ऐसे में सऊदी अरब के लिए आगे बढ़ना असंभव है और ट्रंप प्रशासन को भी अब यह बात समझ आ गई है.
इजरायल को किनारे कर ट्रंप ने किए बड़े सौदे
रियाद में डोनाल्ड ट्रंप ने 142 अरब डॉलर के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत अमेरिका सऊदी को हाईटेक सैन्य उपकरण, प्रशिक्षण और सपोर्ट देगा. इसमें सैन्य अकादमियों और मेडिकल सेवाओं को मजबूत करने पर भी जोर है.
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गौर करने वाली बात यह भी है कि हाल के हफ्तों में ट्रंप और नेतन्याहू के बीच तनाव बढ़ा है. ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु बातचीत शुरू करने का संकेत दिया है, जिससे इजरायल नाखुश है. साथ ही, ट्रंप ने हूती विद्रोहियों के साथ संघर्ष विराम की घोषणा भी की, जिसमें इजरायल पर हमलों को रोकने की कोई शर्त नहीं रखी गई.
नेतन्याहू देख रहे होंगे टकटकी लगाए
गाजा युद्ध के दौरान हमास की तरफ से पकड़े गए अमेरिकी-इजरायली सैनिक एडन अलेक्जेंडर की रिहाई के लिए भी अमेरिका ने कतर और मिस्र के जरिए मध्यस्थता की, लेकिन इजरायल को इन बातचीतों से बाहर रखा गया.
इन सभी घटनाक्रमों से यह साफ हो गया है कि ट्रंप अब इजरायल को लेकर पहले जैसे उत्साही नहीं हैं. सऊदी के दरबार से निकली एक लाइन ‘अपनी मर्जी से करेंगे’ – ने नेतन्याहू की टेंशन बढ़ा दी है, और अब वे वाशिंगटन की ओर टकटकी लगाए देख रहे होंगे कि आगे कारोबारी बुद्धि वाले डोनाल्ड ट्रंप इजरायल की दोस्ती देखते हैं या सऊदी का पैसा…