Save Aravalli Movement Live: अरावली पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बवाल, राजस्थान में तेज हुआ ‘सेव अरावली’ आंदोलन

जयपुर. अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2025 के फैसले के बाद राजस्थान में पर्यावरण प्रेमियों, राजनीतिक दलों और स्थानीय निवासियों में गहरा आक्रोश फैल गया है. कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशों को मानते हुए अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा तय की है, जिसमें केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियां ही संरक्षित मानी जाएंगी. इस फैसले से राजस्थान में अरावली के करीब 90 प्रतिशत हिस्से संरक्षण से बाहर हो सकते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर खनन की आशंका बढ़ गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को दिए आदेश में स्पष्ट किया कि नई खनन लीज पर रोक लगाई गई है और पूरे अरावली क्षेत्र के लिए ‘सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान’ तैयार होने तक कोई नई माइनिंग गतिविधि नहीं होगी. मौजूदा वैध खदानों को सख्त पर्यावरणीय मानदंडों के साथ चलने की अनुमति है. केंद्र सरकार का दावा है कि इस परिभाषा से 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र संरक्षित रहेगा और केवल 0.19 प्रतिशत इलाके में ही सीमित खनन संभव है.
अरावली की अधिकांश पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंचाई की है
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने रविवार को कहा है कि कोई छूट नहीं दी गई है, झूठ फैलाया जा रहा है और अरावली का विस्तार हो रहा है. लेकिन पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह परिभाषा वैज्ञानिक नहीं बल्कि खनन हितों को फायदा पहुंचाने वाली है. अरावली की अधिकांश पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंचाई की हैं, जो थार रेगिस्तान को रोकने, भूजल रिचार्ज करने और प्रदूषण नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाती हैं. ‘पीपल फॉर अरावली’ की संस्थापक नीलम अहलूवालिया ने इसे अरावली के लिए मौत का वारंट बताया. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र पर आरोप लगाया कि यह फैसला खनन माफियाओं को फायदा पहुंचाने की साजिश है और 90 प्रतिशत अरावली गायब हो जाएगी.
राजस्थान में तेज हो गए है विरोध प्रदर्शन
राजस्थान में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं. शेखावाटी क्षेत्र में ‘अरावली बचाओ, देश बचाओ’ के नारे गूंज रहे हैं. गुरुग्राम में अरावली बचाओ संस्था के कार्यकर्ता हरियाणा के मंत्री राव नरबीर सिंह के आवास के बाहर धरना दे रहे हैं. सोशल मीडिया पर #SaveAravalli ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग पुरानी तस्वीरें साझा कर रहे हैं कि पिछले दशकों में अवैध खनन से 30 से अधिक पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं. कार्यकर्ता जयेश जोशी ने कहा कि यह फैसला आदिवासी समुदायों और कृषि पर सीधा असर डालेगा. राजनीतिक मोर्चे पर भी हलचल है. कांग्रेस ‘सेव अरावली’ कैंपेन चला रही है, जबकि कुछ बीजेपी नेता भी सवाल उठा रहे हैं. पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. लक्ष्मीकांत शर्मा का कहना है कि ऊंचाई आधारित परिभाषा से अधिकांश पारिस्थितिकी प्रभावित होगी. केंद्र सरकार ने दावा किया कि यह परिभाषा राजस्थान में 2006 से लागू थी और अब इसे पूरे देश में एकसमान बनाया गया है.
दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमाला है अरावली
अरावली, जो 692 किमी तक फैली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमाला है, उत्तर भारत की “ग्रीन वॉल” है. यह थार रेगिस्तान को रोकती है, भूजल बढ़ाती है और जैव विविधता संरक्षित करती है. पर्यावरणविद चेतावनी दे रहे हैं कि यदि खनन बढ़ा तो रेगिस्तान दिल्ली तक पहुंच सकता है, पानी की कमी बढ़ेगी और मौसम चक्र प्रभावित होगा. वर्तमान में पुलिस और प्रशासन प्रदर्शनों पर नजर रखे हुए है. लेकिन सवाल वही है कि क्या यह फैसला संरक्षण की दिशा में है या खनन के लिए दरवाजा खोलने वाला? ‘सेव अरावली’ आंदोलन अब पूरे देश की नजरों में है और आने वाले दिनों में इसका दायरा बढ़ने की संभावना है.



