World

मलेशिया में बढ़ रहे बच्चा ना पैदा करने वाले कपल, इस्लाम के लिए कैसे बनी चुनौती? स्कॉलर ने समझाया

तोक्यो: शादी के बाद बच्चा न करने वाले लोगों की बढ़ती संख्या ने खासतौर से मलय समुदाय के बीच तीखी बहस शुरू कर दी है. यह मलेशिया के सार्वजनिक विमर्श पर गहरे धार्मिक प्रभाव को दर्शाता है. साल 2024 के मध्य में मलेशिया की मलय भाषा के सोशल मीडिया मंचों पर ऐसी शादी की बढ़ती प्रवृत्ति पर गहन बहस चल रही थी, जिसमें दंपति जानबूझकर बच्चे पैदा नहीं करने का विकल्प चुनते हैं.

इस विषय ने तब तूल पकड़ लिया जब दंपतियों ने संतान मुक्त जीवन जीने के बारे में कहानियां साझा कीं. देश के धार्मिक प्राधिकरणों और मंत्रियों ने भी इस बहस में हिस्सा लिया. धार्मिक मामलों के मंत्री मोहम्मद नईम मुख्तार ने दावा किया कि संतान न पैदा करने की प्रवृत्ति इस्लाम की शिक्षाओं के विपरीत है और उन्होंने कुरान की आयतों का हवाला देकर इस्लाम में परिवार के महत्व पर जोर दिया.

पढ़ें- सेक्युलर शपथ लेने वालों को सेना से बाहर कर दूंगा, एर्दोगन को तुर्की के निर्माता मुस्तफा कमाल पाशा से इतनी नफरत

इस्लाम में बढ़ावा नहीं दिया जाताबच्चे न पैदा करने की जीवन शैली इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत हैं क्योंकि यह पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत (कहावतों और शिक्षाओं) के खिलाफ है, जिन्होंने बच्चे पैदा करने को प्रोत्साहित किया था और केवल जिम्मेदारी से बचने के लिए बच्चे पैदा करने से बचना इस्लाम में मकरूह (हतोत्साहित) माना जाता है. ‘फेडरल टेरिटरीज मुफ्ती ऑफिस’ ने कहा कि स्वास्थ्य जोखिमों के कारण बच्चे पैदा न करने की अनुमति है लेकिन बिना किसी वैध कारण के इस रास्ते को चुनने को इस्लाम में बढ़ावा नहीं दिया जाता है.

मंत्री ने कपल का किया बचावइस बीच, महिला, परिवार और सामुदायिक विकास मंत्री नैंसी शुक्री ने दंपतियों के बच्चा पैदा न करने की पसंद का बचाव किया. मलेशिया की निम्न कुल प्रजनन दर पर चर्चा करने वाली संसदीय बहस के बाद उन्होंने बयान दिया. उन्होंने कहा कि सरकार उन दंपतियों की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है जो बच्चे चाहते हैं लेकिन बांझपन की समस्याओं से जूझ रहे हैं.

सरकारी अधिकारियों तथा धार्मिक प्राधिकारियों के ये जवाब दिखाते हैं कि मलेशिया में यह मुद्दा कितना महत्वपूर्ण है जिसकी दो-तिहाई आबादी मुस्लिम है. मलय भाषा के सोशल मीडिया मंचों पर बहस को तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है : आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारणों का हवाला देकर बच्चा न करने वाली प्रवृत्ति के समर्थक, धार्मिक व्याख्याओं और विवाह के उद्देश्य पर आधारित विरोधी और ‘‘संदर्भवादी’’ जो केवल कुछ शर्तो पर बच्चा पैदा न करने के फैसले को स्वीकार कर सकते हैं.

इन चर्चाओं में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासतौर से मलय भाषा के सोशल मीडिया पर, जहां ज्यादातर बहस धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. स्थानीय विद्वानों या धार्मिक प्राधिकारियों ने बच्चे पैदा न करने की प्रवृत्ति को ‘‘गैर-इस्लामिक’’ बताया है. उनका मानना है कि इस्लाम संतान पैदा करने के लिए दंपतियों को शादी के लिए प्रोत्साहित करता है क्योंकि यह जीवन का प्राकृतिक हिस्सा है और इस्लामी न्यायशास्त्र में इसके विशेष उद्देश्य हैं. क्या बच्चे न पैदा करना ‘‘इस्लामिक’’ है, यह सवाल बहस का केंद्र बन गया है.

Tags: World news

FIRST PUBLISHED : September 9, 2024, 14:48 IST

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj