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शारदा सिन्हा: मौत भी एक कोने में उदास थी, लेकिन अपने गुनाह का अहसास उसे भी था | – News in Hindi

कांच ही बांस के बहंगिया

बहंगी लचकत जाए

होई न बलम जी कहरिया

बहंगी घाटे पहुंचाए

कांच की बहंगी बड़ी नाजुक है. उस पर छठी मैय्या का प्रसाद लदा है. बहंगी को उठाने वाले बलम जी बड़ी सावधानी से उसे कंधे पर ले जा रहे हैं. बालम, बहंगी, प्रसाद सब छठ घाट पहुंच गया, आगे भी पहुंचता रहेगा… लेकिन जिस आवाज ने बहंगी-बालम और छठी मैय्या के रिश्ते को अपनी आवाज से अमर कर दिया, वो खुद अब कभी सूर्य देवता को साक्षात् अर्ध्य नहीं दे पाएंगी!

केलवा के पात पर उगे लन सुरुजमल झांके झुके

के करेलू छठ बरतिया से झांके झुके

दिल्ली के एम्स में जब शारदा सिन्हा ने आखिरी सांस ली, तो आसमां के चांद-सितारे संगीत के इस ध्रुवतारे की अगवानी के लिए हाथ जोड़े खड़े थे. मौत भी एक कोने में उदास थी, लेकिन अपने गुनाह का अहसास तो उसे भी था.

पिछले महीने इसी काल ने सुर कोकिला शारदा सिन्हा को उनके जीवनसाथी ब्रज किशोर सिन्हा से जुदा कर दिया था. उनके बेटे अंशुमान के मुताबिक 54 साल के सुख-दुख के साथी का साथ छूटने से शारदा सिन्हा काफी विचलित रहती थीं. खुद सुर कोकिला ने अपने स्वर्गीय पति को याद करते हुए इंस्टाग्राम पर लिखा था- सिन्हा साहब, मैं आपको बहुत याद करती हूं. मेरी सारी बलईयां (मुसीबत) लेकर आप ही क्यों चले गए?

कहने के लिए वो ब्लड कैंसर और कुछ दूसरी बीमारियों से पीड़ित थी, लेकिन जबतक पति का साथ रहा, शारदा सिन्हा मजबूती से हर रोग-व्याधि से लड़ती रही थीं. परिजनों के मुताबिक अपने आखिरी समय में भी वो अपने जीवनसाथी को उसी अंदाज में याद कर रही थीं, जिस अंदाज में उनकी गीत की नायिका अपने पिया को याद कर रही है-

पनिया के जहाज से पलटनिया बनी अइह पिया

ले ले अइहो

पिया सेनुरा बंगाल के

जीवन के हर राग-रंग और रिश्तों की मिठास को शारदा सिन्हा ने बखूबी सुरों में पिरोया है. सोहर के गीत हो या शादी के, संयोग के गीत हो या वियोग के, होली के मस्ती के गीत हो या छठ के आध्यात्मिक गीत, शक्ति के गीत हों या भक्ति के, सभी तरह के गीत शारदा सिन्हा की जुबां पर आकर जिंदा हो उठते थे.

का लेके शिव के मनाई हो, शिव मानत नाही

पूरी कचौड़ी शिव के मनहू ना भावे, भांग धतूरा कहा पाइब

भोले भंडारी को मनाने का मामला है, तो गीत के भाव में थोड़ी उलझन है, संकोच है लेकिन सासू मैय्या को मीठा ताना सुनाना हो तो शारदा सिन्हा का लहजा और अंदाज बिलकुल बदल जाता है.

तार बिजली से पतले हमारे पिया

सासु बता तुने ये क्या किया

फिल्म ‘गैंग ऑफ वासेपुर’ के इस लोकप्रिय गीत को हर गली-कूचे तक पहुंचानेवाली शारदा सिन्हा की पहचान मूल तौर पर लोकगायिका की रही है. उनके ज्यादातर गीत मैथिली, भोजपुरी, मगही, वज्जिका, अंगिका जैसी बोलियों में हैं, लेकिन सिने जगत के कुछ हिंदी नग्मों को भी उन्होंने अपने जादुई आवाज से अमर बना दिया है. मसलन ‘मैंने प्यार किया’ का ये दिल छू लेनेवाला गीत-

कहे तोसे सजना, ये तोहरी सजनिया

पग पग लिये जाऊं, तोहरी बलइयां

बिहार के सुपौल में जन्म लेनेवाली शारदा सिन्हा के कंठ में संगीत की देवी सरस्वती विराजमान थी. अस्सी के दशक से उन्होंने दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के जरिए अपनी सुरीली सफर की शुरुआत की और देखते-देखते संगीत की क्षितिज पर सितारा बनकर छा गईं. शास्त्रीय संगीत में भी उनकी कोई सानी नहीं थी. उन्होंने क्लासिकल संगीत को भी अपने सुरों से सजाया, लेकिन मन उनका अपनी माटी की मिठास को सुरों में पिरोने में ही लगा.

सामा खेले चलली

भौजी संग सहेली

शारदा सिन्हा को गायन के साथ साथ संगीत की भी अच्छी समझ थी. उन्होंने अपने कई गानों का म्यूजिक खुद कंपोज किया है. गीत-संगीत के क्षेत्र में उनके अविस्मरणीय योगदान को सम्मानित करते हुए उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से नवाजा गया, लेकिन खुद शारदा सिन्हा कभी शोहरत और सम्मान के पीछे नहीं भागी. उन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकांश हिस्सा सादगी से अपने गृह राज्य बिहार में ही गुजारा और अपना ज्यादातर समय बिहार की लोकगीतों को ही जन जन तक पहुंचाने में लगाया.

जगदम्बा घर में दियरा बार अइनी ह

जगतारण घर में दियरा बार अइनी ह

सुर साधिका शारदा सिन्हा देव महल में संगीत का दीप जलाकर अपना फर्ज निभा गई. अब उस दीप को प्रज्ज्वलित रखने की जिम्मेदारी नए सुर साधकों की है. सुर कोकिला शारदा सिन्हा की पुण्य स्मृतियों को टीवी 18 परिवार की तरफ शत शत नमन.

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