‘द्वार के छेकाई नेग’ से शुरू हुई जर्नी, आसान नहीं था शारदा सिन्हा का 53 सालों का सफर, सास को पसंद नहीं था बहू का गाना
नई दिल्ली. ‘कहे तोहसे सजना ये तोहरी सजानियां…’ से लेकर ‘पहिले पहल छठी मैय्या’ तक मैथिली, भोजपुरी, हिंदी गानों को आवाज देने वाली पद्मश्री शारदा सिन्हा आज दुनिया को अलविदा कह गईं. बेगूसराय के दियारा स्थित गांव की बहू से लेकर बिहार कोकिला तक का सफर तय करने वालीं गायिका शारदा के लिए ये सफर उनके पिता और पति के वजह से आसान हुआ. 72 साल की उम्र में वो दुनिया को छठ पर्व के दौरान ही अलविदा कह गईं. करीब 5 साल पहले एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि शादी के बाद उन्होंने अपनी सास की नाराजगी झेली, लेकिन गाना नहीं छोड़ा. क्या है ये किस्सा, तो चलिए आपको बताते हैं…
शारदा सिन्हा का जाना सिर्फ बिहारवासियों के लिए ही नहीं पूरे देश के लिए दुखद पल है. इस कमी को शायद ही कोई दूसरी सिंगर कभी पूरा कर सके. पति बृजकिशोर सिन्हा के निधन से सदमे में शारदा कई दिनों से दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थीं और पिछले कुछ दिनों से वेंटिलेटर पर थीं.
‘पिता नहीं होते तो मैं आगे नहीं बढ़ती’बिहार के सुपौल जिला के हुलसा में 1 अक्टूबर 1952 को जन्मीं शारदा सिन्हा के पिता सुखदेव ठाकुर बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे. शारदा सिन्हा को बचपन से ही गाना और डांस का शौक था. बातचीत में उन्होंने बताया था कि अगर मेरे पिता नहीं होते को मैं आज आगे नहीं बढ़ पाता उन्होंने मेरा बहुत साथ दिया. मुझे डांस का शौक था, इसलिए उन्होंने मुझे मणिपुरी डांस सीखाया. लल्लनटॉप के साथ एक बातचीत में उन्होंने बताया था कि साल 1971 में उन्होंने नेक का गीत गाकर अपनी संगीत यात्रा का शुरुआत की थी. अपने बड़े भाई की शादी में नेक का पहला गीत गाया, जिसके बोल थे- ‘द्वार के छेकाई नेग, पहले चुकाए ऐ दुलरुआ भैया’
सास को पसंद नहीं था बहू का गीत गानाशारदा सिन्हा की शादी बेगूसराय के दियारा क्षेत्र सिहमा निवासी ब्रजकिशोर सिन्हा से हुई थी, जहां उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए ससुरालवालों के विरोध का सामना करना पड़ा. उनकी सास को उनका गायिका बनने से आपत्ति थी. बातचीत में शारदा ने बताया था कि सास ने तो विरोध में तीन-चार दिनों तक खाना ही नहीं खाया. मेरे ससुर जी को कीर्तन से बहुत प्यार था. घर के पास ठाकुरबाड़ी मंदिर था. ससुर जी बोले- ‘दुल्हिन ठाकुरबाड़ी में भजन गा देंगी’. ये सुनते ही मेरी सास गुस्से से लाल हो गईं. उन्होंने तुरंत ससुर जी को रोका और कहा- ‘आप तो मन बढ़ा देते हैं. भजन गाने के लिए ठाकुरबाड़ी में जाएंगी नई दुल्हिन?’
‘सास खाना खाए या न खाए मैं तो सुसर के साथ हो गई’शारदा ने आगे बताया था कि ससुर जी की बात सुनने के बाद मैं बहुत खुश थी. सास गुस्सा थी, लेकिन मैं ससुर के साथ हो गई. मैंने सोचा वो खाना खाए या न खाए, मेरे को तो भजन गाना है. गाने का मौका चाहिए था, सोचा बाद में जो होगा देखा जाएगा. हमने वहां जाकर भजन गाया. भगवान राम का भजन वहां गाया था, जिसे बोल हैं- ‘मुझे रघुवर की सुध आई, घर से वन निकले दोनों भाई…’
कब डोला सास का मन?शारदा ने बातचीच में बताया था कि इतना मीठा भजन होने के बाद भी उनकी सास का मन नहीं डोला और न ही नाराजगी कम हुई. घर में कोई तारीफ करता तो वो रिएक्ट नहीं करती थी. लेकिन उनमें थोड़ा बदलाव तब आया, जब दूसरे लोगों मे कहना शुरू किया कि आपकी बहू ने शादी के गाना बहुत अच्छा गाया. उन्होंने बताया था, उस दौर में शादी के गाने आंगन में गाए जाते थे, लेकिन लाउडस्पीकर पर नहीं गाए जाते थे. मैंने आंगन से संस्कार के गीतों को बाहर निकाला है. शारदा ने कहा था कि मैं नहीं जानती थी कि मैं क्या कर रही हूं पर मैंने जो किया वो ये ही था. आंगन के गीत बाहर आए, शादियों में गानें बजने लग गए और फिर धीरे-धीरे संगीत एक इंडस्ट्री के रूप में खड़ी होने लगी और आज तो बहुत बड़ा बाजार है.
‘लोगों का प्यार मेरे लिए कर्ज है…’लोगों से मिलने वाले प्यार को लेकर उन्होंने इसी बातचीत में कहा था कि इतने लंबे समय से लोगों से मिलने वाले इस प्यार के लिए मैं अभिभूत हूं. ये हमारे ऊपर समाज का कर्ज है.
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FIRST PUBLISHED : November 5, 2024, 23:02 IST