बीकानेर में होली पर अनोखी ढूंढ परम्परा, नवजात बच्चों के स्वास्थ्य और वंशवृद्धि के लिए विशेष आयोजन

Last Updated:March 16, 2025, 18:05 IST
बीकानेर में होली पर अनोखी परम्परा चली आ रही है. होली पर नवजात बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य एवं वंशवृद्धि के लिए ढूंढ परम्परा चली आ रही है. नकारात्मक ऊर्जा को मिटाने, टोने टोटके, काले जादू जैसे अंधविश्वासों से मुक्…और पढ़ेंX
माली और श्रीमाली समाज के लोग ढूंढ परम्परा का आज भी निर्वहन कर रहे है.
बीकानेर में होली पर अनोखी परम्परा चली आ रही है. होली पर नवजात बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य एवं वंशवृद्धि के लिए ढूंढ परम्परा चली आ रही है. जो आज भी जारी है. बीकानेर में इन दिनों कई घरों में माली और श्रीमाली समाज के लोग ढूंढ परम्परा का आज भी निर्वहन कर रहे है.
माली समाज के जेठाराम सोलंकी ने बताया कि पूर्वजों के मुताबिक, सीमित चिकित्सा सुविधाओं के चलते परिवारों में नवजात बच्चे जीवित नहीं रह पाते थे. अथवा शादी के कई वर्षों बाद भी बच्चे का जन्म नहीं होने से समाज में कई तरह की आशंकाएं और भ्रांतियां फैल जाती थीं. नकारात्मक ऊर्जा को मिटाने, टोने टोटके, काले जादू जैसे अंधविश्वासों से मुक्ति के लिए माली समाज के बारह बासों में सदियों पहले ढूंढ परंपरा शुरू की गई. ढूंढ मंडली अलग-अलग जगह अलग-अलग तरह की शब्दावली का इस्तेमाल करती है. जिनका अमर ढूंढ होता है. वे किसी कारणवश बीकानेर से बाहर हो तो उनके पहनने के कपड़े के सामने ढूंढ होता है. माली समाज के साथ आस-पास रहने वाले अन्य समाज के लोग भी ढूंढियों को आमंत्रित करने लगे हैं.
नकारात्मक ऊर्जा दूर करने के उपायवर्षों पहले अल्प राशि व नाश्ते के रूप में हर जगह मोटी भुजिया एवं रेवडी जरूर मिलती थी, लेकिन बदले जमाने में बख्शीश में बड़ी राशि एवं कई तरह की मिठाइयां भी मिल जाती है. हालांकि, उनमें भी मोटे भुजिए और रेवड़ी जरूर होती है. रियासत काल से माली बाहुल्य किसमीदेसर, क्षेत्रों भीनासर सुजानदेसर, गंगाशहर, श्रीरामसर, नाथूसर बास, गिन्नाणी पंवारसर आदि जगह पर ढूंढ परंपरा का निर्वहन आज भी जारी है. ढूंढ के दौरान मिलने वाल खाने-पीने की वस्तुओं को सन बांटकर खा लेते हैं. तो नेक के रूप में मिलने वाली राशि सब जग धार्मिक अथवा सामाजिक काम-खर्च कर दी जाती है.
डंडों से जोर-जोर से पीटतेइस परंपरा के तहत होलिका दहन के बाद माली समाज के अलग-अलग मोहल्लों में बच्चे, किशोर, युवा और बुजुर्ग चौसंगी, डंडे और डांडिया लेकर उन घरों में पहुंच जाते हैं, जहां नवजात शिशु का जन्म हुआ है अथवा जिनके घर में कई मन्नते मांगने के बाद बच्चे का जन्म हुआ हो. वहां पर वे घर के मुख्य दरवाजे की चौखट पर चौसंगी रख कर डांडिया अथवा डंडों से जोर-जोर से पीटते हुए पारंपरिक शब्दावली का उच्चारण करते हैं. इनके सामने मां अथवा घर का सदस्य नवजात शिशु को गोद में लेकर बैठ जाती हैं.
Location :
Bikaner,Rajasthan
First Published :
March 16, 2025, 18:05 IST
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होली पर अनोखी ढूंढ परम्परा, नवजात बच्चों के स्वास्थ्य लिए विशेष आयोजन