State And City Government Both Are Strugling – ‘दुर्व्यवहार’ शब्द पर जूझे दोनों ‘सरकार’

ग्रेटर निगम महापौर निलंबन प्रकरण : वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से तीन दिन तक चली सुनवाई

जयपुर. ग्रेटर नगर निगम के महापौर पद से सौम्या गुर्जर के निलंबन के मामले में हाईकोर्ट की अवकाशकालीन विशेष पीठ ने तीन दिन तक सुनवाई की। दोनों पक्ष दुव्र्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि के निलंबन और दुव्र्यवहार शब्द की व्याख्या को लेकर जूझते रहे।
राज्य सरकार, स्थानीय निकाय विभाग व नगर निगम आयुक्त की ओर से इस मामले में महाधिवक्ता एम.एस. सिंघवी व अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल मेहता ने पैरवी की। वहीं सौम्या गुर्जर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद व कार्यवाहक महापौर शील धाभाई की ओर से अधिवक्ता नाहर सिंह माहेश्वरी ने पक्ष रखा।
सौम्या के वकील का आरोप
निलंबित महापौर सौम्या गुर्जर की ओर से कहा कि एफआइआर में न तो महापौर पर कोई आरोप था और न उसका नाम था। नहीं था। निलंबन पूरी तरह राजनीतिक है। नगरपालिका अधिनियम 2009 की धारा 39 पर सवाल उठाते हुए कहा कि जनप्रतिनिधियों को इस तरह हटाना पूरी तरह गलत है। प्रारंभिक जांच में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी पर ज्यूडिशियल रिव्यू किया जा सकता है।
सरकार की सफाई
राज्य सरकार का कहना था कि नगर पालिका अधिनियम की धारा 39-ए के तहत दुर्व्यवहार के आधार पर जनप्रतिनिधि को हटाया जा सकता है। दुर्व्यवहार को परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता। ऐसे में निलंबन संविधान के अनुकूल है। निगम का कार्य आवश्यक सेवा में आने से नोटिस के जवाब के लिए रविवार को याचिकाकर्ता को बुलाना विधिसम्मत था। याचिकाकर्ता ने धारा 39 की वैधानिकता को चुनौती की आड़ में निलंबन के खिलाफ याचिका दायर की है।
न्यायिक जांच और आपराधिक मामला, दोनों जारी रहेंगे
ग्रेटर नगर निगम जयपुर के महापौर पद से सौम्या गुर्जर के निलंबन को लेकर न्यायिक जांच और महापौर के कमरे में हुए आपराधिक मामले दोनों की कार्यवाही जारी रहेगी। विधि विभाग में विशिष्ट सचिव मुदिता भार्गव मामले की न्यायिक जांच कर रही हैं, जहां 30 जून को सुनवाई होनी है। वहीं आपराधिक मामले की सुनवाई जयपुर महानगर-प्रथम क्षेत्र के मजिस्ट्रेट कोर्ट में लंबित है, जहां 14 जून को निलंबित महापौर सौम्या गुर्जर व तीन अन्य पार्षदों के खिलाफ चार्जशीट पेश हो चुकी है।
धाभाई दो माह के लिए या नया महापौर?
नगरपालिका अधिनियम के तहत राज्य सरकार कार्यवाहक महापौर की नियुक्ति करती है, जिसका कार्यकाल 2 माह रहता है। सरकार चाहे तो कार्यकाल बढ़ा सकती है। सरकार के पास कार्यकाल बढ़ाने या दूसरे पार्षद को कार्यवाहक महापौर बनाने का अधिकार है। निलंबन काल में चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। पिछले वर्षों में कई शहरी निकायों में कार्यवाहक महापौर का कार्यकाल 6 से 8 माह तक बढ़ाए हैं।
हटाने के प्रावधान को 62 साल बाद चुनौती
नगरपालिका अधिनियम 2009 में दुर्व्यवहार के मामले में कार्यवाही का प्रावधान 1959 के अधिनियम से कॉपी किया है। इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि 62 साल बाद किसी प्रावधान को चुनौती दी जा सकती है क्या, यह अपने आप में एक बहस का विषय है।