Stone pelting on dalit baaraat in jaipur of rajasthan 4 baaraati injured atrocities on sc st rjsr

हीरालाल सैन.
जयपुर. राजस्थान में आजादी के सात दशक बाद आज भी कुछ जगहों पर लोगों को दलित दूल्हे (Dalit Groom) का घोड़ी पर बैठना रास नहीं आ रहा है. इसकी बानगी एक बार फिर देखने को मिली है. जयपुर जिले के कोटपूतली इलाके में दलित दूल्हे ने घोड़ी पर बैठकर तोरण मारा तो कुछ ग्रामीणों को यह पसंद नहीं आया. उन्होंने पुलिस जाब्ते के बीच ही बारात पर पथराव (Stone Pelting) कर दिया. इससे बारातियों और वधू पक्ष के लोगों में अफरातफरी मच गई. पथराव में चार बारातियों के चोटें आई बताई जा रही है. वहीं कई वाहन क्षतिग्रस्त हो गए.
जानकारी के अनुसार घटना जयपुर जिले के कोटपूतली के राजनोता गांव के पास कैराड़ी की ढाणी की है. यहां गुरुवार रात को दलित परिवार का दूल्हा गांव में बारात लेकर पहुंचा था. यहां कुछ असामाजिक तत्वों को दूल्हे का घोड़ी पर बैठना नागवार गुजरा. रात को दूल्हे ने जैसे ही तोरण मारा उसके बाद कुछ ग्रामीणों ने बारात पर पथराव कर दिया. हालांकि इस दौरान पुलिस जाब्ता मौजूद था लेकिन वह कुछ नहीं कर पाया.
जान बचाने के लिये इधर उधर भागे बाराती
इससे वहां अफरातफरी का माहौल हो गया. बाराती और वधू पक्ष के लोग जान बचाने के लिये इधर उधर भागने लगे. लेकिन तब तक पथराव करने वाले लोग अंधेरे का फायदा उठाकर वहां से भाग छूटे. घटना की सूचना पर तत्काल जयपुर ग्रामीण एसपी मनीष अग्रवाल और क्षेत्रीय विधायक इंद्राज गुर्जर वहां पहुंचे. उन्होंने परिजनों और बारातियों से समझाइश की. इसके बाद दूल्हा-दुल्हन ने पुलिस सुरक्षा के बीच सात फेरे लिए.
दलित समाज में आक्रोश व्याप्त
घटना से दलित समाज में आक्रोश व्याप्त हो गया. परिजनों का आरोप है कि करीब 10 दिन पहले घटना का अंदेशा जताते हुए पुलिस को सूचना दे दी गई थी. बावजूद इसके मौके पर महिलाओं की सुरक्षा हेतु महिला कांस्टेबल तक का इंतजाम नहीं किया गया. परिवार और बाराती पुलिस अभिरक्षा में ही कुछ समाज कंटकों की ओछी मानसिकता का शिकार हो गए. इस घटना से दलित समाज में आक्रोश व्याप्त हो गया है। वे आरोपियो की गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरने पर बैठ गए.
राजस्थान में पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनायें
उल्लेखनीय है कि राजस्थान में दलितों के घोड़ी पर बैठने पर दबंगों द्वारा हुड़दंग करने की पहले भी घटनायें हो चुकी है. कई बार शादियां पुलिस अभिरक्षा में करवानी पड़ती हैं. बावजूद इसके यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. दलित समाज इन घटनाओं को लेकर कई बार धरने-प्रदर्शन भी कर चुका है.
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