Rajasthan

अजब-गजब: जवाई बांध का पानी 300 बंदरों की जान पर बनता खतरा, ग्रामीणों ने नाव से पहुंचाया 2 लाख का खाना!

पाली. तीन जिलों की जीवनरेखा माने जाने वाले पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े जवाई बांध के ओवरफ्लो होने से जहां लोगों को राहत मिलती है, वहीं दूसरी ओर यह बंदरों के लिए आफ़त बन जाता है. इसका कारण यह है कि बांध के आसपास स्थित प्राकृतिक टापू और पहाड़ियां, जहां बंदर निवास करते हैं, पूरी तरह जलमग्न हो जाती हैं. पानी भर जाने पर बंदर वहीं फंस जाते हैं और उन्हें भोजन तक नहीं मिल पाता.

ऐसे में पाली जिले के कुछ लोग हर बार इन बंदरों के लिए सहारा बनते हैं और नाव से भोजन पहुंचाने का कार्य करते हैं. इस बार भी बांध भरने के बाद टापू पर 300 से अधिक बंदर फंस चुके हैं, जिनके लिए ग्रामीण लगभग 2 लाख रुपये की फल–सब्जियां पहुंचा रहे हैं. इस टापू तक नाव से पहुंचने में ही डेढ़ घंटे का समय लग जाता है.

हर साल रहता है जीने–मरने का संकट

अच्छे मानसून के चलते प्रदेश के सभी बड़े बांध लबालब हैं और उनके आसपास की प्राकृतिक टापू-पहाड़ियां अब भी जलमग्न हैं. ऐसा ही एक स्थान पाली जिले की देवगिरी की ऐतिहासिक पहाड़ी है. मान्यता है कि द्वापर युग में पांडव यहां आए थे. जवाई बांध भरने के बाद यह पहाड़ी चारों ओर से पानी से घिर जाती है, जिससे यहां रहने वाले लगभग 300 लंगूरों के सामने हर साल जीवन-मरण का संकट उत्पन्न हो जाता है. इन्हें बचाने के लिए आसपास के गांवों से हर साल करीब 2 लाख रुपये के फल–सब्जियां भेजी जाती हैं.

हर दूसरे दिन पहुँचाया जाता है 100 किलो भोजन

ग्रामीण और वन्यजीव प्रेमी हर दूसरे दिन नाव से लगभग 100 किलो भोजन लेकर पहाड़ी पर जाते हैं, ताकि किसी भी बंदर की भूख से मौत न हो. भोजन में केले, आलू, सेब, चने, बिस्किट, मूंगफली और गेहूं शामिल होते हैं. बाली उपखंड के सेणा गांव के इस क्षेत्र में करीब चार महीने ऐसे ही हालात बने रहते हैं. सेणा के अलावा जीवंदा, दुदुनी, मोरी और कोठार गांव के लोग भी बंदरों के लिए भोजन लेकर पहुंचते हैं.

1996 से बन रहे हैं यही हालात

मोरी गांव निवासी नाथू सिंह के अनुसार जवाई बांध 55 फीट भरते ही देवगिरी पहाड़ी का रास्ता बंद हो जाता है और हर साल यहां 300–400 बंदर फंस जाते हैं. वर्ष 1996 से अब तक ऐसे हालात लगातार बन रहे हैं. बंदरों के लिए इस कार्य में सरकार से कोई सहयोग नहीं मिलता. बंदरों के लिए भोजन जुटाने हेतु हर साल गांव-गांव से चंदा लिया जाता है. साथ ही मुंबई, सूरत जैसे शहरों के भामाशाह भी सहयोग करते हैं. भामाशाहों के सहयोग से गोदाम में वर्तमान में 50 क्विंटल गेहूं और पर्याप्त मात्रा में मूंगफली भरी हुई है. इसके अलावा वे बिस्किट, चने, आलू, सेब, मूंगफली, ककड़ी और केले पिकअप व रिक्शा से भेजते हैं. हर साल शिवगंज मंडी से करीब 2 लाख रुपये के फल–सब्जियां खरीदकर बंदरों को खिलाई जाती हैं.

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