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Supreme Court | lost husband in train accident | Railway Ticket | Indian Railway – SC ने किया मुआवजा का ऐलान, पर याचिककर्ता ही हुआ लापता, कैसे पुलिस-रेलवे से लेकर प्रशासन ने लगाई दौड़, जानें क्या है विधवा महिला की कहानी

Last Updated:October 22, 2025, 20:11 IST

Supreme Court Latest News: सुप्रीम कोर्ट ने एक विधवा महिला को जब मुआवजा दिलाने के लिए जो कुछ किया वो कोई कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है. पति की मौत के मुआवजे का फैसला तो सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया लेकिन असली कहानी उसके बाद शुरू होती है. जब रेलवे ने कोर्ट को बताया कि वह महिला अपने पते में नहीं रहती है फिर उसकी तलाश कैसे की गई और कैसे अदालत की मदद से उस महिला तक पहुंचा गया ये बड़ी ही दिलचस्प कहानी है.
क्यों एक विधवा को ढूंढ नहीं पाया रेलवे, फिर सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या किया?

नई दिल्ली. 23 साल की कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद एक विधवा को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मिल गया है. इस विधवा महिला ने साल 2002 में एक ट्रेन ट्रेन दुर्घटना में अपने पति को खो दिया था. ट्रिब्यूनल से शुरू हुई विधवा पत्नी की कानूनी लड़ाई ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट में हराने के बाद सुप्रीम कोर्ट से जीत हासिल हुई. कोर्ट ने रेलवे को आदेश दिया है कि वह दो महीने के भीतर महिला को पूरा मुआवजा ब्याज सहित चुकाए. पर मुआवजे के ऐलान के बाद असली लड़ाई शुरू हुई जब रेलवे उस महिला को पता ही नहीं लगा पाया.

याचिकाकर्ता सयनोक्ता देवी के पति विजय सिंह 21 मार्च 2002 को भागलपुर-दानापुर इंटरसिटी एक्सप्रेस से पटना जाने के लिए निकले थे. उनके पास बख्तियारपुर स्टेशन से वैध रेलवे टिकट था, लेकिन भारी भीड़ के कारण वह चलती ट्रेन से गिर गए और उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई. इसके बाद अगले दो दशकों तक उनकी विधवा पत्नी ने कानूनी लड़ाई लड़ी. सयनोक्ता देवी के मुआवजे के दावे को पहले रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल और फिर पटना हाईकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मृतक मानसिक रूप से अस्वस्थ था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?हाईकोर्ट के आदेश से नाराज होकर विधवा पत्नी ने देश की सुप्रीम अदालत का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2023 में रेलवे क्लेम्स ट्रिब्यूनल और पटना हाईकोर्ट द्वारा दिए गए तर्कों को खारिज कर दिया और उनके आदेशों को ‘पूरी तरह से बेतुका’, ‘कल्पनाशील’ और ‘रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों के विपरीत’ करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि जो सामने आया वह यह है कि अपीलकर्ता का दावा केवल इस आधार पर स्वीकार नहीं किया गया कि मृतक मानसिक रूप से अस्वस्थ था और उसे एक अज्ञात ट्रेन ने टक्कर मारी थी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि मृतक मानसिक रूप से अस्वस्थ होता, तो उसके लिए पटना की यात्रा के लिए वैध रेलवे टिकट खरीदना और खुद ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करना लगभग असंभव होता.

मुआवजे को लेकर क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे को निर्देश दिया कि वह विधवा को दो महीने के भीतर 4 लाख रुपये का मुआवजा 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ दावे की याचिका दायर करने की तारीख से दे लेकिन उनकी बदकिस्मती से उनके स्थानीय वकील उन्हें आदेश नहीं बता सके क्योंकि उनका निधन हो गया था. दूसरी ओर, रेलवे ने आदेश का पालन करने की कोशिश की और देवी को कई पत्र लिखे लेकिन सही पते की कमी के कारण उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. रेलवे ने 2 फरवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ब्याज सहित मुआवजा देने में असमर्थ है और इसको लेकर रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

कहां गई वो महिला?
रेलवे ने कहा कि पटना हाईकोर्ट को भी 21 मार्च को सूचित किया गया था कि राशि पहले ही स्वीकृत हो चुकी है लेकिन महिला ने मुआवजा प्राप्त करने के लिए बैंक विवरण नहीं दिया है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने नोट किया कि महिला अपने पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उस स्थान से चली गई है जहां वह दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के समय रह रही थी. महिला को राहत प्रदान करने के लिए उसे खोजने के लिए शीर्ष अदालत ने कोलकाता में पूर्वी रेलवे के प्रधान मुख्य वाणिज्य प्रबंधक को निर्देश दिया कि वह दो प्रमुख समाचार पत्रों (अंग्रेजी और हिंदी) में सार्वजनिक नोटिस जारी करें, जिसमें उसके दावे की स्वीकृति का पूरा विवरण हो और यह कि वह आवश्यक दस्तावेजों सहित आधार कार्ड और बैंक खातों का विवरण प्रस्तुत करके मुआवजा प्राप्त कर सकती है.

जब बख्तियारपुर पुलिस भी उस महिला पते पर पहुंचीं
इतना ही नहीं नालंदा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और बख्तियारपुर पुलिस स्टेशन के एसएचओ को महिला के ठिकाने का भौतिक सत्यापन करने और यदि वे उसे खोजने में सक्षम होते हैं, तो उसे उसके दावे की स्वीकृति और उसे प्रदान की गई राशि प्राप्त करने के अधिकार के बारे में सूचित करने का निर्देश दिया. पीठ ने एसएसपी, नालंदा को इस संबंध में चार हफ्ते के अंदर अनुपालन रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने बिहार राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण की भी मदद ली और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के सचिव को निर्देश दिया कि वह व्यक्तिगत रूप से उस स्थान का दौरा करें जहां उसे अंतिम बार रहने की सूचना दी गई थी. उसके ठिकाने के बारे में पूछताछ करें और उसकी वर्तमान स्थिति के बारे में सत्यापन करें और चार सप्ताह में रिपोर्ट मांगी.

बड़ी मुश्किलों के बाद खोजा परिवारइस महीने की शुरुआत में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बृजेंद्र चहर ने शीर्ष अदालत को बताया कि रेलवे और स्थानीय पुलिस द्वारा किए गए बड़े प्रयासों के बाद यह पाया गया कि महिला के गांव का नाम गलत दर्ज किया गया था, जिसके कारण उसे भेजे गए सभी पत्र कभी प्राप्त नहीं हुए. उन्होंने कहा कि अंततः स्थानीय पुलिस सही गांव का पता लगाने में सक्षम हो गई और उन्होंने महिला और उसके परिवार के सदस्यों को सफलतापूर्वक खोज लिया. पीठ ने रेलवे अधिकारियों को स्थानीय पुलिस की सहायता से महिला को मुआवजा राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया और स्थानीय एसएचओ को रेलवे अधिकारियों के साथ जाने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मुआवजा राशि उसके बैंक खाते में जमा की जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 24 नवंबर को निर्धारित की है. इस मामले में सरपंच और ग्राम पंचायत के अन्य निर्वाचित सदस्य अपीलकर्ता (महिला) की पहचान करेंगे और इस उद्देश्य के लिए रेलवे अधिकारियों को कुछ आधिकारिक दस्तावेजों की प्रतियां भी प्राप्त करनी चाहिए जिन्हें रिकॉर्ड पर रखा जा सकता है. इसके बाद, अनुपालन रिपोर्ट इस अदालत में प्रस्तुत की जाए.

अरुण बिंजोला

अरुण ब‍िंजोला इस वक्‍त न्‍यूज 18 में बतौर एसोसिएट एड‍िटर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वह करीब 15 सालों से पत्रकार‍िता में सक्र‍िए हैं और प‍िछले 10 सालों से ड‍िजिटल मीड‍िया में काम कर रहे हैं. करीब एक साल से न्‍यूज 1…और पढ़ें

अरुण ब‍िंजोला इस वक्‍त न्‍यूज 18 में बतौर एसोसिएट एड‍िटर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वह करीब 15 सालों से पत्रकार‍िता में सक्र‍िए हैं और प‍िछले 10 सालों से ड‍िजिटल मीड‍िया में काम कर रहे हैं. करीब एक साल से न्‍यूज 1… और पढ़ें

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First Published :

October 22, 2025, 20:11 IST

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