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देश-विदेश में विख्यात नाड़ी वैद्य सुशील कुमार जैन नहीं रहे:कई राज्यपाल-मुख्यमंत्री सहित वीआईपी ह​​स्तियां कराती ​​थी इलाज

निराला समाज टीम जयपुर।

देश-विदेश में नाड़ी वैद्य के नाम से जयपुर के विख्यात आयुर्वेद भिषगाचार्य , प्राण चिकित्सा में अग्रणी 96 वर्षीय वैद्य सुशील कुमार जी जैन का आज स्मृति-शेष हो गये। भारतीय चिकित्सा विद्या आयुर्वेद एवं प्राण उपचार को पुनर्जीवित कर पल्लवित व संवर्धित करने में आपका अनुकरणीय योगदान रहा । उत्तरप्रदेश के पूर्व राज्यपाल जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित कई दिग्गज ह​स्तियां सुशील कुमार जैन के पास इलाज कराने आते थे।
आपका जन्म 2 नवंबर 1928 को जयपुर में हुआ । आपके पिता स्वर्गीय कपूर चंद जैन तथा माता स्वर्गीय महताब देवी थीं। समाजोत्थान हेतु आपके मन में बचपन से ही रचनात्मक कार्य करने की अदम्य लालसा रही। इसकी पूर्ति हेतु आपने सेवालय नाम से गुरुकुल आरंभ किया और छोटी कक्षा के विद्यार्थियों को निःशुल्क ज्ञान दान देना आरंभ किया। बाद में आपने अपने निजी प्रयत्नों से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया और मानव समाज की सेवा करने के लिए इस क्षेत्र को अपना कर्म क्षेत्र निर्धारित कर लिया ।
गुरु शिष्य परंपरा से नाड़ी ज्ञान, औषध निर्माण ज्ञान, प्राण उपचार ज्ञान आदि की दक्षता आपने प्राप्त की और अपनी लगन व पुरुषार्थ से उसे विकसित किया।
मात्र 25 वर्ष की आयु में आपने (1 जनवरी 1953 को ) आरोग्य भारती नाम से आयुर्वेदिक औषधालय प्रारंभ कर दिया था ।
जयपुर शहर के एक बड़ी हवेली नुमा भवन में संचालित औषद्यालय आरोग्य भारती में प्रतिदिन सैकड़ों रोगी वैद्य सुशील कुमार जी से प्राप्त निःशुल्क चिकित्सा से आरोग्य लाभ प्राप्त करते रहे । असाध्य रोगों से ग्रस्त रोगियों को पापा साहब ( वैद्य सुशील जी का आत्मीयता पगा नाम ) स्वयं देखते थे दीपावली आदि पर्वों पर भी वे अवकाश नहीं रखते थे
उनका जीवन – लक्ष्य थाजनसेवा और इस हेतु अपने अहम् का विसर्जन।
आदरणीय सुशील जी ने जीवन के प्रारंभिक वर्षों में राजकीय सेवा से अपनी जीविका चलाई, किंतु उसे सेवा क्षेत्र में बाधक मानकर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। उनकी जीवनी – शक्ति का अक्षय स्रोत रहा –चिकित्सा, वह भी नयूनतम औषधियों देकर। वे प्रयासरत रहते थे कि घरेलू नुस्खों के माध्यम से आहार को व्यवस्थित कर रोगी का उपचार किया जा सके।पथ्य पर उनका अधिक बल रहता । क्या, कब और कितना खाना है इसका ध्यान रखने से भी रोग दूर हो सकता है। ये वो मानते रहे, सिखाते रहे, औषधी वे तभी देते जब परम आवश्यक हो, वह भी लगभग निःशुल्क ।
सेवाभावी जन निकटवर्ती क्षेत्रों से जड़ी-बूटी एकत्र करते पापा साहब स्वयं अपने निर्देशन में ऋतु एवं रोग के अनुसार दवाएं तैयार करवाते थे । आपका मानना था कि शुद्ध मन से तैयार औषधी से रोगी को त्वरित आरोग्य लाभ प्राप्त होता है।
औषधीय गुणों से युक्त तेल और चूर्ण(पाउडर) आदरणीय पापा साहब ने स्वयं विकसित किये । उनके औषधीय प्रयोग चिकित्सा जगत के लिए अमूल्य देन रहेंगे।
प्राणोपचार के माध्यम से रोग निदान करना आपको चिकित्सा जगत में विशिष्ट स्थान दिलाता है। इस माध्यम से आपने अनेक असाध्य रोगियों का बिना औषध के उपचार किया ।आपका कहना था कि रोगी में प्राण ऊर्जा की कमी होने पर प्राण चिकित्सक उसे त्वरित प्राण ऊर्जा देकर स्वस्थ कर सकता है ।रोगी के जिस अंग या स्थान पर ऊर्जा की क्षीणता के कारण रोग उत्पन्न है, वहां थेपन ,दोलन, शिथिलीकरण आदि क्रियाओं से वे स्वयं प्राण चिकित्सा करते थे । विक्षिप्त , मंदबुद्धि बच्चों पर उनकी प्राण चिकित्सा विशेष प्रभावी सिद्ध हुई ।ब्रह्म मुहूर्त में नियम पूर्वक ध्यान व संयम द्वारा प्राण ऊर्जा का संचयन तथा प्राणोपचार के माध्यम से उसका रोगी बंधुओं में वितरण आपकी रोगनिदान क्रिया का नियमित क्रम रहा ।
समाज में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए आप संगोष्ठी द्वारा इस पद्धति का प्रशिक्षण भी देते रहे, परंपरागत गुरुकुल पद्धति को आपने स्वीकार किया ।
आप दुखी, रोगीजन के लिए आशापरिपूर्ण प्रकाश पुंज थे।
प्राणिमात्र का मंगल हो और सबकोआरोग्य प्राप्त हो, इस हेतु अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वाले सादा जीवन के धनी, उच्च विचार युक्त ऐसे आदर्श चिकित्सक व विलक्षण व्यक्तित्व इस दौर में आश्चर्य से कम नहीं थे।
स्वांत: सुखाय- परजनहिताय, यह इनके जीवन का चरम लक्ष्य रहा। उनका एक ही भाव रहा- सबका शुभ हो सबका मंगल हो ।
उनका जानाआयुर्वेद के बडे प्रकाश पुंज के विलीन होने जैसा है।

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