Symptoms Of Rabbies: जानवरों के काटने पर तुरंत इलाज जरूरी.

दौसा: क्या आपने कभी सोचा है कि एक छोटे से जानवर का काटना आपकी जान ले सकता है? हर साल प्रदेश में लोग रेबीज से अपनी जान गंवाते हैं, और इनमें से अधिकतर मौतें इसलिए होती हैं क्योंकि लोग समय पर इलाज नहीं करवाते या बीमारी को हल्के में ले लेते हैं. ऐसी लापरवाही बहुत घातक हो सकती है और किसी को भी इसे नहीं करना चाहिए.
रेबीज कैसे होता है डॉ. सुभाष बिलोनिया ने बताया कि रेबीज एक बेहद खतरनाक और जानलेवा बीमारी है, जो संक्रमित जानवरों की लार से फैलती है, खासकर कुत्ते, बिल्ली, बंदर, चमगादड़ और सियार जैसे जानवरों के काटने या खरोंचने से होती है. अगर इसका समय पर इलाज नहीं होता है तो यह जानलेवा हो सकती है. इसलिए जब भी कोई जानवर काट लेता है, तो लापरवाही नहीं करनी चाहिए. यह वायरस मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर सीधा असर करता है. एक बार लक्षण शुरू हो जाने पर इसका कोई इलाज नहीं है और लगभग हर मामला मौत में बदल जाता है.
रेबीज की सबसे खतरनाक बातडॉक्टर सुभाष बिलोनिया ने बताया कि रेबीज की सबसे खतरनाक बात यह है कि शुरुआत में इसके लक्षण साधारण लग सकते हैं जैसे बुखार, बेचैनी या कटे हुए स्थान पर झुनझुनी. लेकिन कुछ ही दिनों में मरीज को पानी से डर लगने लगता है, शरीर अकड़ने लगता है, सांस लेने में तकलीफ होती है और अंत में कोमा और मौत हो जाती है.
इंजेक्शन का पहले किया जाता है ट्रायल जब लोग रेबीज का इंजेक्शन लगवाने अस्पताल आते हैं, तो डॉक्टर सुभाष बिलोनीया उनका इलाज करते हैं और फिर उन्हें इंजेक्शन रूम में भेजते हैं. इंजेक्शन रूम में पहले व्यक्ति के शरीर पर इंजेक्शन की ट्रायल की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई इन्फेक्शन न हो. ट्रायल के करीब आधे घंटे बाद पूरा दवाई का डोज लगाया जाता है.
रेबीज वैक्सीन की पूरी डोज लगवाएंमॉडर्न एंटी रेबीज प्रभारी डॉक्टर सुभाष बिलोनिया ने बताया कि अगर किसी को जानवर काट ले, खासकर अगर जानवर आवारा या अज्ञात हो, तो सबसे पहले घाव को तुरंत 15 मिनट तक साबुन और साफ पानी से धोना चाहिए. इसके बाद किसी एंटीसेप्टिक (जैसे बीटाडीन) से घाव को साफ करें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. डॉक्टर के अनुसार, “Rabies Antiserum I.P.-Equine” के तहत रेबीज वैक्सीन की पूरी डोज लगवाने की सलाह देंगे.
वैक्सीन की यह डोज़ इस तरह दी जाती हैमॉडर्न एंटी रेबीज प्रभारी डॉक्टर सुभाष बिलोनिया ने बताया कि यदि कोई जानवर किसी व्यक्ति को काट लेता है, तो पहली डोज काटने के दिन, दूसरी डोज तीसरे दिन, तीसरी डोज सातवें दिन, चौथी डोज चौदहवें दिन और जरूरत पड़ने पर पांचवीं डोज अट्ठाईसवें दिन दी जाती है. अगर घाव गहरा हो या काटने वाला जानवर संदिग्ध हो, तो वैक्सीन के साथ रेबीज इम्युनोग्लोब्युलिन (RIG) भी लगाया जाता है, जो शरीर को तुरंत सुरक्षा देता है.
दौसा जिले में यह है आंकड़े मॉडर्न एंटी रेबीज प्रभारी डॉक्टर सुभाष बिलोनिया ने बताया कि 1 जनवरी 2024 से 31 दिसंबर 2024 तक दौसा जिला अस्पताल में कुल 3604 मरीज जानवरों के काटने के बाद आए थे. इनमें से 3020 मरीज अकेले कुत्तों के काटने के थे. इसके अलावा 584 मरीज बिल्ली, बंदर, सियार सहित अन्य जानवरों के काटने के बाद इलाज कराने पहुंचे थे. अब 2025 में 1 जनवरी से 15 मई तक करीब 1348 मरीज जानवरों के काटने के बाद जिला अस्पताल में पहुंचे हैं. इनमें से 1258 मरीज़ कुत्तों के काटने के हैं और अन्य 90 मरीज बिल्ली, सियार, बंदर आदि जानवरों के काटने के हैं. अगर किसी को रेबीज जैसी बीमारी हो जाती है तो उसका इलाज जिला अस्पताल में नहीं हो पाता और मरीज सीधे जयपुर के एसएमएस अस्पताल पहुंचता है. रेबीज होने के बाद 7 से 8 दिन के भीतर मरीज की मौत हो सकती है. फिलहाल दौसा जिला अस्पताल में मौत का आंकड़ा नहीं आया है.
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