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क्या है नाथ संप्रदाय, जिससे ताल्लुक रखते हैं योगी आदित्यनाथ और बाबा बालकनाथ

हाइलाइट्स

इसकी शुरुआत आदिनाथ शंकर से मानी जाती है. इसका मौजूदा स्वरूप गोरक्षनाथ यानि योगी गोरखनाथ ने दिया
इस पंथ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या शरीर छोड़ने पर उन्हें समाधि दी जाती है

नाथ संप्रदाय फिर चर्चा में है. वजह है बाबा बालकनाथ का राजस्थान की तिजारा सीट से बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीतना. इस जीत के बाद उनका नाम राज्य में मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार के तौर पर लिया जाने लगा है. वह नाथ संप्रदाय के हैं. उसी संप्रदाय के, जिससे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ताल्लुक रखते हैं. नाथ संप्रदाय भारत का प्राचीन और योगियों का संप्रदाय है. ये हठ योग पर आधारित है. इस संप्रदाय के योगियों के दाहसंस्कार नहीं होते. दीक्षा लेने के लिए इन्हें अपने कान छिदवाने होते हैं.

इस संप्रदाय में भी अवधूत होते हैं. इसकी शुरुआत आदिनाथ शंकर से मानी जाती है. इसका मौजूदा स्वरूप गोरक्षनाथ यानि योगी गोरखनाथ ने दिया, जिन्हें भगवान शंकर का अवतार माना जाता है. इस पंथ वालों की योग साधना पातंजल विधि का विकसित रूप है.

गोरखनाथ को नेपाल के राजा प्रधान गुरु के रूप में मानते रहे हैं. वहां पर इनके बड़े-बड़े प्रतिष्ठित आश्रम हैं. नेपाल की राजकीय मुद्रा पर भी गोरख का नाम है.

गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर , जिसको देश में नाथ संप्रदाय के प्रमुख धामों में गिना जाता है.

जीवित समाधि लेते हैं इस पंथ के योगी 
इस संप्रदाय के योगियों के मुख्य अंग योगासन, नाड़ीज्ञान, षट्चक्र निरूपण तथा प्राणायाम द्वारा समाधि की प्राप्ति है. इस पंथ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या शरीर छोड़ने पर उन्हें समाधि दी जाती है. वे जलाये नहीं जाते. यह माना जाता है कि उनका शरीर योग से ही शुद्ध हो जाता है, उसे जलाने की आवश्यकता नहीं. इस संप्रदाय में मांस आदि तामसी भोजनों का निषेध है.

योगी भस्म भी रमाते हैं, परन्तु भस्म स्नान का एक विशेष तात्पर्य है- जब ये लोग शरीर में श्वांस का प्रवेश रोक देते हैं, तो रोमकूपों को भी भस्म से बन्द कर देते हैं. प्राणायाम की क्रिया में यह महत्व की युक्ति है.
नाथपंथी भजन गाते हुए घूमते हैं. प्राचीन समय में इस संप्रदाय के संत भिक्षाटन कर जीवनयापन करते थे. वो परंपरा कुछ हद अब भी कायम है. उम्र के अंतिम चरण में इस संप्रदाय के संत किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं. कुछ नाथ साधक हिमालय की गुफाओं में चले जाते हैं.

कैसे हुई पंथ की शुरुआत
जब तांत्रिकों और सिद्धों के चमत्कार के साथ अन्य क्रियाकलाप बदनाम हो गए. वो मांस, शराब, तंत्र और स्त्री-संबंधी आचारों के कारण घृणा की दृष्टि से देखे जाने लगे. उनकी यौगिक क्रियाएं मंद पड़ने लगीं, तब इन यौगिक क्रियाओं के उद्धार के लिए उस समय नाथ संप्रदाय का उदय हुआ. इसमें नवनाथ मुख्य कहे जाते हैं: उनके बाद इस संप्रदाय के कई गुरु हुए.

शैवों की तरह लिंगार्चन
कई इतिहासकार इन्हें शैव संप्रदाय से मानते हैं. लेकिन ये ना तो शैवों की तरह लिंगार्चन करते हैं और न शिवोपासना. लेकिन तीर्थ और देवता को मानते हैं. शिवमंदिर और देवीमंदिरों में दर्शनार्थ जाते हैं. योगी लोग अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं, जिसे ‘सिले’ कहते है. गले में एक सींग की नादी रखते है. इन दोनों को सींगी सेली कहते हैं, ये लोग शैव हैं अर्थात शिव की उपासना करते है.

17वीं सदी नाथ संप्रदाय की योगिनियां. (विकीकामंस)

कब दी जाती है दीक्षा
नाथ संप्रदाय में किसी भी प्रकार का भेद-भाव आदि काल से नहीं रहा है. इस संप्रदाय को किसी भी जाति, वर्ण व किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है. नाथ संप्रदाय को अपनाने के बाद सात से 12 साल की कठोर तपस्या के बाद ही संन्यासी को दीक्षा दी जाती थी. दीक्षा देने से पहले और बाद में दीक्षा पाने वाले को उम्र भर कठोर नियमों का पालन करना होता है.

– वो कभी किसी राजा के दरबार में पद प्राप्त नहीं कर सकता

– वो कभी किसी राज दरबार में या राज घराने में भोजन नहीं कर सकता

– राज दरबार वा राजा से भिक्षा जरूर प्राप्त कर सकता है

–  उसे बिना सिले भगवा वस्त्र धारण करने होते हैं.

जब भी कहीं कुंभ होता है, वहां नाथ संप्रदाय के साधुओं का सैलाब उमड़ आता है. (news18)

कैसी होती है कठिन परीक्षा
गोरखनाथ ने कर्ण छेदन-कान फाडना या चीरा चढ़ाने की प्रथा प्रचलित की थी. कान फाड़ने के लिए तत्पर होने का मतलब होता है- कष्ट सहने की शक्ति, दृढ़ता और वैराग्य की ताकत का होना. गोरखनाथ ने अपने अनुयायी शिष्यों के लिए ये कठोर परीक्षा नियत की थी. कान फड़ाने के बाद मनुष्य बहुत से सांसारिक झंझटों से बचता है. हालांकि लंबे समय तक परीक्षा करने के बाद ही कान फाड़े जाते हैं. अब भी ऐसा ही होता है.

क्या होता अवधूत का अर्थ
नाथ संप्रदाय अवधूत संप्रदाय है. इसका अर्थ होता है ” स्त्री रहित या माया प्रपंच से रहित”. ये कहा गया है कि जो सभी तरह के प्रकृतिजन्य विकारों को त्याग देता है, वो अवधूत है

अलख और आदेश शब्द का इस्तेमाल क्यों 
नाथ लोग अलख शब्द से अपने इष्ट देव का ध्यान करते हैं.आदेश या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं. अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है जिसका वर्णन वेद और उपनिषद आदि में किया गया है.

किन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है उल्लेख
नाथ संप्रदाय का उल्लेख विभिन्न क्षेत्र के ग्रंथों में जैसे-योग (हठयोग), तंत्र (अवधूत मत या सिद्ध मत), आयुर्वेद (रसायन चिकित्सा) और बौद्ध अध्ययन में मिलती है. यौगिक ग्रंथों में नाथ सिद्धः- हठप्रदीपिका के लेखक स्वात्माराम और इस ग्रंथ के प्रथम टीकाकार ब्रह्मानंद ने हठ प्रदीपिका ज्योत्स्ना के प्रथम उपदेश में 5 से 9 वे श्लोक में 33 सिद्ध नाथ योगियों की चर्चा की है. इनके बारे में कहा गया है कि ये नाथसिद्ध कालजयी होकर ब्रह्माण्ड में विचरण करते हैं.

इन नाथ योगियों में प्रथम नाथ आदिनाथ को माना गया,जो स्वयं शिव है जिन्होंने हठयोग की विद्या प्रदान की जो राजयोग की प्राप्ति में सीढ़ी के समान है. आयुर्वेद ग्रंथों में नाथ सिद्धों की चर्चा:- रसायन चिकित्सा के उत्पत्ति करने वाले के रूप में होती है. जिन्होंने इस शरीर रूपी साधन को जो मोक्ष में माध्यम है इस शरीर को रसायन चिकित्सा पारद और अभ्रक आदि रसायनों की उपयोगिता सिद्ध की.

क्या तांत्रिकता से भी नाथ संप्रदाय का कोई रिश्ता
शाबर तंत्र में कपालिकों के 12 आचार्यों की चर्चा है- आदिनाथ, अनादि, काल, वीरनाथ, महाकाल आदि, ये सभी नाथ मार्ग के प्रधान आचार्य माने जाते हैं. नाथों ने ही तंत्र ग्रंथों की रचना की.

नाथ संप्रदाय कितने पंथों में बंटा है
नाथ संप्रदाय को मानने वाले 12 शाखाओं में बंटा है, जिसे बारह पंथ कहते हैं. इसके कारण नाथ संप्रदाय को ‘बारह-पंथी’ योगी भी कहा जाता है. प्रत्येक पंथ एक पौराणिक देवता अथवा सिद्ध योगी को अपना आदि प्रवर्तक मानता है.

इन पंथों के नाम ये हैं-1.सत्यनाथ पंथ, 2.धर्मनाथ पंथ, 3. राम पंथ,4. श्वरी पंथ, 5.कंथड़ पंथ, 6.कपिलानी पंथ, 7.वैराग्य पंथ, 8.माननाथ पंथ, 9.आई पंथ,10.पागल पंथ, 11. ध्वजनाथ पंथ, 12. गंगानाथ पंथ. हालांकि बाद में और भी पंथ इसमें जुड़ते चले गए.

जानिए कौन थे पहले दस नाथ
महार्णव तंत्र में कहा गया है कि नवनाथ ही ‘नाथ’ संप्रदाय के मूल प्रवर्तक हैं. नवनाथों की सूची अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग मिलती है. आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ. नौ नाथ गुरु भी माने गए हैं-
मच्छेंद्रनाथ, गोरखनाथ, जालंदरनाथ, नागेशनाथ, भर्तरीनाथ, चर्पटीनाथ, कानीफनाथ,गहनीनाथ, रेवननाथ.

Tags: CM Yogi Adityanath, Gorakhnath Temple

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