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European Union regulators fines Apple and Meta breaking the digital law – ऐपल और मेटा पर यूरोपियन संघ ने लगाया तगड़ा जुर्माना, कंपीटिशन खत्म करने का आरोप

मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम की पेरेंट कंपनी) और ऐपल जैसी बड़ी टेक कंपनियां उतनी भी सीधी नहीं हैं, जितना कि आम आदमी को नजर आती हैं. ये कंपनियां कंपीटिशन खत्म करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही हैं. यही वजह है कि यूरोप में बुधवार को ऐपल और मेटा पर सख्त कार्रवाई करते हुए करोड़ों डॉलर का जुर्माना ठोका है. इन्हें डिजिटल दुनिया में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए बने नए कानून डिजिटल मार्केट एकट (DMA) का उल्लंघन करते पाया गया था. यह पहली बार है जब इस कानून के तहत किसी भी कंपनी को सजा मिली है.

यूरोपीय आयोग के अनुसार, ऐपल को 500 मिलियन यूरो (लगभग 570 मिलियन डॉलर) और मेटा को 200 मिलियन यूरो (करीब 230 मिलियन डॉलर) का जुर्माना देना होगा. इस कानून का मकसद है कि बड़ी टेक कंपनियां अपने वर्चस्व का गलत इस्तेमाल करके यूजर्स और छोटे बिजनेस पर अपनी शर्तें न थोपें. बता दें कि भारत में भी ऐसा ही एक कानून पर एक साल से काम चल रहा था, मगर अब सरकार ने उसे टाल दिया है. इसे टालने के पीछे अमेरिका के साथ टैरिफ को लेकर संभावित समझौता है.

क्या है ऐपल पर आरोपऐपल पर आरोप है कि उसने ऐप डेवलपर्स को यह आजादी नहीं दी कि वे अपने ग्राहकों को छूट और ऑफर के बारे में सीधे जानकारी दे सकें. यानी ऐप स्टोर में मौजूद ऐप डेवलपर्स को ऐपल की बंदिशों के भीतर रहकर ही काम करना पड़ा, जिससे ग्राहक सस्ते विकल्पों से वंचित रह गए.

वहीं मार्क ज़करबर्ग की कंपनी मेटा ने एक ऐसा सिस्टम लागू किया, जिसमें यूजर को दो ही विकल्प मिले- या तो अपनी पर्सनल जानकारी विज्ञापन के लिए इस्तेमाल करने दें, या फिर पैसे देकर एड-फ्री वर्जन का सब्सक्रिप्शन लें. यूरोपीय कानून के मुताबिक, कंपनियों को यूजर से अलग-अलग डेटा को जोड़ने से पहले उनकी सहमति लेनी होती है, और अगर कोई सहमति नहीं देता तो उसे एक ‘कम पर्सनलाइज़्ड लेकिन समान स्तर’ की सेवा मिलनी चाहिए.

अमेरिका बनाम यूरोप: टेक कंपनियों पर रुख सख्तभले ही अमेरिका और यूरोप के बीच ट्रेड, टैक्स और यूक्रेन युद्ध जैसे मुद्दों पर तनाव बना हो, लेकिन टेक कंपनियों की ताकत को सीमित करने के मामले में दोनों महाद्वीपों की सोच एक जैसी दिखती है. चाहे वो गूगल हो, अमेज़न हो या अब ऐपल और मेटा, सभी पर शिकंजा कसता जा रहा है.

अमेरिका में भी गूगल हाल ही में दो बड़ी एंटी-ट्रस्ट के मुकद्दमे हार चुका है. मेटा के खिलाफ भी वॉशिंगटन में केस चल रहा है, जिसमें उस पर छोटे प्रतियोगियों को खरीदकर दबाने का आरोप है.

ट्रंप प्रशासन की चेतावनी और प्रतिक्रियाहालांकि ऐपल और मेटा पर जांच ट्रंप प्रशासन के सत्ता में आने से पहले शुरू हुई थी, लेकिन अब अमेरिका की तरफ से चेतावनी दी जा रही है. फरवरी में वाइट हाउस ने बयान जारी कर कहा था कि अगर यूरोप अमेरिकी कंपनियों को टारगेट करता है, तो जवाबी कार्रवाई हो सकती है.

मेटा ने इस फैसले को अमेरिकी कंपनियों पर ‘टैरिफ जैसा हमला’ बताया है. कंपनी के ग्लोबल अफेयर्स हेड, जोएल कैपलन ने कहा, “यूरोपीय आयोग जानबूझकर अमेरिकी कंपनियों के रास्ते में रोड़े अटका रहा है, जबकि यूरोपीय और चीनी कंपनियों को छूट दी जा रही है.” ऐपल की तरफ से इस पर कोई टिप्पणी नहीं आई है.

अब आगे क्या?इन दोनों कंपनियों को 60 दिनों के भीतर इन आदेशों का पालन करना होगा, वरना और भी कड़े जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है. ऐपल के खिलाफ एक और फैसला भी सामने आया है, जिसमें उस पर आईफोन (iPhone) और अन्य डिवाइसों पर दूसरे ऐप स्टोर को ब्लॉक करने का आरोप है. हालांकि एक अन्य जांच को बंद कर दिया गया है क्योंकि ऐपल अब यूज़र्स को प्रीइंस्टॉल्ड ऐप्स हटाने के अधिक विकल्प दे रहा है.

मेटा पर यह आरोप है कि वह गोपनीयता को ‘प्रीमियम सुविधा’ बनाकर बेच रहा है, जबकि कानून कहता है कि यूज़र को एक समान लेकिन कम निजी सेवा मुफ्त में मिलनी चाहिए.

यूरोपीय आयोग की कार्यकारी उपाध्यक्ष टेरेसा रिबेरा ने कहा, “ऐपल और मेटा ने ऐसा सिस्टम लागू किया है, जिससे यूज़र्स और व्यापारियों की इन कंपनियों पर निर्भरता और बढ़ी है. लेकिन यूरोप में काम करने वाली हर कंपनी को हमारे कानूनों का सम्मान करना होगा.”

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