Explainer: ना लहसुन ना प्याज…क्यों नवरात्र में नहीं खाते इन्हें, मानते हैं कामोत्तेजक, साइंस कहती है खूब खाओ

हाइलाइट्स
प्याज और लहसुन से बने खाने को तामसिक और राजसिक भोजन माना गया हैजैन, बौद्ध और हिंदू धर्म में प्याज और लहसुन से परे रहने की बात की गई हैसाइंस कहती है ये कैंसर और कई बीमारियों को ठीक करने में बहुत फायदेमंद
इन दिनों शारदीय नवरात्र चल रहा है. बहुत से लोग इसमें 09 दिनों को पवित्र मानते हुए रोज का व्रत रखते हैं. जो लोग उपवास नहीं भी रखते, वो इन दिनों लहसुन और प्याज खाना बंद कर देते हैं. ये माना जाता है कि लहसुन और प्याज तामसिक भोजन है, लिहाज इनका सेवन नहीं करना चाहिए. आखिर पवित्र दिनों में इन दोनों से दूरी क्यों बना ली जाती है. क्या इसके कोई साइंटिफिक रीजन हैं या धार्मिक. हालांकि आयुर्वेद भी इनका इस्तेमाल नहीं करने की सलाह देता है.
प्याज को आयुर्वेद तामसिक कहता है तो लहसुन को राजसिक. शास्त्रों में तो सख्त तौर पर ब्राह्मणों को इन दोनों से निषेध रखते हुए इनसे दूर रहने को कहा गया है. शरीर की बायोलॉजिकल क्रियाओं पर भोजन कैसे प्रभाव डालता है, इसे लेकर आमतौर से आयुर्वेद में भोजन को तीन रूपों में बांटा गया है – सात्विक, तामसिक और राजसी. इन तीन तरह के भोजन करने पर शरीर में सत, तमस और रज गुणों का संचार होता है.
सात्विक भोजन क्या है?सात्विक भोजन का संबंध सत् शब्द से बताया गया है. इसका एक मतलब तो ये है कि शुद्ध, प्राकृतिक और पाचन में आसान भोजन हो. इस शब्द से दूसरा अर्थ रस का भी निकलता है यानी जिसमें जीवन के लिए उपयोगी रस हो.
हिंदू धर्म और आयुर्वेद प्याज और लहसुन के सेवन को उचित नहीं मानता. (image generated by meta ai)
ताज़े फल, ताज़ी सब्ज़ियां, दही, दूध सात्विक हैं. इनका प्रयोग किया जाना अच्छा है. सात्विक भोजन के संबंध में शांडिल्य उपनिषद और हठ योग प्रदीपिका ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. मिताहार या कम भोजन यानी भूख के हिसाब से भोजन करने को ही उचित बताया गया है.
तामसिक और राजसी भोजनतमस यानी अंधेरे से तामसिक शब्द बना है यानी सबसे पहले तो इस तरह के भोजन का मतलब बासी खाने से है. ये भोजन शरीर के लिए भारीपन और आलस देने वाला होता है. इसमें बादी करने वाली दालें और मांसाहार जैसी चीज़ें शामिल बताई जाती हैं.
राजसिक भोजन बेहद मिर्च मसालेदार, चटपटा और उत्तेजना पैदा करने वाला खाना है. इन दोनों ही तरह के भोजनों को स्वास्थ्य और मन के विकास के लिए लाभदायक नहीं बल्कि नुकसानदायक बताया गया है. कहा गया है कि ऐसे भोजन से शरीर में विकार और वासनाएं पैदा होती हैं.
अब प्याज़ और लहसुन की बातआयुर्वेद का वैज्ञानिक सिद्धांत मौसमों के अनुसार उपयुक्त भोजन करने की बात पर ज़ोर देता है. सालभर में हिंदू कैलेंडर में दो बार नवरात्र आता है. एक चैत्र नवरात्र और दूसरा शारदीय नवरात्र.
प्याज और लहसुन और इस परिवार की अन्य वनस्पतियां राजसिक और तामसिक खाने के तौर पर वर्गीकृत की गई हैं (photo shutterstock)
दोनों ही समय पर मौसम बदल रहा होता है. नवरात्र का ये समय एक तरह से मौसम के बदलने के बीच संधिकाल जैसा होता है. शारदीय नवरात्र बारिश के तुरंत बाद और सर्दी से पहले के मौसम में होता है. चैत्र नवरात्र ठंड का मौसम खत्म होने और गरमी का मौसम आने के बीच होता है.
इसलिए यह दो मौसमों के बीच का समय है. आयुर्वेद की मानें तो मौसम परिवर्तन के समय शरीर की प्रतिरोधी क्षमताएं कम होती हैं इसलिए अक्सर खांसी और ज़ुकाम जैसे सामान्य संक्रमण दिखते हैं.
खाना हमारी अच्छाई, लालसाओं, और जहालत पर असर डालते हैं. प्याज और लहसुन और इस परिवार की अन्य वनस्पतियां राजसिक और तामसिक खाने के तौर पर वर्गीकृत की गई हैं, मतलब ये हुआ कि वो हमारी लालसाओं और अज्ञानता को बढाती हैं.
ये तर्क ये कहता है कि न केवल इस मौसम में बल्कि किसी भी ऐसे मौसम बदलने के समय में सात्विक भोजन करना ही शरीर और सेहत के लिहाज़ से सबसे उपयुक्त होता है. तामसिक और राजसिक भोजन करने के खतरे होते हैं और सामान्य तौर से भी इस किस्म के भोजन को सेहत के अनुकूल नहीं माना गया है.
जैन धर्म और बौद्ध धर्म तो सीधे सीधे प्याज और लहसुन के किसी भी तरह खाए जाने पर रोक लगाते हैं. (image generated by meta ai)
कुछ धर्मों में भी क्यों की गई प्याज निषेध की बातकई धर्म ऐसे हैं जिनमें लहसुन-प्याज खाने पर पाबंदी है. बहुत से रेस्टोरेंट और भोजनालय आपको मिल जाएंगे, जहां लिखा होगा- यहां लहसुन-प्याज से खाना नहीं बनता. कुछ लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो पूरे तौर पर अपने खाने में प्यार-लहसुन से परहेज करते हैं.
खासकर हिंदू और जैन धर्म में प्याज और लहसुन के निषेध की बात की गई है. बौद्ध धर्म में भी की गई है. हिंदुओं में भी वैष्णव लोग आमतौर पर इससे दूर रहते हैं. किसी भी पूजा-पाठ की भोजन सामग्री में इसका इस्तेमाल कतई नहीं होता. जैन धर्म तो किसी भी जड़ वाले खाने से परहेज की बात करता है. अगर इसका सेवन किया जाए तो क्योंकि वो शरीर की चेतना जागृत करने के काम में बाधा पेश करते हैं. दिमाग को एकाग्न नहीं होने देते.
एक मशहूर शेफ और लेखक कूरमा दास ना तो प्याज खाते हैं और ना ही लहसुन. वो कहते हैं, “मैं कृष्ण भक्त हूं और भक्ति योग करता हूं, इसलिए ना तो लहसुन खाता हूं और ना ही प्याज. भगवान कृष्ण के भक्त इन दोनों से परहेज करते हैं.” ऐसा क्यों. इसका एक लंबा उत्तर है.
बौद्ध और जैन धर्म में क्यों निषेधजैन भोजन लैक्टो-शाकाहारी है. इसमें छोटे कीड़ों और सूक्ष्मजीवों को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए लहसुन और प्याज जैसी जड़ वाली सब्जियों को शामिल नहीं किया जाता.बौद्ध धर्म में लहसुन और प्याज जैसे तीव्र गंध वाले पौधों से परहेज करते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि पकाए जाने पर ये यौन इच्छा को बढ़ाते हैं और कच्चा खाने पर क्रोध को बढ़ाते हैं.
ध्यान और भक्ति के लिए दोनों अहितकरआयुर्वेद के अनुसार, प्याज और लहसुन से दूर होने की उसकी सबसे बड़ी वजह ध्यान और भक्ति के लिए अहितकर होना है. अगर इसका सेवन किया जाए तो क्योंकि वो शरीर की चेतना जागृत करने के काम में बाधा पेश करते हैं. दिमाग को एकाग्न नहीं होने देते.
लहसुन कामोत्तेजक होता हैप्याज और लहसुन को आध्यात्मिक लोग आमतौर नहीं खाते क्योंकि वो आपके नर्व सिस्टम पर असर डालते हैं. आयुर्वेद का कहना है कि लहसुन सेक्स पॉवर क्षति की सूरत में टॉनिक की तरह होता है, जो कामोत्तेजक का काम करता है.
आयुर्वेद ये भी कहता है कि प्याज चबाने के कुछ समय पश्चात् वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ़ जाती है. परिणामस्वरूप वासना में वृद्धि होती है. बरसात के दिनों में प्याज खाने से अपच एवं अजीर्ण आदि उदर विकार उत्पन्न हो जाते हैं.
साइंस क्यों कहती है बहुत फायदेमंदकैंसर की रोकथाम – प्याज और लहसुन जैसी एलियम सब्जियां पेट और कोलोरेक्टल कैंसर सहित कुछ कैंसर के जोखिम को कम कर सकती हैं. 2015 की समीक्षा में पाया गया कि जो लोग सबसे अधिक एलियम सब्जियां खाते हैं, उनमें पेट के कैंसर होने की संभावना 22% कम होती है.हृदय संबंधी रोगों में फायदेमंद – लहसुन और प्याज का अर्क कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप को कम करके और रक्त के थक्के के जोखिम को कम करके हृदय रोग में मदद कर सकता है.रोगाणुरोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण –लहसुन और प्याज के अर्क में रोगाणुरोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं.अन्य जैविक गतिविधियां – लहसुन और प्याज के अर्क में अन्य जैविक गतिविधियां भी होती हैं, जिनमें मधुमेह-रोधी, हाइपरहोमोसिस्टीनीमिया-रोधी और प्रतिरक्षा-संशोधक गुण शामिल हैं.प्रोस्टेंट कैंसर में फायदेमंद – लहसुन और प्याज में प्रोस्टेट कैंसर के विरुद्ध रसायन-निरोधक गतिविधि हो सकती है. ऐसा इन सब्जियों में मौजूद ऑर्गेनोसल्फर यौगिकों (ओएससी) के कारण हो सकता है.मिलता है फाइबर, पोटेशियम, आयरन और विटामिन सी – प्याज कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, पोटेशियम, आयरन और विटामिन सी का एक महत्वपूर्ण आहार स्रोत है.सेलेनियम – लहसुन अन्य एलियम सब्जियों की तुलना में सेलेनियम का अधिक समृद्ध स्रोत है.
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FIRST PUBLISHED : October 9, 2024, 11:46 IST