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Holi in Braj : देश के अलग-अलग हिस्‍सों में होली मनाने का तरीका बेशक अलग-अलग होता है. लेकिन, उल्‍लास, खुशी, मस्‍ती, प्रेम, हंसी-ठिठोली सब जगह एकसामन रहती है. इस त्‍योहार पर पूरा देश सतरंगी हो जाता है. होली पर देश के कुछ हिस्‍सों में होली मनाने के अपने कुछ खास और अलग अंदाज हैं. ब्रज की लट्ठमार होली तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन यहां लड्डू मारकर होली का जश्‍न भी मनाया जाता है. राजस्‍थान में तो कोड़ामार होली की पंरपरा भी वर्षों से निभाई जा रही है. इन सभी जगहों पर होली के दिन महिलाएं ही पुरुषों को अलग-अलग तरह से पीटती हैं. नए दौर में महिलाएं और पुरुष एक जैसे उत्‍साह के साथ इनकी तस्‍वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं. आइए जानते हैं कि ब्रज में लट्ठमार तो राजस्‍थान में कोड़ामार होली क्‍यों होती है?

उत्‍तर प्रदेश के बरसाना की लट्ठमार होली देखने के लिए दुनियाभर के लोग जुटते हैं. इसे राधा-कृष्‍ण के अद्वितीय प्रेम का प्रतीक माना जाता है. प्रचलित कथाओं के मुताबिक, श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ लट्ठमार होली की परंपरा शुरू की थी. इस होली को खेलने के लिए नंदगांव के पुरुष और बरसाना की महिलाएं आज भी जुटती हैं. बरसाना की लड्डू मार होली लट्ठमार होली के ठीक एक दिन पहले लाडिली जी के मंदिर में होती है. पहले लाडिली जी के महल से नंदगांव में फाग का न्‍योता जाता है. फिर नंदगांव से राधा रानी के महल में न्‍योता स्‍वीकार करने का संदेश जाता है.

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बरसाना की लट्ठमार और लड्डू मार होली को राधा-कृष्‍ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है.

कैसे शुरू हुई लड्डू मार होली?
बताया जाता है कि जब पुरोहित संदेश लेकर लाडली जी के महल पहुंचते हैं तो उन्‍हें खाने के लिए इतने लड्डू दिए जाते हैं कि वो खुशी में उन्‍हें लुटाने लगते हैं. लड्डू मार होली को लेकर एक और कहानी भी प्रचलित है. कहा जाता है कि जब पुरोहित को खाने के लिए लड्डू दिए गए तो कुछ गोपियों ने उनको गुलाल भी लगा दिया. उस समय पुरोहित के पास गुलाल नहीं था तो उन्‍होंने लड्डू ही फेंकने शुरू कर दिए. तभी से लड्डू मार होली खेली जाने लगी. लड्डूमार होली में हर साल कई टन लड्डू का इस्‍तेमाल होता है. फिर इसका प्रसाद हजारों श्रद्धालुओं के लिए बरसाना पहुंचाया जाता है.

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कहां होती है कोड़ा मार होली?
होली के दिन महिलाओं के पुरुषों को पीटने का रिवाज राजस्थान में भी है. यहां पुरुषों को पीटने के लिए लट्ठ या लड्डू के बजाय महिलाएं कोड़े का इस्‍तेमाल करती हैं. इसलिए इसे राजस्‍थान में कोड़ा मार होली कहा जाता है. होली मनाने की इस अनोखी परंपरा में महिलाएं पुरुषों को कोड़े से पीटती हैं. इस होली की एक अनोखी बात भी है. कोड़ा मार होली में केवल भाभी और देवर ही हिस्‍सा लेते हैं. कोड़ा मार होली रंग के अगले दिन खेली जाती है. इसमें महिलाएं राजस्‍थानी वेशभूषा में सजकर सामूहिक तौर पर फाग गाती हुई बीच सड़क पर जुटती हैं. सड़क पर बड़े-बड़े टबों में रंग भरा जाता है. फिर भाभियां कोड़ों को रंग में भिगोकर देवरों की पीठ पर मारती हैं.

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राजस्‍थान में होली के अगले दिन कोड़ा मार होली देवर और भाभियों के बीच खेली जाती है.

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क्‍यों और कब शुरू हुई ये होली?
राजस्‍थान की कोड़ा मार होली देवर-भाभी के बीच हंसी-ठिठोली के प्रतीक के तौर पर करीब 200 साल से मनाई जा रही है. बताया जाता है कि राजस्थान में कोटा और भीलवाड़ा में ऐसी होली जमकर मनाई जाती है. कई बार कोड़ा मार होली खेलते-खेलते देवर-भाभियों के बीच मुकाबला भी शुरू हो जाता है. इस होली में अमीरी-गरीबी का फर्क भूलकर सभी लोग पूरे जोश से शामिल होते हैं. अजमेर के भिनाय इलाके में भी ऐसी होली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. कोड़ा मार होली में महिलाओं और पुरुषों के समूह एकदूसरे को मुकाबले के लिए उकसाते हुए नजर आते हैं. महिलाएं जहां कोड़ों को रंग में भिगोकर मारते हें. वहीं, पुरुष बाल्टियों और बड़े बर्तनों से रंग मारते हैं.

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