unique painting Maharaja adopted idea then started raining

Last Updated:May 10, 2025, 14:21 IST
बीकानेर में बादल और वर्षा की पेंटिंग बीकानेर के इतिहास और पहचान का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इन पेंटिंगों को बीकानेर के इतिहास में कई बार चित्रित किया गया है और वे बीकानेर के लोगों के लिए एक तरह से पहचान है.X
राजा महाराजाओं ने एक नई पेंटिंग इजाद की.
हाइलाइट्स
बीकानेर में बादल और वर्षा की पेंटिंग प्रचलित है.राजा-महाराजाओं ने बादल की पेंटिंग से बारिश करवाई.मथेरान शैली की पेंटिंग में नील और पेवड़ी का उपयोग होता है.
बीकानेर:- पश्चिमी राजस्थान का बीकानेर शहर रेतीला धोरा और शुष्क इलाका रहा है. यहां बारिश बहुत कम होती थी. ऐसे में यहां के राजा-महाराजा ने एक अनोखा आइडिया निकाला. राजा महाराजाओं ने एक नई पेंटिंग इजाद की, जिसमें घरों, हवेलियों और मंदिरों में बादल और गिरती हुई बिजली की पेंटिंग बनवाई. इन पेंटिंग को करवाने के बाद बारिश होने लगी. यहां बादल की पेंटिंग कई जगह बनने लगी.
बादल और वर्षा की पेंटिंग संस्कृति का हिस्साबीकानेर में बादल और वर्षा की पेंटिंग बीकानेर के इतिहास और पहचान का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इन पेंटिंगों को बीकानेर के इतिहास में कई बार चित्रित किया गया है और वे बीकानेर के लोगों के लिए एक तरह से पहचान है. बीकानेर में बादल और वर्षा की पेंटिंग स्थानीय संस्कृति का भी एक हिस्सा है.
इन पेंटिंगों को अक्सर घरों और मंदिरों में लगाया जाता है, जो स्थानीय लोगों के लिए एक तरह से एक प्रेरणा और एक याद दिलाता है. बीकानेर में बादल और वर्षा की पेंटिंग एक तरह से प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाती है. ये पेंटिंग इस बात का प्रतीक है कि प्रकृति में भी बहुत सुंदरता और शक्ति होती है.
बादल की चित्रकारी से बारिशकलाकार राम भादानी ने लोकल 18 को बताया कि बीकानेर में मथेरान शैली है. इसमें पारम्परिक रूप से बादल पर काम किया गया है. बीकानेर की प्राचीन हवेलियों और मंदिरों में इस कला का काफी उपयोग किया गया. बीकानेर राजस्थान का पश्चिमी इलाका है, जो काफी शुष्क है. ऐसे में इस इलाके में पानी की कमी होने से यहां के राजा महाराजाओं ने बादल के आह्वान करने के लिए कुछ चित्रकारों से ऐसी चित्रकारी करवाई गई थी.
इसको देखने से ऐसा लगता था कि हमारा मन आसमान और बादलों से घिरा हुआ है और बारिश होने वाली है. इस पेंटिंग में बिजली को दर्शाने के लिए सुनहरे कलम का उपयोग हुआ है. राजा महाराजा की ओर से इस तरह की बादल की चित्रकारी करवाते थे, तो बारिश होती थी. जिसके कारण अब बीकानेर में हरियाली भी छाने लगी है.
चित्रकारी में नील और पेवड़ी का उपयोगवे बताते हैं कि इस मथेरान चित्रकारी को करने में वैसे तो समय लगता है. हालांकि यह चित्रकारी साइज पर निर्भर करती है. छोटी चित्रकारी करने में भी 10 से 15 दिन का समय लगता है. इसमें नील और पेवड़ी का भी उपयोग होता है. पेवडी पीले रंग की बारिश के साथ बिजली चमकती है, उसको दर्शाने में उपयोग होता है.
हालांकि यह कला लुप्त हो रही थी. लेकिन सरकार की ओर से इस कला को बढ़ावा भी दिया जा रहा है. वे बताते हैं कि इस मथेरान कला को सीखने के लिए प्रयास कर रहे हैं. इस कला को सीखने के लिए विदेशी लोग भी आते हैं.
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