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शादी के लिए अब कार्ड का इंतजार मत कीजिए, ऑनलाइन देखिए आपको ‘न्योता’ या है नहीं! नहीं तो चूक जाएंगे आप

Last Updated:December 11, 2025, 11:40 IST

Wedding Cards : डिजीटल होती दुनिया के साथ अब शादियों के कार्ड का क्रेज भी कम होता जा रहा है. राजधानी जयपुर में शादियों के कार्ड की छपाई का काम तेज से गिर रहा है. प्रिटिंग प्रेस के मालिकों के मुताबिक यह गिरावट 80 फीसदी तक पहुंच गई है. अब लोग शादियों के कार्ड छपाई केवल रस्मी तौर पर करवा रहे हैं. अब शादियों के डिजिटल कार्ड्स बनवाकर उसे व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म के जरिये लोगों को भेजा जा रहा है. शादी के लिए अब कार्ड का इंतजार मत कीजिए, ऑनलाइन देखिए आपको 'न्योता' या है नहींजयपुर में शादी के कार्ड्स की छपाई का काम 80 फीसदी तक कम हो गया है.

जयपुर. एक वक्त था जब शादी के सीजन में रिश्तदारों के यहां से कार्ड आने का इंतजार रहता था. कार्ड मिलते ही शादी की तारीख को कैलेंडर में मार्क कर दिया जाता था ताकि तारीख भूल ना जाएं. कार्ड बांटने का काम भी बेहद उत्साह भरा होता था. घर के युवा घर-घर जाकर कार्ड बांटकर शादी का निमंत्रण देकर आया करते थे. लेकिन अब ये सब यादों का हिस्सा बनकर रह गया है. समय के साथ दुनिया को ऑनलाइन होती देखकर अब लोगों ने शादी के कार्ड छपवाने बंद कर दिए हैं. अकेले जयपुर के हालात यह हैं कि यहां शादी के कार्ड का छपाई का काम 80 फीसदी तक घट गया है. शादी का कार्ड छापने वाले छापाखाना बंद होने के कगार पर आ गए हैं.

अभी शादियों का सीजन चल रहा है. करीबी रिश्तदारों के यहां तो शादी के कार्ड पहुंच रहे हैं लेकिन दूरदराज के रिश्तेदारों और दोस्तों को व्हाट्सऐप पर ही शादी का डिजिटल कार्ड भेजकर इतिश्री कर ली जा रही है. कोविड के बाद से शादी के कार्ड छापने वाले प्रेस मालिक और छापखानों के हालात बद से बदतर होते जा रहे है. ज्यादातर छापेखाने या तो बंद हो चुके हैं या फिर जो चल रहे है वो बस रेंग रहे हैं. जयपुर की एक प्रिटिंग प्रेस के मालिक दिलीप कट्टा की मानें तो अब शादियों के सीजन में एक शादी के महज 50 से 60 कार्ड छापने का ही ऑर्डर मिल रहा है.

कार्ड्स की संख्या होने से छपाई की लागत भी ज्यादा लगती हैडिजिटल क्रांति के बाद कार्ड छपवाने जैसी रस्में अब पुरानी हो गई है. लोग डिजिटल कार्ड बनवाते हैं और रिश्तेदारों को व्हाट्सऐप कर देते है. पहले की तुलना में अब मेहमान भी शादियों में कम आने लगे हैं. प्रिटिंग प्रेस ऑपरेटर जितेन्द्र कुमार योगी बताते हैं कि प्रेस मालिक अब जैसे तैसे शादियों के सीजज में गुजर बसर कर रहे हैं. कुछ प्रेस मालिक छापाखानों को बंद कर चुके हैं. कुछ दूसरे व्यवसाय में शिफ्ट कर चुके हैं. कागज भी महंगा हो गया है. कार्ड्स की संख्या होने से छपाई की लागत भी बढ़ जाती है.

कार्ड्स अब केवल करीबी रिश्तेदारों तक की सिमटकर रह गए हैंअधिकांश बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि प्रिटिंग प्रेस के हालातों में ये बदलाव कोविड के बाद आया है. अब लोग ज्यादा से ज्यादा 100 से 200 कार्ड छपवाने आते हैं. कार्ड्स अब केवल करीबी रिश्तेदारों को ही दिए जा रहे हैं. बाकी लोगों को कार्ड फोन पर मैसेज कर देते हैं. पहले राजधानी जयपुर में कार्ड छपाई का बड़ा कारोबार था लेकिन अब वह धीरे धीरे सिमट चुका है. अब ना इन गलियों में छपाई मशीनों की आवाज आती है और ना ग्राहकों की भीड़ लगती है. ऐसे में लगभग 100 साल पुराने इस व्यवसाय को दम तोड़ते देख प्रिटिंग प्रेस के मालिक सहज महसूस नहीं कर रहे हैं.

About the AuthorSandeep Rathore

संदीप राठौड़ ने वर्ष 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की जयपुर से शुरुआत की. बाद में कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर की जिम्मेदारी निभाई. 2017 से के साथ नए सफर की शुरुआत की. वर…और पढ़ें

Location :

Jaipur,Jaipur,Rajasthan

First Published :

December 11, 2025, 11:40 IST

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