जज्बे को सलाम: सब्जी बेचते हुये पढ़ाई की और बन गया सरकारी टीचर, हालात पर भारी पड़ा हौंसला
बाड़मेर. रीट परीक्षा का अंतिम परिणाम जारी होने के साथ ही बाड़मेर में जिले में उन होनहारों के सफल होने के किस्से सामने आने लगे हैं जो हमेशा अपनी मेहनत पर विश्वास (Believe in hard work) करते हैं. ऐसे होनहारों ने साबित कर दिया कि हालात भले ही कितने भी विकट और प्रतिकूल हो क्यों न हो लेकिन लगातार की गई मेहनत सफलता की मंजिल तक पहुंचा ही देती है. ऐसा ही एक नवचयनित टीचर है चाडी का रहने वाला सब्जी विक्रेता चूनाराम (Chunaram). चूनाराम ने गली-गली सब्जी बेचने के दौरान भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. हालात का सामना करते हुये की गई पढ़ाई का नतीजा आया तो चुनाराम के पिता की आंखों में आंसू आ गये और सीना गर्व से चौड़ा हो गया.
बाड़मेर जिला मुख्यालय पर सब्जी का ठेला चलाकर अपने और परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करने वाला युवा चूनाराम अब टीचर बन गया है. चुनाराम अपने पिता धीराराम के साथ गली गली सब्जी बेचने के साथ शिक्षक भर्ती की तैयारियां करता रहा. चूनाराम की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव चाडी में हुई. उसके बाद बाड़मेर और जैसलमेर में बीएसटीसी की शिक्षा पूरी की. सब्जी बेचने के दौरान भी चूनाराम ने नियमित रूप से 6 से 8 घंटे अपनी पढ़ाई को जारी रखा.
चुनाराम 6 माह का था तब मां की मृत्यु हो गई थी
रीट परीक्षा में चूनाराम के 134 नंबर आए हैं. अब उसका चयन शिक्षक पद के लिये हो गया है. चूनाराम के दो बड़ी बहनें हैं. चूनाराम जब महज 6 माह का था तब उसकी मां की मृत्यु हो गई थी. दोनों बहनों की शादी हो जाने के बाद परिवार में अब मात्र पिता-पुत्र ही हैं. पिता ने बरसों तक खेतीबाड़ी कर गुजर बसर चलाया. लेकिन जब खेती बाड़ी से जीवन का गुजर बसर मुश्किल हो गया तो सब्जी बेचने का काम हाथ में लिया. धीराराम करीब 10 साल से बाड़मेर में सब्जी बेचने का काम रहे हैं.
सेल्फ स्टडी को ही अपनी सफलता का आधार बनाया
चूनाराम बताते हैं कि कोविड की वजह से उसकी काफी पढ़ाई प्रभावित हुई. लेकिन उसने परीक्षा के लिए दिन में 6 से 8 घंटे नियमित पढ़ाई की. घर की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह कोई कोचिंग संस्थान ज्वॉइन कर सके. इसलिय सेल्फ स्टडी को ही उसने अपनी सफलता का आधार बनाए रखा. परीक्षा से एक माह पहले लायब्रेरी ज्वॉइन की थी.
चूनाराम ने फब्तियां की कभी परवाह नहीं की
चूनाराम की सफलता को लेकर अब बधाइयां देने वालों का तांता लगा हुआ है. वहीं सब्जी बेचने के दौरान चूनाराम को पढ़ता देख कुछ लोग उन पर फब्तियां भी कसते थे. लेकिन चुनाराम ने उनकी कोई परवाह नहीं की और ठान लिया था कि कुछ करके नया मुकाम हासिल करना है. यही वजह है कि आज चूनाराम के हाथ सफलता लगी है. चूनाराम बताते हैं उनके पिता केवल साक्षर हैं.
हालत कभी भी हिम्मत पर भारी नहीं पड़ सकते
पिता का सपना था कि वह शिक्षक बने और उसने अपनी मेहनत की बदौलत यह कर दिखाया. चूनाराम अब राजस्थान प्रशासनिक सेवा के लिए मेहनत कर पिता के सपनों में चार चांद भरने की बात कहते नजर आ रहे हैं. चूनाराम की सफलता इस बात को साफ तौर पर सभी के सामने रख रही है कि हालत कभी भी हिम्मत पर भारी नहीं पड़ सकते.
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