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‘पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने पर भारत करने वाला था हमला, लेकिन इंदिरा गांधी ने नहीं दी मंजूरी’

Last Updated:November 08, 2025, 10:07 IST

'पाक के परमाणु ठिकाने पर भारत करने वाला था हमला मगर इंदिरा ने नहीं दी मंंजूरी'अमेरिकी खुफिया एजेंसी के एक पूर्व अधिकारी ने दावा किया है कि इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर हमले की मंजूरी नहीं दी.

अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के एक पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने दावा किया है कि 1980 के दशक की शुरुआत में भारत और इजरायल ने पाकिस्तान के कहूता यूरेनियम संवर्धन संयंत्र पर एक ज्वाइंट सीक्रेट ऑपरेशन की योजना बनाई गई थी. इसका उद्देश्य इस्लामाबाद की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को रोकना था. बार्लो ने इसे एक ऐसी कार्रवाई बताया जिसके पूरा होने से कई समस्याओं का समाधान हो सकता था. उन्होंने यह भी कहा कि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस ऑपरेशन को मंजूरी नहीं दी, जो एक बड़ा अफसोसजनक कदम था.

समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में बार्लो ने पुष्टि की कि उन्हें खुफिया हलकों में इस योजना के बारे में जानकारी मिली थी. बार्लों 1980 के दशक में सीआईए में काउंटरप्रोलिफरेशन अधिकारी के रूप में कार्यरत थे. उसी वक्त पाकिस्तान अपनी गुप्त परमाणु गतिविधियों को संचालित कर रहा था. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि वह इस दौरान सरकारी सेवा से बाहर थे, इसलिए वह सीधे तौर पर इस योजना से जुड़े नहीं थे. बार्लो ने कहा कि वह 1982 से 1985 तक सरकारी सेवा से बाहर थे. मुझे लगता है कि यह योजना उस समय की थी. मैंने इसके बारे में सुना था, लेकिन यह कभी हुआ नहीं, इसलिए मैं इसमें गहराई से शामिल नहीं हुआ. उन्होंने आगे कहा कि यह अफसोस की बात है कि इंदिरा गांधी ने इसे मंजूरी नहीं दी; इससे कई समस्याएं हल हो सकती थीं.

रिपोर्ट्स और डिक्लासिफाइड दस्तावेजों के अनुसार भारत और इजरायल ने संयुक्त रूप से पाकिस्तान के कहूता संयंत्र पर एक हवाई हमले की योजना बनाई थी. यह संयंत्र ही पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का केंद्र था. इस हमले का मकसद इस्लामाबाद को परमाणु हथियार विकसित करने और विशेष रूप से इजरायल के कट्टर दुश्मन ईरान को परमाणु तकनीक देने से रोकना था. हालांकि बार्लो आगे यह भी कहते हैं कि राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की तत्कालीन अमेरिकी सरकार इस तरह के किसी भी हमले का कड़ा विरोध करती. खासकर तब जब यह हमला इजरायल की ओर से होता. इसका कारण था अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका की सीक्रेट युद्ध रणनीति, जिसमें पाकिस्तान एक महत्वपूर्ण सहयोगी था. बार्लो ने कहा कि मुझे लगता है कि रीगन ने तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन की कड़ी निंदा करते अगर उन्होंने ऐसा कुछ किया होता तो. क्योंकि भारत-इजरायल का यह कदम अफगानिस्तान के मसले में अमेरिकी रणनीति में बाधा डाल सकता था.

बार्लो ने एक अन्य सवाल पर खुलासा किया है कि 1980 के दशक के अंत में अमेरिका को यह जानकारी थी कि पाकिस्तान अपने F-16 लड़ाकू विमानों पर परमाणु हथियार तैनात करने में सक्षम था, फिर भी अमेरिका ने इन विमानों की आपूर्ति जारी रखी. बार्लो ने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने 1989 तक यह प्रमाणित करना जारी रखा कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार नहीं हैं, जबकि खुफिया जानकारी इसके विपरीत थी. बार्लो ने कहा कि राष्ट्रपति 1989 तक यह प्रमाणित करते रहे कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार नहीं हैं. सीआईए में हममें से अधिकांश इससे सहज नहीं थे. हमारा काम केवल सटीक खुफिया जानकारी प्रदान करना था, लेकिन नीतिगत निर्णय निर्वाचित अधिकारियों के हाथ में थे. उन्होंने बताया कि 1987 के ब्रासटैक्स संकट के दौरान पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. अब्दुल कदीर खान ने स्पष्ट रूप से कहा था कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम है. खुफिया जानकारी के अनुसार इस संकट के दौरान परमाणु हथियारों को हवाई अड्डों पर ले जाया गया और F-16 पर तैनात किया गया.

संतोष कुमार

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स…और पढ़ें

न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स… और पढ़ें

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November 08, 2025, 10:07 IST

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