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अब खेतों में बचने वाले वेस्ट से बनेगा ग्रीन कोल, विकसित हुई यह खास तकनीक, किसानों की होगी बल्ले बल्ले

Agency: Rajasthan

Last Updated:February 24, 2025, 10:03 IST

Udaipur News : सीटीएई के डीन डॉ. सुनील जोशी ने बताया कि इस तकनीक से खेतों से प्राप्त भूसे को बेचने से किसानों को अतिरिक्त आय होगी. वहीं, विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अजित कुमार कर्नाटक ने कहा कि इस ईंधन के उपयोग…और पढ़ेंX
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ग्रीन कॉल

हाइलाइट्स

खेतों के अवशेषों से बनेगा ग्रीन कोल.किसानों को अतिरिक्त आय होगी.पर्यावरण संतुलन में मदद मिलेगी.

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) के सीटीएई कॉलेज ने कृषि अवशेषों से ग्रीन कोल (कोयला) तैयार करने की नई तकनीक विकसित की है. इस तकनीक के माध्यम से किसानों से प्राप्त भूसे और अन्य कृषि अवशेषों को उच्च गुणवत्ता वाले ईंधन में परिवर्तित किया जा सकेगा. विश्वविद्यालय ने इस तकनीक के पेटेंट के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है. पेटेंट मिलने के बाद इसे उद्योगों में व्यावसायिक उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाएगा.

5% बायोमास उपयोग अनिवार्य, ग्रीन कोल बनाएगा बेहतर विकल्पहाल ही में केंद्र सरकार ने बिजली उत्पादन संयंत्रों में कोयले के साथ 5% बायोमास के उपयोग को अनिवार्य कर दिया है. परंपरागत रूप से, कृषि अवशेषों को सीधे जलाने से कम ऊर्जा मिलती है और यह बरसात में अधिक नमी सोखने के कारण जलाने में कठिनाई पैदा करता है. एमपीयूएटी की नई सतत टॉरफिकेशन प्रणाली से इन अवशेषों को ग्रीन कोल में परिवर्तित किया जाएगा, जिससे इनकी ऊर्जा क्षमता बढ़ेगी और पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचेगा.

12 मिनट में तैयार हो जाएगा उच्च गुणवत्ता वाला बायोमासयह तकनीक भारत सरकार द्वारा पोषित एक शोध परियोजना का हिस्सा है. इसमें कृषि फसल अवशेषों को 250 से 300 डिग्री सेल्सियस तापमान तक गर्म किया जाता है, जिससे केवल 8 से 12 मिनट में उच्च गुणवत्ता वाला बायोमास तैयार हो जाता है. यह प्रक्रिया कृषि अवशेषों के ऊष्मा मान (कैलोरी वैल्यू) को बढ़ाती है और इसे बारिश में नमी से बचाने में भी कारगर साबित होती है.

हर घंटे 30 किलोग्राम ग्रीन कोल बनाएगी मशीनपरियोजना प्रभारी एवं नवीकरणीय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नारायण लाल पंवार के अनुसार, विकसित मशीन की लागत 7 लाख रुपये है और यह प्रति घंटे 1 से 30 किलोग्राम बायोमास को टोरिफायड कर सकती है. इस तकनीक से बने ग्रीन कोल के पैलेट्स को पारंपरिक कोयले के साथ बिजली संयंत्रों में उपयोग किया जा सकता है.

किसानों की आय में वृद्धि, पर्यावरण को भी लाभसीटीएई के डीन डॉ. सुनील जोशी ने बताया कि इस तकनीक से खेतों से प्राप्त भूसे को बेचने से किसानों को अतिरिक्त आय होगी. वहीं, विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अजित कुमार कर्नाटक ने कहा कि इस ईंधन के उपयोग से पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी और कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी.

एमपीयूएटी की इस पहल से न केवल किसानों को आर्थिक लाभ होगा, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान मिलेगा. सरकार द्वारा इस तकनीक को समर्थन मिलने के बाद उद्योगों में इसका व्यापक उपयोग संभव हो सकेगा.


Location :

Udaipur,Rajasthan

First Published :

February 24, 2025, 10:03 IST

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