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राजस्थान की बेहद प्राचीन है यह परंपरा, दीपावली में है विशेष महत्व; शुभता और सौभाग्य का माना जाता है प्रतीक

Last Updated:October 14, 2025, 12:41 IST

Rajasthan Traditional Mandana Art: राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली पर आंगन सजाने की पारंपरिक कला मांडना आज भी जीवित है. पहले महिलाएं गोबर, लाल मिट्टी और चावल के घोल से आंगन और दीवारों को सजाती थीं. कमल, दीपक, स्वस्तिक, मोर जैसी आकृतियां शुभता और समृद्धि का प्रतीक होती थीं. लोकगीत गाकर इसे बनाया जाता था. जयपुर, उदयपुर और बीकानेर जैसे शहरों में कलाकार मांडना को आधुनिक स्वरूप दे रहे हैं. पेंटिंग्स, कपड़े, बैग्स और सिरेमिक वर्क में इस परंपरा को नए रंगों के साथ पेश किया जा रहा है.

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नागौर. राजस्थान में त्यौहार पर आंगन में मांडना बनाने की एक अनोखा परम्परा रही है. पुराने समय में शुभ अवसर पर घर को मांडना बनाकर सुंदर बनाया जाता था. पहले महिलाएं आंगन को गोबर से या लाल मिट्टी से लिपती थी और उसके बाद अपने घरों, चौखटों और आंगन को गेरू, सफेद मिट्टी और चावल के घोल से सजाती थी लेकिन आजकल अलग-अलग रंगों को भी काम में लिया जाने लगा है. आंगन में चौक पुराई से बनाई गई सफेद कलाकृतियों से घर साफ और सुंदर लगता था. राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी औरतें गोबर से या लाल मिट्टी से आंगन को लीप कर आटे या रंगों से चौक पुराई करती है, लेकिन शहरों में यह परंपरा पूरी तरीके से विलुप्त हो गई है.

दीपावली के समय आंगन में चौक पुराई से देवताओं और मेहमान के स्वागत के लिए यह कलाकृतियां बनाई जाती थे. घर में ये बनाना सुख समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता था. दीपावली के शुभ अवसर पर औरतें कमल, दीपक, सूरज, गाय, मोर, कलश, स्वस्तिक और बेल-बूटे जैसी आकृतिया बनाती थी. हर आकृति अपना एक अलग मतलब होता था. गृहणी गीता देवी ने बताया कि कमल का फूल बनाना देवी लक्ष्मी का प्रतीक, दीपक ज्ञान का और स्वस्तिक शुभता का प्रतीक माना जाता था. मांडना बनाते समय महिलाए लोकगीत गाती हैं, जिससे पूरा वातावरण भक्तिभाव और उल्लास से भर जाता है.

पुरानी परंपरा को आधुनिकता के साथ आगे बढ़ा रहे कलाकार

पहले राजस्थान में दीपावली केवल दीयों का नहीं, बल्कि मांडना का भी त्योहार माना जाता था. गांवों में सुबह से शाम तक में घरों की दीवारें और आंगन मांडनों से सज जाते थे. महिलाएं इसे लक्ष्मी पूजन से एक दिन पहले बनाती हैं, ताकि देवी लक्ष्मी जब घर में प्रवेश करें तो उन्हें स्वच्छ और सुंदर स्थान मिले. इस परंपरा का उल्लेख राजस्थान के प्राचीन लोकगीतों और कहानियों में भी मिलता है. आज मांडना केवल गांवों की दीवारों तक सीमित नहीं है. यह जयपुर, उदयपुर, जोधपुर और बीकानेर जैसे शहरों में कलाकार इस कला को आधुनिक स्वरूप दे रहे हैं. कपड़ों, पेंटिंग्स, बैग्स, हैंगिंग्स और सिरेमिक वर्क में मांडना डिज़ाइन का उपयोग हो रहा है.

दीपावली के समय राजस्थान पर्यटन विभाग और कई गैर-सरकारी संस्थाए मांडना कला प्रदर्शनी, कार्यशालाए और प्रतियोगिताए आयोजित करती हैं. इसका उद्देश्य इस लुप्त होती परंपरा को पुनर्जीवित करना और नई पीढ़ी को इससे जोड़ना है. लेकिन, पुराने समय में यह एक परंपरा थी, जिस गांव के हर घर में निभाया जाता था.

श्रद्धा और सौंदर्य का प्रतीक है मांडना कला

लोककला विशेषज्ञ सुमन चौधरी ने बताया कि मांडना केवल चित्र नहीं, बल्कि श्रद्धा और सौंदर्य का प्रतीक है. राजस्थान की महिलाएं पारंपरिक प्रतीक बनाती थी, जो शुभता और समृद्धि का प्रतीक होता था. मांडना पारंपरिक रूप से पीढ़ियों से चला आ रहा है. यह औरतों द्वारा बनाया जाता है, इसलिए इसे औरतों की सुघड़ता का प्रतीक माना जाता है. जहां महिलाएं अपनी माताओं को देखकर यह कला सीखती हैं. उन्होंने बताया कि आजकल इस कला में बदलाव आया है और इसमें नए रंगों और डिजाइनों का भी उपयोग किया जा रहा है.

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दीप रंजन सिंह 2016 से मीडिया में जुड़े हुए हैं. हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, ईटीवी भारत और डेलीहंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2022 से हिंदी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एजुकेशन, कृषि, राजनीति, खेल, लाइफस्ट…और पढ़ें

दीप रंजन सिंह 2016 से मीडिया में जुड़े हुए हैं. हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर, ईटीवी भारत और डेलीहंट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. 2022 से हिंदी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. एजुकेशन, कृषि, राजनीति, खेल, लाइफस्ट… और पढ़ें

Location :

Nagaur,Rajasthan

First Published :

October 14, 2025, 12:41 IST

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राजस्थान की बेहद प्राचीन है यह परंपरा, सौभाग्य का माना जााता है प्रतीक

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