temple of LORD KARTHIKEYA is stablished in utrakhand | कार्तिक पूर्णिमा को संतान के लिए दंपती करते हैं दीपदान, मन्नत पूरी होने पर बांधते हैं घंटी
उतराखंड में बर्फ से घिरी हिमालय की चोटियों के बीच पूजे जाते हैं भगवान कार्तिकेय

कार्तिक पूर्णिमा को संतान के लिए दंपती करते हैं दीपदान, मन्नत पूरी होने पर बांधते हैं घंटी
जयपुर। कार्तिक माह का महत्व इसे और महीनों से सबसे अलग बनाता है। हिंदू धर्म के अनुसार कार्तिक महीने के देवता कार्तिकेय हैं। स्कंद पुराण के अनुसार इसी महीने में कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध किया था। वे मुख्य रूप से दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले भगवान हैं। कुमार कार्तिकेय का एक बेहद खूबसूरत मंदिर उत्तराखंड में भी मौजूद है। इसके चारों तरफ बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां इसे अलौकिक स्वरूप प्रदान करती हैं।
कार्तिक महीने में यहां दर्शन करने से हर तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर हिंदुओं का एक पवित्र स्थल है, जो भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3050 मीटर की ऊंचाई पर गढ़वाल हिमालय की बर्फीली चोटियों के मध्य स्थित है। माना जाता है कि यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसका इतिहास 200 साल पुराना है। कार्तिक स्वामी मंदिर में प्रतिवर्ष जून माह में महायज्ञ होता है। वैकुंठ चतुर्दशी पर भी दो दिवसीय मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा और ज्येष्ठ माह में मंदिर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां संतान के लिए दंपती दीपदान करते हैं।
समर्पित की थी अस्थियां
माना जाता है कि कार्तिकेयजी ने इस जगह अपनी अस्थियां भगवान शिव को समर्पित की थीं। एक किन्वदंती अनुसार एक दिन भगवान शिव ने गणेशजी और कार्तिकेय से कहा कि तुममें से जो ब्रह्मांड के सात चक्कर पहले लगाकर आएगा, उसकी पूजा सभी देवी-देवताओं से पहले की जाएगी। कार्तिकेय ब्रह्मांड के चक्कर लगाने के लिए निकल गए, लेकिन गणेशजी ने भगवान शिव और माता पार्वती के चक्कर लगा लिए और कहा कि मेरे लिए तो आप दोनों ही ब्रह्मांड हैं। भगवान शिव ने खुश होकर गणेशजी से कहा कि आज से तुम्हारी पूजा सबसे पहले की जाएगी। जब कार्तिकेय ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर आए और उन्हें इन सब बातों का पता चला, तो उन्होंने अपना शरीर त्यागकर अपनी अस्थियां भगवान शिव को समर्पित कर दीं।
घंटी चढ़ाने की है मान्यता
माना जाता है कि इस मंदिर में घंटी बांधने से इच्छा पूर्ण होती है। यही कारण है कि मंदिर के दूर से ही आपको यहां लगी अलग-अलग आकार की घंटियां दिखाई देने लगती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 80 सीढिय़ां चढऩी होती हैं। यहां शाम की आरती बेहद खास होती है। इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है।