Lord Shri Krishna is present here in the form of Madhusudan, this gate was lowered from the plane with the power of mantras

सिरोही: सिरोही जिले के मूंगथला गांव में सैकड़ों साल पुराना भगवान श्रीकृष्ण का प्राचीन मंदिर हैं. यहां भगवान अपने मधुसूदन स्वरूप में विराजमान है. आबूरोड शहर से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित मूंगथला गांव में प्राचीन मधुसूदन मंदिर आस्था का केंद्र है. उमरणी स्थित ऋषिकेश मंदिर में भगवान विष्णु के स्वरूप विराजित करने के बाद विभिन्न स्वरूपों के मंदिरों की इस क्षेत्र में स्थापना करवाई गई थी. इनमें मूंगथला गांव का मधुसूदन मंदिर प्रसिद्ध हैं. बाद में समय-समय पर सिरोही के राजाओं द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया.
भगवान विष्णु के 1008 स्वरूप माने जाते हैं. जिनकी अलग-अलग स्वरूपों में पूजा होती है. मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर से निर्मित भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप में हैं. मंदिर में पूजा भगवान विष्णु की होती है, लेकिन भक्ति भगवान कृष्ण की होती है, क्योंकि मान्यता है कि ये मंदिर भगवान कृष्ण के समय बनाया गया था. भगवान कृष्ण को मधुसूदन की उपाधि दी गई थी. मंदिर के गर्भगृह के बाहर भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ विराजित है. पास में पालकी में भगवान के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल के रूप में विराजित है. मंदिर के गर्भगृह के बाहर सुंदर कलाकृति वाला गेट लगा हुआ है. जन्माष्टमी पर यहां धूमधाम से भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. वहीं वैशाख एकादशी को मंदिर का वार्षिकोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इसमें जिलेभर से भक्त पहुंचते हैं. वर्तमान में मंदिर का संचालन मधुसूदन मुक्ति समिति ट्रस्ट के द्वारा किया जा रहा है. मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष मोहन सिंह देवड़ा निम्बज समेत समिति सदस्य सेवाएं दे रहे हैं.
आसमान से उतारा था प्राचीन द्वार!मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही एक अति प्राचीन द्वार बना हुआ है. इस द्वार पर आकर्षक कलाकारी की हुई है. मंदिर समिति सदस्य आनंद माली ने बताया कि मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण जब से द्वारका नगरी जा रहे थे. तब यहां तपस्या कर रहे ऋषि मुनियों ने विमान पर लगे इस द्वार को मंत्रों की शक्ति से साक्षात उतारकर भगवान के मंदिर के बाहर स्थापित किया गया था. भगवान श्रीकृष्ण भी यहां रुके थे. मुगल काल में जब हिंदू मंदिरों को नष्ट किया जा रहा था, उस समय इस द्वार को भी खंडित कर दिया गया था.
संतान की मनोकामना होती है पूर्णइस द्वार को लेकर मान्यता है कि संतान विहीन परिवार मंदिर में संतान की मनोकामना करते है. मनोकामना पूरी होने पर इस द्वार से संतान के वजन जितनी शक्कर, गुड़, आदि वस्तु तोलकर दान करते हैं. इसलिए इसे तुला द्वार भी कहा जाता है. यहां राजस्थान समेत गुजरात से काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 26, 2024, 15:24 IST