Rajasthan

महाराष्ट्र के बाद यहां होता है विशाल रूप से गणेश विसर्जन, 50,000 से अधिक प्रतिमाएं विसर्जित

शक्ति सिंह/कोटा. देशभर में गणेश उत्सव का माहौल है. ऐसे में कोटा में भी पहली बार 1948 में ठेले पर रख कर गणेश प्रतिमा के विसर्जन की शुरुआत हुई थी. राजस्थान की बात करें तो महाराष्ट्र के बाद गणेश विसर्जन का विशाल रूप यहीं देखने को मिलता है. इस शोभा यात्रा में दर्जनों अखाड़े, झांकियां, गणेश प्रतिमाएं मौजूद रहती हैं. वहीं यहां पहलवान हैरतअंगेज करतब करते हैं.

अनंत चतुर्दशी गणेश विसर्जन का विशाल रूप महाराष्ट्र के बाद कोटा में देखने को मिलते है. विसर्जन उत्सव में 50,000 से अधिक गणेश प्रतिमाएं विसर्जित होती हैं. यह शोभायात्रा दोपहर से निकलना शुरू होती है, जो 5 किलोमीटर मार्ग पर निकलती है. इसमें 15 से 20 घंटे का समय लगता है. इस शोभायात्रा में 2 लाख से अधिक लोग शामिल होते हैं.

इतने पुलिसकर्मी तैनात
शोभायात्रा सूरजपोल गेट से शुरू होकर कैथूनीपोल होती हुई किशोर सागर बाराद्वारी पर पहुंचती है. इस शोभायात्रा में 35 हजार से अधिक पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं. यही नहीं 17 एडिशनल एसपी, 33 डीएसपी समेत कई पुलिस अधिकारी तैनात रहते हैं. वहीं 6 ड्रोन 90 रूफ़ टावर से नजर रखी जाती है.

यहां हुआ प्रसाद वितरण
5 किलोमीटर मार्ग पर निकाली इस शोभायात्रा में जगह-जगह आलू बड़े, समोसे, कचोरी, फल फ्रूट, पूड़ी, सब्जी, दूध, शर्बत, पेयजल के जगह-जगह काउंटर लगे होते हैं. विसर्जन यात्रा के दौरान रघुनाथ चौक में ढाई लाख से अधिक आलू बड़ों का प्रसाद बांटा गया और 2100 किलो हलवा और 50,000 कचोरी प्रसाद के तौर पर लोगों को वितरित की गई.

1948 में हुई थी शुरुआत
1948 का वो दिन कोटा कभी नहीं भूलेगा, जब पहली बार गाजे-बाजे के साथ यहां सड़कों पर विसर्जन यात्रा निकाली गई. अनंत चतुर्दशी महोत्सव का आज जो विशाल रूप देखने को मिलता है, वह शुरुआत में ऐसा नहीं था. उस वक्त घर और मंदिरों तक गणेश उत्सव सीमित था. अब यह आयोजन इतना भव्य हो गया है कि देश के दूसरे हिस्सों से भी लोग इसे देखने और उल्लास के रंग में रंगने के लिए कोटा आते हैं, लेकिन इस स्वरूप को विराट बनने में 75 साल लग गए.

ठेले पर ले जाते थे प्रतिमा
कोटा में गणेशोत्सव के सार्वजनिक महोत्सव की नींव 1948 में पाटपनोल निवासी डॉ. रामकुमार ने रखी थी. वह फूल बिहारी जी मंदिर के सामने अपनी क्लीनिक पर ही गणपति स्थापना करते थे. यहां दस दिन तक भजन-कीर्तन व आरती आयोजन होते. अनंत चतुर्दशी पर प्रतिमा को ठेले में रखकर रामपुरा स्थित छोटी समाध ले जाते थे और विसर्जित करते थे.

Tags: Kota news, Local18, Rajasthan news in hindi

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