देश का इकलौता रेलवे स्टेशन, चंदा देकर ग्रामीणों ने बनाया, Railway ने एक भी पैसा नहीं किया खर्च
कृष्ण सिंह शेखावत
झुंझुनूं . बलवंतपुरा-चैलासी देश का इकलौता ऐसा रेलवे स्टेशन है, जिसका निर्माण ग्रामीणों ने खुद के खर्च पर करवाया. रेलवे ने एक रुपया भी खर्च नहीं किया. ग्रामीणों की जिद से यह संभव हाे पाया. आज यहां हर पेसेंजर गाड़ी रुकती है. हम बात कर रहे हैं सीकर-लोहारू रेलवे खंड पर नवलगढ़ और मुकुंदगढ़ के बीच स्थित बलवंतपुरा-चैलासी रेलवे स्टेशन जिसे 5 पंचायतों के ग्रामीणों ने अपने खर्च पर बनवाया था. 17 साल बाद अब ग्रामीणााें ने इस हाल्ट स्टेशन को फ्लैग स्टेशन की श्रेणी दिलाने की ठानी है. इसके लिए प्लेटफॉर्म सहित अन्य सुविधाओं का विस्तार भी ग्रामीण अपने पैसे से ही करेंगे ताकि यहां एक्सप्रेस गाड़ियां भी रुक सके. रेलवे स्टेशन बनवाने के काम में रेलवे के तत्कालीन सेक्शन ऑफिसर बलवंतपुरा के सांवरमल जांगिड़ का अहम किरदार रहा है. उनका कहना है कि एक्सप्रेस गाड़ियों के ठहराव के लिए इसे फ्लेग स्टेशन का दर्जा मिलना जरूरी है. इसके लिए ग्रामीणों को साथ लेकर विधायक और सांसद सहित रेलवे मंत्री से मिलेंगे. उस समय गांव के समाजसेवी बजरंगलाल जांगिड़, फूलचंद टेलर, भैराराम लांबा, मामचंद चौधरी व ओमप्रकाश माथुर आदि ने रेल मंत्री से मुलाकात कर प्रस्ताव दिया था. 5 गांवों डूंडलोद, चैलासी, नवलड़ी, कैरू और ढाणियां पंचायत के सैकड़ों लोग एकजुट हुए और इस असंभव काम को संभव कर दिखाया.
पहले बात सीकर-लोहारू रेलवे खंड पर नवलगढ़ और मुकुंदगढ़ के बीच स्थित बलवंतपुरा-चेलासी रेलवे स्टेशन की, जो 17 साल पहले ग्रामीणों की जिद से यह संभव हो पाया. आज यहां हर पेसेंजर गाड़ी रुकती है. अब कुछ एक्सप्रेस ट्रेनों का यहां ठहराव कराने की योजना है. सीकर-लोहारू रेलवे खंड पर नवलगढ़-मुकुंदगढ़ के बीच स्थित है बलवंतपुरा-चैलासी रेलवे स्टेशन. छोटे से गांव में स्टेशन बनाने के विचार की शुरुआत 1992 में हुई. क्योंकि डूंडलोद के लोग काफी अर्से से इसकी मांग उठा रहे थे. डूंडलोद के साथ ही बलवंतपुरा, चैलासी, नवलड़ी, कैरू के ग्रामीणों ने तय किया कि डूंडलोद के पास स्टेशन बनना चाहिए. 1995-96 में सबने सर्वसहमति से डूंडलोद रेलवे फाटक के पास स्टेशन के लिए जगह चिह्नित की. 10 साल तक पत्राचार चला और फिर 2 अगस्त 2002 को रेलवे ने स्टेशन की मंजूरी दे दी. 3 जनवरी 2005 को यहां पहली पैसेंजर ट्रेन रुकी तो पांचों गांवों के ग्रामीणों ने इसे सेलिब्रेट किया था.
6 किमी दूरी के बीच में दूसरा स्टेशन नहीं बन सकता
हालांकि इस सपने को साकार होने में कई मुश्किलें भी आईं. रेलवे स्टेशन के प्रस्ताव पर तत्कालीन सांसद शीशराम ओला और नवलगढ़ के तत्कालीन विधायक भंवरसिंह शेखावत ने यह कहकर समर्थन देने से मना कर दिया था कि बलवंतपुरा में स्टेशन संभव ही नहीं है. क्योंकि यहां न तो अप्रोच सड़क है और न ही कोई सुविधाएं, बस स्टैंड भी नहीं है. उनका यह भी तर्क था कि प्रस्तावित स्टेशन के एक तरफ तीन किमी दूरी पर नवलगढ़ और दूसरी तरफ तीन किमी दूरी पर मुकुंदगढ़ स्टेशन है. ऐसे में सिर्फ 6 किमी दूरी के बीच में दूसरा स्टेशन नहीं बन सकता. लेकिन पूर्व सांसद कैप्टन अयूब खां ने इस संघर्ष में ग्रामीणों का साथ दिया.
पांच पंचायत के लोगों ने 7.82 लाख में बनाया रेलवे स्टेशन
पांच गांवों के लोगों द्वारा रेलवे को भेजे प्रस्ताव में साफ था कि रेलवे सिर्फ स्टेशन मंजूर कर दे, बाकी खर्च ग्रामीण खुद वहन कर लेंगे. रेलवे से मंजूरी के बाद यह देश का इकलौता रेलवे स्टेशन बना, जिसका निर्माण ग्रामीणों ने खुद के खर्च पर करवाया. रेलवे ने एक रुपए खर्च नहीं किया. पांच गांवों के लोगों के सहयोग से स्टेशन के निर्माण पर तब 7 लाख 82 हजार रुपए खर्च हुए और यह दो साल में बनकर तैयार हो गया. स्टेशन के पास स्थित सरस्वती स्कूल के निदेशक बीरबलसिंह गोदारा ने यात्रियों के लिए पानी की व्यवस्था की. शेखावाटी इंजीनियरिंग कॉलेज के संचालक शीशराम रणवा ने यात्रियों के बैठने के लिए हॉल का निर्माण करवाया. दो साल तक यहां ग्रामीण ही स्टेशन अधीक्षक, बाबू की भूमिका में रहे. हालांकि बाद में रेलवे ने यहां पर टिकट एजेंट नियुक्त कर दिया गया.
अब हॉल्ट स्टेशन को फ्लैग स्टेशन बनवाने की ठानी
अब 17 साल बाद ग्रामीणों ने इस हॉल्ट स्टेशन को फ्लैग स्टेशन की श्रेणी दिलाने की ठानी है. इसके लिए प्लेटफॉर्म सहित अन्य सुविधाओं का विस्तार भी ग्रामीण अपने पैसे से ही करेंगे. ताकि यहां एक्सप्रेस गाड़ियां भी रुक सके. रेलवे स्टेशन बनवाने के काम में रेलवे के तत्कालीन सेक्शन ऑफिसर बलवंतपुरा के सांवरमल जांगिड़ ने अहम भूमिका निभाई थी. जांगिड़ के मुताबिक एक्सप्रेस ट्रेनों के ठहराव के लिए इसे फ्लेग स्टेशन का दर्जा मिलना जरूरी है. इसके लिए ग्रामीणों को साथ लेकर विधायक व सांसद सहित रेलवे मंत्री से मिलेंगे. पांच गांवों डूंडलोद, चैलासी, नवलड़ी, कैरू व ढाणियां पंचायत के सैकड़ों लोग फिर से एकजुट होकर इसे फ्लैग स्टेशन का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करेंगे.
नागौर : ग्रामीणों द्वारा चलाने की शर्त पर शुरू हुआ हाल्ट स्टेशन
अब बात करते हैं राजस्थान के ऐसे ही एक और अनोखे रेलवे स्टेशन की. नागौर जिले का जालसू नानक हाल्ट रेलवे स्टेशन देश का संभवत: इकलौता रेलवे स्टेशन है, जिसे रेलवे नहीं चलाता. गांव वाले 18 साल से खुद अपनी जेब से चंदा देकर चला रहे हैं. या स्टेशन गांव वालों के हाथ में उस वक्त आया, जब भारतीय रेलवे ने रेवेन्यु कम होने के कारण 2005 में इसे बंद करने का फैसला किया. ग्रामीणों ने 11 दिन तक धरना दिया था. रेलवे ने इस स्टेशन को दोबारा शुरू करने के लिए शर्त रखी कि ग्रामीण इस रेलवे स्टेशन को चलाएंगे. इसके साथ ही उन्हें हर महीने 1500 टिकट और प्रतिदिन 50 टिकट बेचने होंगे.
चंदा कर जुटाए गए डेढ़ लाख रुपयों से खरीदे 1500 टिकट
ग्रामीणों के मुताबिक स्टेशन चालू करने की रेलवे की शर्त को पूरा करने के लिए ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाई और हर घर से चंदा जुटाया. चंदे से जुटाए गए डेढ़ लाख रुपयों से 1500 टिकट भी खरीदे गए और बाकी बचे रुपये को ब्याज के तौर पर इनवेस्ट किया. इसके बाद 5 हजार रुपये की सैलरी पर एक ग्रामीण को ही टिकट बिक्री के लिए स्टेशन पर बैठाया गया. बिक्री से मिलने वाले कमीशन और ब्याज के रुपयों से उसे मानदेय दिया गया. शुरुआती दौर में आय कम थी, लेकिन गांव के लोगों ने इसके बाद भी इसे जारी रखा. फिर हर महीने 30 हजार रुपये से ज्यादा आय इस स्टेशन से होने लगी.
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गांव के हर दूसरे घर में है फौजी
दरअसल ये फौजियों का गांव है, यहां हर दूसरे घर में एक फौजी है. वर्तमान में 200 से ज्यादा बेटे सेना, बीएसएफ, नेवी, एयरफोर्स और सीआरपीएफ में हैं. जबकि 250 से ज्यादा रिटायर फौजी हैं. करीब 45 साल पहले 1976 में इन्ही फौजियों व इनके परिवारों के आवागमन के लिए रेलवे ने यहां हाल्ट स्टेशन शुरू किया गया था. इसके बाद रेलवे की पॉलिसी की वजह से इसे बंद करने का फैसला लिया गया.
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