Health

डॉक्टरों की बॉन्ड नीति क्या है? मोदी सरकार अब क्यों लेने जा रही है इस पर बड़ा फैसला

नई दिल्ली. देश में जल्द ही डॉक्टरों (Doctors) की बॉन्ड पॉलिसी (Bond Policy) पर बड़ा फैसला आने वाला है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) डॉक्टरों के लिए बॉन्ड पॉलिसी को रद्द करने के दिशा-निर्देशों पर काम कर रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय की सूत्रों से मिली जानकारी के अनसार राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission) की सिफारिशों के आधार पर मोदी सरकार (Modi Governent) डॉक्टरों के लिए बॉन्ड पॉलिसी को अब खत्म करने करने जा रही है. देश के डॉक्टर्स इस बॉन्ड पॉलिसी को लेकर काफी लंबे समय से आवाज उठा रहे हैं. आपको बता दें कि बॉन्ड पॉलिसी डॉक्टरों के लिए एक ऐसी नीति है, जिसके तहत डॉक्टर अपनी अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट की डिग्री पूरी करने के बाद राज्य के अस्पतालों में एक निश्चित समय के लिए अपनी सेवा देते हैं.

अगर डॉक्टर इस बॉन्ड को तोड़ते हैं तो उन्हें राज्यों के द्वारा तय किए गए एक निश्चित रकम का भुगतान करना पड़ता है.डॉक्टरों को अनिवार्य सेवा की अवधि 1 वर्ष से 5 वर्ष के बीच होती है. इस बॉन्ड का पालन न करने वालों पर अलग-अलग राज्य सरकारों के द्वारा 10 से 50 लाख रुपये की रकम जुर्माने के लिए निर्धारितत है.

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साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की बॉन्ड पॉलिसी को बरकरार रखा था. (फाइल फोटो)

ये है बॉन्ड पॉलिसी
देश की सुप्रीम कोर्ट ने भी कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल और राजस्थान सहित अन्य राज्यों द्वारा थोंपे गए ऐसे बांड को सही करार दिया था. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की बॉन्ड पॉलिसी को बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि स्नातक और सुपर स्पेशलिटी कोर्स में दाखिले के वक्त डॉक्टर जो बॉन्ड भरते हैं, उन्हें उनका पालन करना ही होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर डॉक्टरों को अनिवार्य सेवा देने के लिए कह सकते हैं.

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को सरकारी कॉलेजों से प्रशिक्षित डॉक्टरों के लिए अनिवार्य सेवा को लेकर एक समान नीति बनाने के लिए भी कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न पहलुओं पर गौर करने के बाद इस दलील को खारिज कर दिया कि डॉक्टरों के लिए जन सेवा के लिए बाध्य करना संविधान के अनुच्छेद- 21(जीवने जीने का अधिकार) का उल्लंघन है.

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सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद ही साल 2019 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया था. (फोटो-Twitter)

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सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद ही साल 2019 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया था. इस समिति ने मई 2020 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी, जिसके बाद इसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को भेज दिया गया था. एनएमसी ने फरवरी 2021 में कहा कि मोडिकल छात्रों के लिए विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा बॉन्ड शर्तों को अनिवार्य रूप से लागू करने पर नीतियों का समर्थन नहीं करती. आयोग ने कहा कि विभिन्न राज्यों द्वारा बॉन्ड पॉलिसी की घोषणा के बाद से देश में चिकित्सा शिक्षा में बहुत कुछ बदल गया है, इसलिए इसकी समीक्षा किए जाने की जरूरत है.

Tags: Doctors, Junior Doctor, Modi government, NMC, Union health ministry

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