poem by kalpana | कविता-निबाहना इतना आसां नहीं
कविता
जयपुर
Published: April 10, 2022 11:54:34 am
कल्पना गोयल हां!
निबाहना इतना आसां नहीं
पर इतना मुश्किल भी कहां है निबाहने का अर्थ
किसी को
मजबूरन सहना नहीं है
अपितु संबंधों को
मजबूती प्रदान करना है हकीकत को समझना है
गिरते-उठते पड़ावों को
आधार प्रदान करना है

कविता-निबाहना इतना आसां नहीं
निबाहना स्वयं से ली
गई एक शपथ है
वायदा है,कसम नहीं
प्रचलित रीति को
विश्वास देने जैसा है निबाहना प्रेम की परिपाटी है
परिपक्वता की थाती है
यानी स्नेह/प्रेम से
जीने का संबल मिलना और
मानो गढऩा अपनी माटी है
निबाहना तोडऩे का विलोम नहीं
अपितु,हमारी संस्कृति की
सनातन पहचान है
हमारी शान है और
बरसों से कायम आन है निबाहना क्रिया का समभाव है
गहन अर्थ का परिचायक है
सीख देता हुआ नवजीवन-सा
प्रेम का संचारक है,प्रचारक है निबाहना अनेक अर्थों का
सूत्रधार-सा,मगर
रिश्तों का बना आधार है
सकारात्मक भाव में
जीने का भी आधार है
निबाहने से मिटता एकाकीपन
सदैव होता समस्या का निवारण,
स्वस्थ जीवन-शैली का हो मूलाधार
मिलता दीर्घायु का वरदान है!!पढि़ए एक और कविता क्यों नारी बेचैन सत्यवान सौरभ नारी मूरत प्यार की, ममता का भंडार।
सेवा को सुख मानती, बांटे खूब दुलार।।
अपना सब कुछ त्याग के, हरती नारी पीर।
फिर क्यों आंखों में भरा, आज उसी के नीर ।। रोज कहीं पर लुट रही, अस्मत है बेहाल।
खूब मना नारी दिवस, गुजर गया फिर साल।। थानों में जब रेप हो, लूट रहे दरबार।
तब ‘सौरभ’ नारी दिवस, लगता है बेकार।।
सिसक रही हैं बेटियां, ले परदे की ओट।
गलती करे समाज है, मढ़ते उस पर खोट।। नहीं सुरक्षित आबरू, क्या दिन हो क्या रात।
कांप रहें हम देखकर, कैसे ये हालात।। महक उठे कैसे भला, बेला आधी रात ।
मसल रहे हैवान जो, पल-पल उसका गात ।।
जरा सोच कर देखिये, किसकी है ये देन ।
अपने ही घर में दिखे, क्यों नारी बेचैन ।। नारी तन को बेचती, ये है कैसा दौर ।
मूरत अब वो प्यार की, दिखती है कुछ और ।।
नई सुबह से कामना, करिए बारम्बार।
हर बच्ची बेखौफ हो, पाए नारी प्यार।। कर सके प्रतिकार
और सामने वाले को जतला सके
कि उसका चैन छीनना
और मरने के लिए मजबूर करना…
इतना आसान नहीं…
बिल्कुल आसान नहीं!!!
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