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Kalashtami: know Worship method & muhurat | कालाष्टमी: भगवान शंकर के रूद्र अवतार की ऐसे करें पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू कैलेंडर के तीसरे माह ज्येष्ठ में कई सारे व्रत आते हैं, इनमें से एक है कालाष्टमी। यह व्रत अंग्रेजी माह जून की 02 तारीख, बुधवार को पड़ रहा है। हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन महादेव यानी कि भगवाान शंकर के रूद्र अवतार काल भैरव जी की पूजा की जाती है। इसलिए कालाष्टमी को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। 

पुराणों के अनुसार, कालभैरव को शिव का पांचवा अवतार माना गया है। इनके दो रूप है पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध है। दूसरा काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक है। ऐसा माना जाता है कि कालाष्टमी का व्रत रखने वाले जातक के जीवन में आने वाली समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां दुर्गा की पूजा भी की जाती है। 

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मुहूर्त
कलाष्टमी तिथि प्रारंभ: 02 जून रात्रि 12 बजकर 46 मिनट से
कलाष्टमी तिथि समापन: 03 जून रात्रि 01 बजकर 12 मिनट तक

मान्यता और महत्व
मान्यताओं के अनुसार शिव के अपमान स्वरूप मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। भगवान शिव ने पापियों को दंड देने के लिए रौद्र रुप धारण किया था। शिव पुराण में बताया गया है कि शिवजी हर कण में विराजमान हैं, इस वजह से शिवजी ही इन तीन गुणों के नियंत्रक माने गए हैं। शिवजी को आनंद स्वरूप में शंभू, विकराल स्वरूप में उग्र और सत्व स्वरूप में सात्विक भी पुकारा जाता है।

इस विधि से करें पूजा
– इस दिन जातक को सुबह सूर्यादय से पूर्व उठना चाहिए।
– नित्यक्रमादि से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
– संभव हो तो इस दिन भैरव मंदिर में जाकर आराधना करें।
– संभव ना होने पर अपने घर में भगवान शिव की पूजा करें।

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– भगवान शंकर की विधि विधान से पूजा करें।
– 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं।
– शाम के समय भगवान शिव के साथ माता पार्वती जी और भैरव जी की पूजा करें।
– भैरव जी की पूजा करने के लिए काले तिल, उड़द, दीपक, धूप और सरसों का तेल का उपयोग करें। 
– पूजा के दौरान भगवान भैरव की आरती करें।

पूजा के दौरान इस मंत्र का करें जाप

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

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