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‘लाशों से कैसा डरना…डर तो इंसानों से लगता है’ जानें मायादेवी का बचपन से बुढ़ापे तक का श्मशान घाट का सफर

Last Updated:April 07, 2025, 16:19 IST

Maya Devi Shamshaan Ghat ka Safar : माया देवी जब 6 वर्ष की थी, तब उनके पिताजी का देहांत हो गया था. उनके पिता से ही उन्हें ये काम विरासत में मिला हैं. उनके पिता के देहांत के बाद उनकी माता ने लाशों के दाह संस्कार…और पढ़ेंX
त्रिवेणी
त्रिवेणी नगर जयपुर श्मशान घाट में सफाई करते हुए माया देवी। 

हाइलाइट्स

माया देवी ने 6 साल की उम्र से श्मशान घाट में काम शुरू कियामाया देवी ने लाखों शवों का दाह संस्कार कियामाया देवी श्मशान घाट को सुंदर और साफ-सुथरा रखती हैं

जयपुर : यह कहानी है एक महिला की, जिन्होंने अपना पूरा जीवन उस जगह को दे दिया, जहां महिलाओं का जाना प्रतिबंधित माना जाता है. महज 6 वर्ष की उम्र से माया देवी उस जगह पर रहीं, जहां बच्चे क्या बूढ़े भी जाने से कतराते हैं. माया देवी के पिता श्मशान घाट में दाह संस्कार का काम करते थे. माया देवी जब 6 वर्ष की थीं, तभी उनके पिता की मौत हो गई और उन्हें शवों के दाह संस्कार का काम विरासत में मिला. पिता के देहांत के बाद माया देवी ने यह काम शुरू किया और श्मशान घाट को ही अपना घर बना लिया.

माया देवी का कहना है कि मरे हुए लोगों से क्या ही डरना, डर तो जिंदा इंसानों से लगता है. मैं तो बचपन से लेकर अब बुढ़ापा की तरफ अग्रसर हूं मुझें लाशों से बिल्कुल डर नहीं लगता…लेकिन ये रंग बदलने वाले इंसानों से डर लगता है. हमारे समाज में तो महिलाओं को श्मशान घाट तक जानें नहीं दिया जाता और मैं तो उन्हीं सब लाशों के बीच में ही अब तक रहती हुई आई हूं.

अब तक लाखों लाखों का कर चुकी दाह-संस्कार माया देवी बताती हैं की बचपन से इतने दाह-संस्कार देखे हैं और किए है कि उन्हें उनकी संख्या भी याद नहीं हर दिन हर सप्ताह वह लाशों का दाह-संस्कार करती हैं, माया देवी वर्षों से अपने बच्चों के साथ श्मशान घाट में ही रहती हैं और निश्चित होकर लोगों के दाह संस्कार करती हैं और इसी काम से अपने परिवार को पालती हैं, श्मशान घाट में लाई गई लावारिस लाशों का वह दाह-संस्कार से लेकर पिंड दान तक करती हैं, इसलिए समाज के लोग भी उनके इस काम की सहारना करते हैं और उनकी मदद भी करते हैं जिससे उनका घर चलता हैं, आपको बता दें माया देवी की माता का नाम गुलाब देवी था.

अभी माया देवी के चार बच्चे हैं, दो की शादी कर दी, और दो पढ़ रही है. माया देवी कहती हैं की मैंने पूरे जीवन भर यह काम किया पर अब मेरी बेटियां यह काम भी सीख रही हैं और पढ़ाई भी करती हैं आगे आने वाले समय में जो उन्हें ठीक लगे वह वैसा ही काम करेंगी, माया देवी बताती हैं श्मशान घाट में आने वाली लावारिस लाश किसी भी जाति समुदाय की क्यों न हों वह उन शवों का संस्कार पूरे विधिविधान से करती हैं.

समाज सेवा में गुजार दिया पूरा जीवन माया देवी बताती हैं कि इस काम को उनके माता-पिता ने किया और अब उनका आधा जीवन भी इसी काम में पुरा हो चुका हैं और वह जब तक जीवित रहेगी इस काम को करती रहेंगी, आपको बता दें माया त्रिवेणी नर मोक्ष धाम में वर्षों से रह रही हैं इसलिए श्मशान घाट में उन्होंने सैंकडों पौध लगायें है इस जगह को छायादार, फलदार पेड़ लगाकर लोगों के बैठने और आराम करने हेतु इस जगह को बहुत ही सुंदर स्थान बनाया, माया देवी श्मशान घाट में अपने तरिके से दाह-संस्कार करती हैं.

माया देवी किसी व्यक्ति की मृत्यु होने के बाद उनके परिजन या पुलिस द्वारा एक घंटे जानकारी पहुंचा देते हैं. उनके आने से पहले वो लकड़ियां तोल कर रख देती है और नीचे जलाने के लिए का आधार तैयार कर देती हैं, साथ ही दाह संस्कार से संबंधित सभी तैयारियां कर लेती हैं और रीति रिवाजों के साथ दाह-संस्कार करती हैं, हर समय माया देवी श्मशान घाट में साफ सफाई और अन्य कामों में भी लगी रहती हैं जिससे श्मशान घाट की सुंदरता बनी रहें.

Location :

Jaipur,Rajasthan

First Published :

April 07, 2025, 16:19 IST

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‘लाशों से कैसा डरना..डर तो इंसानों से लगता है’ जानें मायादेवी का श्मशान का सफर

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