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रिसर्च: लंबे समय तक रहा था कोविड? तो समझिए मामला गड़बड़ है…2 साल तक दिमाग पर रहेगा असर

नई दिल्ली: कोरोना महामारी का प्रकोप तो दुनिया से अब लभगभ समाप्त हो चुका है, लेकिन उसका असर अब भी बना हुआ है. एक रिसर्च में सामने आया है कि यदि आपको लंबे समय तक के लिए कोविड रहा है, तो उसका न्यूरोलॉजिकल असर कम से कम दो साल तक बना रह सकता है. मेडिकल रिसर्च जर्नल eClinicalMedicine में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि जिन लोगों ने कम से कम 12 हफ्तों तक कोविड के लक्षण होने की जानकारी दी थी, उनके याददाश्त, तार्किक क्षमता पर संक्रमण के बाद 2 साल तक असर देखा जा सकता है.

वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक शोधार्थियों ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके हजारों लोगों से जानने की कोशिश की कि कोविड किस तरह दिमाग पर असर डालता है और इससे संबंधित लक्षण कितने लंबे वक्त तक रहते हैं. लंदन किंग्स कॉलेज के वरिष्ठ पोस्टडॉक्टरल डेटा वैज्ञानिक नाथन चीथम जिन्होंनें अध्ययन का नेतृत्व किया, उन्होंने बताया कि इस शोध से यह समझने का मौका मिला है कि कोविड का प्रभाव कितना व्यापक है और कौन सबसे अधिक प्रभावित हुआ है.

दुनिया भर में लोगों ने लॉन्ग कोविड की शिकायत दर्ज की है. लाखों लोग इससे पीड़ित रहे. लॉन्ग कोविड के लक्षणों में थकान, सांस की तकलीफ, हृदय संबंधी दिक्कतें, पाचन तंत्र की समस्या और न्यूरोलॉजिकल परेशानी जैसे ब्रेन फॉगिंग, सुन्नता, झुनझुनी, सिरदर्द, चक्कर आना, नजर में धुंधलापन, टिनिटस और थकान शामिल हैं. वेइल कॉर्नेल मेडिसिन के न्यूरोलॉजिस्ट एना एस. नॉर्डविग, जिन्होंने लंबे वक्त से ब्रेन फॉग से पीड़ित लोगों के लिए क्लिनिक बनाया है, उन्होंनें वाशिंगटन पोस्ट को बताया, “इस बारे में विवाद रहा है कि क्या पहले के कोविड संक्रमण के संज्ञानात्मक (cognitive) असर वाकई में बने रहते हैं.

नॉर्डविग ने बताया कि उन्होंने खुद के अनुभव से पाया है कि ये लक्षण बने रहते हैं. दुर्भाग्य से, कुछ मामलों में तीन साल से अधिक, और कई बार हल्के कोविड संक्रमण के बाद भी यह बने रहते हैं. संज्ञानात्मक कठिनाई लंबे समय तक रहने वाले कोविड रोगियों में देखा जाने वाला सबसे आम लक्षण है. मेयो क्लिनिक में कोविड एक्टिविटी रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम के मेडिकल डायरेक्टर ग्रेग वानीचकचोर्न ने मीडिया को बताया, ‘हमने पाया है कि बहुत से लोग थकान और सहनशीलता जैसी शारीरिक चीजों में फिर भी पार पा लेते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन संज्ञानात्मक कमी, ऐसी परेशानी है जो सबसे लंबे समय तक बनी रहती हैं. कभी-कभी तो यह दूर नहीं होता है और लोग उसके साथ जीने की आदत डाल लेते हैं.’ 2021 में, किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का उपयोग करके 3335 स्वैच्छिक प्रतिभागियों का अवलोकन किया. शोध से पता चला कि जिन प्रतिभागियों को 12 सप्ताह या उससे अधिक समय तक कोविड के लक्षण रहे थे, उनमें संज्ञानात्मक कमी काफी अधिक पाई गई- जो कि उनकी उम्र से 10 साल ज्यादा उम्र वालों के बराबर थी.

Tags: Coronavirus, COVID pandemic

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