13 साल से 75 रुपये महीने में सरकारी नौकरी कर रहा है यह शख्स, 20 साल लड़ चुका है कानूनी लड़ाई

श्रीगंगानगर. अक्सर आम लोगों की सरकारी सिस्टम (Government system) से नाराजगी की खबरें सामने आती रहती हैं लेकिन राजस्थान में एक सरकारी सेवक (Government servant) ही सरकारी सिस्टम के बदहाली का शिकार हो गया है. सरकारी सिस्टम और लाल फीताशाही का शिकार हुआ यह सरकारी सेवक राज्य सरकार से अपने बकाया हक की मांग कर रहा है. हक नहीं मिलने पर उसने सरकार से मांग की है कि उसे फांसी पर चढ़ा दिया जाये. बदहाल सरकारी सिस्टम का शिकार हुआ यह कर्मचारी बीते 13 साल से महज 75 रुपये प्रतिमाह की सैलेरी पर काम रहा है. जबकि वह अपना हक पाने के लिये 20 साल तक कोर्ट में कानूनी लड़कर उसे जीत चुका है.
यह पूरा मामला मरुधरा के सरहदी जिले श्रीगंगानगर का है. जिले के पदमपुर अस्पताल में स्वीपर के पद पर कार्यरत 57 वर्षीय बलराम भाटिया महज 75 महीने की तनख्वाह पर नौकरी कर रहे हैं. बलराम भाटिया को सन् 1985 में अंशकालीन स्वीपर पद पर नियुक्ति दी गई थी. फिर उसे 1989 में हटा दिया गया. ऐसे में बलराम भाटिया ने लेबर कोर्ट में जाकर अपनी नौकरी के लिये लड़ाई लड़ी.
2009 से आज तक दी जा रही है 75 रुपये सैलेरी
आखिरकार 20 साल बाद वर्ष 2002 में लेबर कोर्ट ने बलराम भाटिया के हक में फैसला सुनाया. इसके खिलाफ स्वास्थ्य विभाग ने हाई कोर्ट में रिट लगाई लेकिन वह खारिज हो गई. लेबर कोर्ट ने बलराम भाटिया की सेवाओं को लगातार मानते हुए 2001 से बहाली के आदेश दिए थे. इस पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा 18 मार्च 2009 में बलराम भाटिया को पदमपुर अस्पताल में स्वीपर पद पर नियुक्ति दी गई. 2009 से ही आज तक बलराम भाटिया को महज 75 रुपये महीने की तनख्वाह दी जा रही है.
लेबर कोर्ट बलराम के पक्ष में दो बाद फैसला दे चुका है
लेबर कोर्ट ने उसे नियुक्ति के 10 वर्ष बाद 5 सितंबर 1995 से नियमित कर्मचारी घोषित कर संशोधित चयनित वेतनमान देने के आदेश दिए थे. इसके बाद 15 दिसंबर 2015 को भी लेबर कोर्ट ने एक और निर्णय दिया. उस निर्णय में उसकी सेवाएं 5 सितंबर 1995 से नियमित करने के साथ 3 माह में सभी परिलाभ देने को कहा गया था. लेकिन बरसों बीत जाने के बाद भी सरकारी सिस्टम कोर्ट के आदेशों की पालना करने में नाकाम रहा और अपने कर्मचारी को महज 75 प्रति माह का वेतन दे रहा है.
परिवार और रिश्तेदारों से सहयोग किया गुजर बसर
पिछले 13 बरसों से महज 75 प्रतिमाह में नौकरी कर रहे बलराम भाटिया ने बताया कि कानूनी लड़ाई लड़ने के दौरान उस पर अपने परिवार के पालन पोषण की भी जिम्मेदारी थी. उसने कानूनी लड़ाई लड़ने के साथ साथ अन्य छोटे-मोटे काम कर अपने परिवार का गुजार बसर किया. इसके लिये परिवार और रिश्तेदारों से सहयोग लिया.
सरकार या तो हक दे या फिर फांसी पर चढ़ा दे
सरकारी सिस्टम की लापरवाही का शिकार हुआ सरकारी सेवक बलराम भाटिया का कहना है कि हाल ही में राज्य सरकार ने बजट में राज्य सरकार के कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम का लाभ देने का फैसला लिया है तो क्यों ना राज्य सरकार मुझे भी मेरा हक दे. सिस्टम से हारे बलराम भाटिया ने राज्य सरकार से मांग की है कि या तो उसे उसके हक का परिलाभ दिलवाए या फिर उन्हें फांसी चढ़ा दें.
आपके शहर से (श्रीगंगानगर)
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