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पाली में 450 साल पुरानी लूंबर नृत्य परंपरा आज भी जीवंत.

Last Updated:March 03, 2025, 17:00 IST

Pali Rajasthan Lumber Dance Song: पाली में होली के दौरान एक खास परंपरा निभाई जाती है, जो लगभग 450 साल पुरानी है. इस दौरान लूंबर नृत्य-गीत की परंपरा निभाई जाती है. सीरवी समाज के लोग इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं…और पढ़ेंX
होली
होली से पहले निभाई जा रही यह खास परंपरा

हाइलाइट्स

पाली में 450 साल पुरानी लूंबर नृत्य परंपरा है.होली से 8-10 दिन पहले लूंबर नृत्य शुरू होता है.शौर्य, भक्ति, श्रृंगार और मस्ती भरे गीत प्रस्तुत किए जाते हैं.

पाली. फिजा में फाल्गुन की दस्तक के साथ ही हंसी ठिठोली भरी परंपराएं अंगड़ाई लेने लगती हैं. चंग की थाप पर फाल्गुनी गीतों की धमचक, नाथूरामजी का श्रृंगार, इनकी पाट बैठाई और लगभग 450 सालों से चली आ रही लूंबर नृत्य गीत परम्परा आज भी जीवंत हैं. पाली शहर में होली से आठ से दिस दिन पहले लूंबर नृत्य की शुरूआत हो जाती है. 450 साल से इस परपंरा को आज भी सीरवी समाज द्वारा निभया जा रहा है.

आज जब होली का पर्व आने को है तो इस परपंरा की शुरूआत की गई जो आज तक निभाई जा रही है. इस परपंरा की खासियत ऐसी है कि अन्य राज्यों से भी लोग देखने के लिए यहां पहुंचते है. शाम को पांच बजे यह पंरपंरा शुरू होती है जो रात को 10 बजे तक चलती है, जिसमें महिलाएं बड़े उत्साह के साथ लूंबर नृत्य करती हैं.

450 साल पुरानी परपंरा आज भी जीवित

स्थानीय निवासी सताराम देवासी ने लोकल 18 को बताया कि होली के 1 माह पूर्व ही माता जी के मंदिर जाते हैं, वहां से प्रसाद बनती है और प्रसाद बनने के बाद वहां से होली लेकर आते हैं. होली को शाम को रोपा जाता है. महिलाएं लूंबर लेती है और पुरूष गीत इत्यादि गाते है. यह 450 साल पुरानी परंपरा है और हम इसको 50 साल से देख रहे हैं. जबसे सीरवी समाज के बड़े आए तब से यह परपंरा चल रही है.

होली के दस दिन पहले शुरू होती है परंपरा

पाली में होली से आठ दस दिन पहले से लूंबर गीत नृत्य की शुरुआत हो जाती है. कोई 450 सालों पुरानी इस परंपरा में शौर्य, भक्ति, श्रृंगार और मस्ती भरे गीतों को ख़ास अंदाज में नृत्य के साथ प्रस्तुत किया जाता है.”दही रो वाटकियो लेने शिव रे मंदिर चाली रे” की प्रस्तुति आज भी लोकप्रिय है. चौधरियों का उपरला बास, आखरिया चौक, घांचियों का बास, जनता कॉलोनी, जूनी पाली की कई गलियों आदि में सांझ ढलते ही इस कला का कौशल देखते ही बनता है. नाथूरामजी की दो प्रतिमाएं एक जर्दा बाजार में दूसरी धान मंडी में है. यहां फागुन शुक्ला पंचमी से यहां रौनक बढ़ जाती है. इनकी प्रतिमाओं को पूरे राजसी अंदाज में निखारा जाता है.


First Published :

March 03, 2025, 17:00 IST

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450 साल पुरानी है पाली में लूंबर नृत्य की परंपरा, जानें क्यों है इतना खास

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