कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का प्रभाव साफ तौर पर राजस्थान के उपचुनावों में देखा गया. यहां पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में 13 फीसदी वोटिंग कम हुई. इस बार कुल 60.71 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 2018 में 73 फीसदी वोटिंग हुई थी. राजसमंद में 9.41 प्रतिशत, 13.29 प्रतिशत और सहाड़ा में 17 फीसदी वोटिंग कम हुई. चुनावों में कांग्रेस की जीत जहां सत्ता के इकबाल को बुलंद करेगी, वहीं यदि कांग्रेस अपने खाते की एक भी सीट हारती है तो इसे एंटी इनकंबैंसी से जोड़ा जाएगा. साथ ही दोनों दलों के छत्रपों की साख भी दांव पर होगी.
सियासी हल्कों में यह भी सुगबुगाहट है कि भले ही यह उपचुनाव हों, लेकिन पार्टी की जीत-हार से कई क्षत्रपों की साख सीधे ही जुड़ी है. इसलिए 2 मई को परिणाम आने के बाद हार के कारणों और भितरघातियों पर एक्शन का काम भी होगा. यही परिणाम दोनों दलों के कुछ नेताओं का सियासी भविष्य भी तय करेंगे. जहां तक भाजपा की बात है तोे सतीश पूनियांं, गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र सिंह राठौड़ सहित कुछ नेताओं की साख दांव पर है. कांग्रेस यदि तीनों सीटें जीती तो सरकार की साख के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, स्वास्थ्य मंत्री डॉ.रघु शर्मा, उदयलाल आंजना, प्रमोद जैन भाया का राजनीतिक कद बढ़ेगा.
सहाड़ा में कांग्रेस की जीत का पहाड़ा
यह देखना दिलचस्प होगा कि उपचुनाव का परिणाम 2-1 रहता है अथवा यह 3-0 से कांग्रेस के पक्ष में जाएगा. यह लगभग तय है कि उपचुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस का पलड़ा भारी है. वह दो विधानसभा क्षेत्रों में सहानुभूति के रथ पर सवार थी, तो भाजपा को यह लाभ सिर्फ राजसमंद में मिलने की उम्मीद है. फिलहाल तो सबसे कम मतदान के बावजूद सहाड़ा में कांग्रेस की जीत लगभग तय मानी जा रही है. उपचुनाव में यही सीट लादूलाल ऑडियो प्रकरण के कारण हॉट सीट बनी. लेकिन इससे भाजपा को ज्यादा फायदा नहीं हुआ. लादूलाल के नामाकंन वापस लेने के बावजूद उसके कुछ जाट वोट आरएलपी उम्मीदवार के खाते में जा सकते हैं. कांग्रेस प्रत्याशी गायत्री देवी को स्वभाविक रूप से सहानुभूति लहर का फायदा मिलेगा.
राजसमंद : कटारिया प्रकरण से धार हुई मंद
यदि भाजपा के गढ़ वाली राजसमंद सीट भाजपा के हाथ से निकल गई तो पार्टी में अंदरूनी सियासत तेज हो जाएगी. पंचायत चुनाव में कांग्रेस की जीत और सीपी जोशी का प्रभाव, पार्टी द्वारा इस सीट पर सारी ताकत झोंक देने का परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आ सकता है. निश्चित रूप से भाजपा की इस परंपरागत सीट पर पार्टी उम्मीदवार दीप्ति माहेश्वरी के साथ मां किरण की संवेदनाओं ने भी चुनाव पर असर डाला होगा. लेकिन अंतिम मौके पर महाराणा प्रताप के खिलाफ नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया की टिप्पणी से नाराज राजपूतों को मनाने और डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा की स्टार प्रचारक वसुंधरा राजे ने कुछ नहीं किया. यहां तक कि वे पारिवारिक कारणों से उपचुनाव में प्रचार के लिए भी नहीं गईं. हार की स्थिति में सतीश पूनियां गुट जरूर इसकी रिपोर्ट हाईकमान को करेगा. जहां तक राजे गुट का सवाल है तो वह इसके लिए कटारिया को कठघरे में खड़ा कर सकता है.
सुजानगढ़ : सहानुभूति से वोटों पर पकड़
उपचुनाव की तीनों सीटों में से सुजानगढ़ ही एकमात्र ऐसी सीट है जिस पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की कुछ पकड़ है. उसे सर्वाधिक वोट यहीं से मिल सकते हैं. आरएलपी उम्मीदवार को जितने वोट मिलेंगे वह भाजपा उम्मीदवार में सेंध लगाने का ही काम करेंगे. हालांकि वह कुछ वोट कांग्रेस के भी काट सकते हैं. कांग्रेस प्रत्याशी मनोज मेघवाल न सिर्फ विवादों से दूर रहे हैं, बल्कि उन्हें पिता मास्टर भंवरलाल का सहानुभूति वोट भी मिलेगा. सुजानगढ़ में भाजपा-कांग्रेस दोनों दलों के प्रत्याशी एक ही जाति के हैं, इसलिए जाति के वोट बंटना निश्चित है और जीत के लिए व्यक्तिगत छवि और बूथ मैनेजमेंट की काबिलियत अहम भूमिका निभा सकते हैं. वैसे भी मरुधरा की सियासत का ट्रेंड यही रहा है कि उपचुनाव में प्रत्याशी का चेहरा और आम चुनाव में पार्टी अहम हो जाती है. चेहरे दमदार होते हैं तो जीत एकतरफा ही मिल जाती है. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)