Rajasthan

कौन थे वो बंगाली विद्याधर, जिन्होंने 298 साल पहले बनाया था गुलाबी नगर जयपुर का नक्शा

Last Updated:November 18, 2025, 12:30 IST

जयपुर की स्थापना 18 नवंबर 1727 में हुई थी. आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह ( Maharaja Sawai Jai Singh II ) ने इसकी योजना को अंतिम रूप दिया. हालांकि इस शहर को बसाने की योजना और नक्शा बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य (चक्रवर्ती) ने तैयार की थी.Generated image

आज यानि 18 नवंबर को जयपुर का शहर का जन्मदिन है. ये शहर अब 298 साल का हो चुका है. दो साल बाद 300 साल की उम्र वाले ऐसे शहरों में शुमार हो जाएगा. जिसका रूतबा और सम्मोहन आज भी बरकरार है.

विद्याधर भट्टाचार्य उस जयपुर शहर के मुख्य वास्तुकार थे, जिसके मूल नक्शे को देखकर आज भी लोग चकित रह जाते हैं कि 18वीं सदी में भारत के पास ऐसा वास्तुकार था, जो ऐसा खूबसूरत और योजनाबद्ध शहर बसा सकता है. इस आधुनिक नगर बसाने के लिए उन्होंने आमेर महाराजा सवाई जयसिंह के सपने को साकार करने में खास भूमिका निभाई. हालांकि कई किताबों में उनके नाम का उल्लेख विद्याधर चक्रवर्ती के तौर पर भी किया गया है. वह बंगाल में पैदा हुए थे.

विद्याधर गणित, शिल्पशास्त्र, ज्योतिष और संस्कृत विषयों के विद्वान थे. वह बंगाल मूल के एक गौड़-ब्राह्मण थे, जिनके दस वैदिक ब्राह्मण पूर्वज आमेर-राज्य की कुलदेवी दुर्गा शिलादेवी की शिला बांग्लादेश से लाने के समय जयपुर आये थे. उन्हीं में एक के वंशज विद्याधर थे.सन 1743 में सवाई जयसिंह के देहावसान के बाद भी विद्याधर शासन में रहे और समय-समय पर सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे. (Shutterstock)

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जयपुर के नगर नियोजक और प्रमुख-वास्तुविद विद्याधर का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं था. सवाई जयसिंह को उनकी मेधा और योग्यता पर पूरा भरोसा था. सन 1727 में आमेर को छोड़ कर जब पास में ही एक नया नगर बनाने का विचार उत्पन्न हुआ तो ये काम विद्याधर को मिला. जयसिंह ने अपने नाम पर इस का नाम पहले पहल ‘सवाई जयनगर’ रखा जो बाद में ‘सवाई जैपुर’ और फिर आम बोलचाल में और छोटा होकर ‘जयपुर’ के रूप में जाना गया. (Shutterstock)

जयपुर नगर को वास्तु शास्त्र के अनुरूप अलग-अलग प्रखंडों (चौकड़ियों) में समकोणीय मार्गों यानि ग्रिड आयरन पैटर्न के आधार पर बांटने, विशेषीकृत हाट-बाज़ार विकसित करने, इसकी सुन्दरता को बढ़ाने वाले कई निर्माण करवाने वाले विद्याधर का नगर-नियोजन आज देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों में मानक-उदाहरण के रूप में छात्रों को पढ़ाया जाता है. ली कार्बूजियर के चंडीगढ़ की वास्तु-योजना बहुत कुछ जयपुर के नगर-नियोजन से ही प्रेरित है. (ShutterStock)

रूस के भारतविद विद्वान ए. ए.कोरोत्स्काया ने अपनी प्रसिद्ध किताब भारत के नगर में विद्याधर और जयपुर की विशिष्ट वास्तुरचना बारे में विस्तार से विचार व्यक्त किये हैं. सवाई जयसिंह के समकालीन, संस्कृत और ब्रजभाषा के महाकवि श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि ने अपने इतिहास-काव्यग्रंथ ईश्वरविलास महाकाव्य में विद्याधर की प्रशस्ति में कहा है “बंगालयप्रवर वैदिकागौड़विप्र: क्षिप्रप्रसादसुलभ: सुमुख:कलावान विद्याधरोजस्पति मंत्रिवरो नृपस्यराजाधिराजपरिपूजित: शुद्ध-बुद्धि:” भावार्थ यह कि महाराजा जयसिंह का मंत्री विद्याधर (वैदिक) गौड़ जाति का बंगाली-ब्राह्मण है, देखने में बड़ा सुन्दर और बोलने में बड़ा सरल स्वभाव का है, विभिन्न कलाओं में निष्णात शुद्ध बुद्धि वाले (इस विद्याधर) को महाराजाधिराज जयसिंह बड़ा मान-सम्मान देते हैं. (Wiki Commons)

जयपुर राजदरबार में विद्याधर का सम्मान इतना था कि “उनके पुत्र मुरलीधर चक्रवर्ती को न केवल अपने पिता का पद सौंपा गया बल्कि 5,000 रुपये सालाना की वार्षिक आय की जागीर भी. जिस सुन्दर शहर का नक्शा ऐसे गुणवान नगर-नियोजक ने बनाया था, आज उस जयपुर में उन्हीं वास्तुविद विद्याधर के कोई वंशज नहीं बचे हैं

जयपुर-आगरा महामार्ग पर ‘घाट की घूनी’ में बनाया गया मुग़लों की ‘चारबाग’ शैली पर आधारित एक सुन्दर उद्यान ‘विद्याधर का बाग’ और त्रिपोलिया बाज़ार में ‘विद्याधर के रास्ते’ में स्थित उनकी पुश्तैनी-हवेली, उनकी धुंधली सी याद को यथासंभव सुरक्षित रखे हुए हैं. 

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जयपुर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा रखता है. ग्लोबल ट्रैवल रैंकिंग्स में इसे शीर्ष स्थान हासिल है. 2019 से जयपुर शहर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है. इस शहर की योजना, वास्तुकला और शिल्पकला को गजब का माना जाता है. उसकी तारीफ भी की जाती है. जो इस शहर के मूल गुलाबी इलाके की ओर जाता है, वो मुग्ध रह जाता है.

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November 18, 2025, 12:30 IST

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